करवा चौथ व्रत की सम्पूर्ण जानकारी, विधि, कहानी, महिमा | Karva Chauth ki Kahani, Vidhi, Mahima

करवा चौथ भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत लोकप्रिय एकदिवसीय व्रत है जो मुख्यतः विवाहित हिन्दू महिलाओं द्वारा अपने पति की लम्बी आयु की कामना से रखा जाता है.  आजकल कई कुँवारी लडकियां भी अच्छे जीवनसाथी की कामना से करवा चौथ का व्रत करती हैं. व्रत के दौरान सूर्योदय से लेकर रात्रि चंद्रोदय तक उपवास रखा जाता है जिसमें कुछ भी खाया पिया नहीं जाता है. रात्रिकाल में चन्द्रमा के दर्शन और पूजन उपरान्त ही व्रत खोला जाता है.

करवा चौथ कब मनाया जाता है (Karva Chauth kab manaya jata hai)

करवा चौथ का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार  हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से यह तिथि आमतौर पर अक्टूबर महीने के दौरान पड़ती है. यह त्यौहार उत्तर भारतीय राज्यों में विशेष उत्साहपूर्वक मनाया जाता है जिनमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान प्रमुख हैं. 

करवा चौथ का अर्थ व महत्व (karva Chauth meaning)

'करवा चौथ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है. 'करवा' जो कि एक मिट्टी का पात्र होता है जिसमें टोंटी बनी होती है. 'चौथ' का अर्थ है चतुर्थी तिथि. परंपरा के अनुसार मिट्टी के पात्र अर्थात करवा में महिलायें जल लेकर चन्द्र देवता को अर्पण करती हैं और इसके  बाद ही खुद पीती हैं. कहा जाता है कि प्राचीन काल में जब पुरुष युद्ध के लिए दूर देशों में जाते थे तब महिलाओं द्वारा उनकी सलामती के लिए पूजा अर्चना और उपवास आदि किये जाते थे. माना जाता है कि  ऐसे ही किसी समय में करवा चौथ की भी शुरुआत हुई होगी. 

करवा चौथ की विधि (Karva Chauth ki vidhi)

करवा चौथ के दिन 'निर्जला व्रत' रखने का रिवाज है अर्थात इस दिन कुछ खाना तो दूर, पानी की एक बूँद तक नहीं पी जाती है. इस दिन महिलायें अपने हाथों में मेंहदी रचाती हैं और सायंकाल सम्पूर्ण श्रृंगार करके चन्द्र देव के दर्शन उपरान्त व्रत समाप्त करती हैं. स्थानीय परम्पराओं के हिसाब से पूजा की विधि अलग अलग हो सकती है किन्तु चंद्रोदय के पश्चात ही व्रत खोलने की परंपरा है. 

करवा चौथ की कथा / कहानी (Karva Chauth ki Katha / Kahani)

करवा चौथ से जुडीं कई कहानियां व कथाएं प्रचलित हैं लेकिन उनमें सावित्री और सत्यवान की कहानी सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से सावित्री अपने पति सत्यवान को यमराज के चंगुल से छुडा लाइ थी. 

इसी तरह की एक और कहानी वीरवती की है जो कि सात भाइयों की अकेली दुलारी बहन थी. विवाह के पश्चात जब वीरवती ने अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत किया तो उसके भाइयों से अपनी प्यारी बहन को भूखा-प्यासा न देखा गया. उन्होंने वीरवती को बहला कर चंद्रमा के उदय होने की झूठी खबर देकर व्रत समाप्त करवा दिया. जैसे ही वीरवती ने व्रत तोडा, उसे अपने परदेस गए हुए पति की मृत्यु का समाचार मिला. इसके बाद उसने पूरे एक वर्ष तक प्रार्थना की और पुनः करवा चौथ का व्रत किया तो उसका पति जिंदा वापस लौट आया. 

करवा चौथ एक कठिन व्रत माना जाता है लेकिन आधुनिक समाज में देखा जाए तो यह पहले से भी अधिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन प्राचीन परम्पराओं के पालन के साथ साथ, पति पत्नी द्वारा एक दूसरे को उपहार  देने का भी चलन आरम्भ हो गया है. यह दर्शाता है कि यह पर्व कहीं न कहीं पारिवारिक बंधनों को भी मजबूत करने का काम कर रहा है. 




Post a Comment

0 Comments