गणेशोत्सव का इतिहास, जानिए कब से, कैसे मनाया जा रहा है

 हर वर्ष गणेश चतुर्थी के दिन से गणेश उत्सव (Ganesh Utsav) की शुरुआत हो जाती है। इस वर्ष भी यह उत्सव 10 सितंबर से प्रारम्भ हो चुका है और अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन होने तक जारी रहेगा। 

गणेशोत्सव (Ganeshotsava) मनाना कब से प्रारम्भ हुआ इसकी ठीक ठीक तिथि का अनुमान लगा पाना तो कठिन है लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि पुराने समय में चालुक्य, सातवाहन और राष्ट्रकूट साम्राज्यों के दौरान गणेश उत्सव मनाया जाता था। निकट इतिहास की बात करें तो इस उत्सव के छत्रपति शिवाजी के शासन काल के दौरान एक सार्वजनिक महोत्सव के रूप में मनाए जाने के उल्लेख मिलते हैं।  पेशवाओं के राज के दौरान भी गणेश पूजन एक पारिवारिक उत्सव के रूप मनाया जाता रहा। 

गणेशोत्सव या गणपति उत्सव (Ganpati Utsav) के वर्तमान स्वरूप का श्रेय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को जाता है। उन्होने 1893 में पुणे में गणपति उत्सव के पारिवारिक उत्सव के स्थान पर सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा की शुरुआत की। यह करने के पीछे उनका उद्देश्य मात्र धार्मिक पूजा पाठ ही नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों को एक ही पंडाल के नीचे लाना था ताकि उनके बीच एकता की भावना का संचार हो और सब मिलजुल कर देश और समाज की स्थिति पर चर्चा भी कर सकें। 

शुरू में महाराष्ट्र के नागपूर, वर्धा और अमरावती आदि जिलों में लोगों ने धूमधाम से गणेशोत्सव मनाना शुरू किया जिसे देखकर अंग्रेज़ शासक भी हैरान रह जाते थे। इस बारे में रोलेट समिति में चिंता भी जताई गई थी। रपट में साफ कहा गया था कि इन आयोजनों में अँग्रेजी शासन के खिलाफ भाषण होते हैं व गीत गाये जाते हैं।  उत्सवों के माध्यम से न सिर्फ एकजुटता का प्रदर्शन हुआ बल्कि ये उत्सव जनजागृति के भी केंद्र बन गए थे। 

उस समय तिलक ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि उनके द्वारा डाली गई गणेशोत्सव की यह परंपरा आगे चलकर एक राष्ट्रीय पहचान स्थापित कर लेगी। आजादी के बाद तो गणेशोत्सव का स्वरूप और भी व्यापक होता चला गया। आज यह पर्व पूरे भारत में जिस उत्साह से मनाया जाता है वह हम सभी देखते ही हैं। जरूरत है तो बस उत्सव के साथ साथ पर्यावरण का भी ध्यान रखने की।  




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