विश्वासपात्र
द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। सिपाहियों को बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिलती थी।
इसी दौरान एक कुँवारे अंग्रेज़ सिपाही को किस्मत से छुट्टी मिली तो घर आते ही सबसे पहले उसने शादी कर ली।
उसकी पत्नी बहुत खूबसूरत थी, और उसकी अनुपस्थिति में वह किसी और से आँखें चार न कर बैठे इस डर से सिपाही ज़्यादातर समय घर पर ही रहता था।
वह अपने किसी दोस्त को भी अपने घर के भीतर फटकने न देता था।
लेकिन एक दिन अचानक उसकी यूनिट पर हमला हुआ और उसके लिए फिर से लड़ाई पर जाने का बुलावा आ गया।
वह पत्नी को अकेली छोडकर किसी भी तरह जाना न चाहता था लेकिन युद्ध चल रहा था और ऐसे समय में उसे जाना अनिवार्य था।
लिहाजा बहुत सोचविचार कर उसने बीवी घर में बंद कर बाहर से ताला लगाया और अपने एक बहुत ही पुराने विश्वासपात्र दोस्त के हाथ में चाभी देकर बोला - "मैं ड्यूटी पर जा रहा हूँ लेकिन वहाँ हाजिरी देकर तुरंत लौट आऊँगा। फिर भी यदि मैं चार दिनों में न लौटूँ तो तुम इस चाभी से ताला खोलकर उसे आज़ाद कर देना ... "
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इतना कहकर वह मोर्चे की ओर चल दिया।
अभी वह अपने गाँव से थोड़ी ही दूर पहुंचा था कि उसने देखा, उसका दोस्त पीछे से सरपट घोडा दौड़ाता हुआ, उसे आवाज़ देता हुआ चला आ रहा है ....
दोस्त नजदीक आते ही चिल्लाया - "धोखेबाज़ .... तू मुझे गलत चाभी देकर जा रहा है । इस चाभी से तो ताला खुल ही नहीं रहा .... !!!
☺☺☺
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