अघोरेश्वर बाबा कीनाराम और लोलार्क षष्ठी

 लोलार्क षष्ठी या ललई छठ एक हिन्दू त्यौहार है जो हर वर्ष हिन्दू कलेंडर के अनुसार भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की छठवीं तिथि को मनाई जाती है। इस पर्व के सूत्र सत्रहवीं सदी के एक प्रसिद्ध अघोरी संत बाबा कीनाराम से जुड़े माने जाते हैं, जो अपनी अलौकिक शक्तियों के लिए विख्यात थे।


बाबा कीनाराम का जन्म सन 1601 ई॰ में चंदौली (उत्तरप्रदेश) के रामगढ़ गाँव के अकबर सिंह और मनसादेवी के घर  हुआ था। कहा जाता है कि अपने जन्म के बाद आम शिशुओं की तरह बाबा तीन दिनों तक न तो रोये और न ही उन्होने अपनी माता का दूध पिया। तीन दिन बाद तीन साधु (लोक मान्यता है कि वे तीनों साधु ब्रह्मा, विष्णु, महेश थे) वहाँ आए और उन्होने बाबा को अपनी गोद में लिया और उनके कान में कुछ कहा। आश्चर्यजनक रूप से उन साधुओं से मिलने के बाद बाबा अपने जन्म के बाद पहली बार रोने लगे। तभी से जन्म के पाँच दिन बाद की तिथि लोलार्क षष्ठी या ललई छठ के रूप में मनाई जाने लगी।

बाबा बाल्यावस्था से ही विरक्त रहते थे और थोड़े बड़े होने पर उन्होने घर भी छोड़ दिया । वे उस समय के अनेक सुप्रसिद्ध साधकों जैसे संत शिवाराम, औघड़ कालूराम आदि के सानिध्य में भी रहे और अपना जीवन उन्होने साधना करने और अपनी सिद्धियों को लोक-कल्याणार्थ उपयोग करने में लगाया। उनके अलौकिक चमत्कारों की अनेक कहानियाँ प्रसिद्ध हैं जिन्हें आप विकिपीडिया पर यहाँ पढ़ सकते हैं ।

बाबा किनाराम ने 'विवेकसार', 'रामगीता', 'रामरसाल' और 'उन्मुनिराम' नाम की चार पुस्तकें लिखीं जिनमें से 'विवेकसार' अघोर पंथ के सिद्धांतों पर अत्यंत प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है।

सन 1769 में करीब 170 वर्ष की आयु में बाबा ने समाधि ले ली और ये नश्वर शरीर त्याग दिया। वाराणसी में आज भी बाबा किनाराम स्थल बना हुआ है जिसकी स्थापना बाबा द्वारा ही की गई थी। हर साल उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में बाबा का जन्मदिन उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। 2019 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कार्यक्रम में भाग लिया था और उन्होने कहा था कि बाबा किनाराम के जन्मस्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा।




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