घाघ भड्डरी की कहावतें - Ghagh Bhaddari Ki Kahawatein

  उत्तर भारत के देहातों में घाघ भड्डरी की कहावतें (Ghagh Bhaddari ki Kahawatein) बहुतायत में प्रचलित हैं. देशी भाषा शैली में दोहों और कवित्तों के रूप में मौजूद इन कहावतों में आम ग्रामीण जनजीवन और खेती किसानी से जुड़ी हुई बातें पाई जाती हैं. 

घाघ भड्डरी कौन थे इस बारे में कुछ भी प्रामाणिक तौर पर उपलब्ध नहीं है. कुछ लोग इन्हें एक ही व्यक्ति मानते हैं तो कुछ अलग अलग व्यक्ति के रूप में मानते हैं. इनके समय काल के बारे में भी कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता हालांकि कुछ आधुनिक विद्वानों का मत है कि ये अकबर के समकालीन थे. 

घाघ भड्डरी की रचनाएँ दरअसल श्रुति परंपरा का हिस्सा हैं अर्थात इनका कोई लिखित साहित्य उपलब्ध नहीं है. इनकी रचनाएँ ग्रामीण अंचलों में पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से कहावतों की शक्ल में आज तक चली आ रही हैं. घाघ की रचनाओं को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा जा सकता है - नीति विषयक और खेती किसानी विषयक. इस लेख में हम घाघ  भड्डरी की दोनों ही प्रकार की बहुप्रचलित और लोकप्रिय कहावतों को पढेंगे. 

घाघ की नीति-विषयक कहावतें (Ghagh ki Kahawatein)

आलस नींद किसानै नासै
चोरै नासै खाँसी
अँखियाँ लीबर बेसवै नासै
बाबै नासै दासी
(अर्थात आलस्य और नींद किसान का, खाँसी की बीमारी चोर का, कीचड़ वाली आँखें वैश्या का और दासी साधु का नाश करती है)

घर घोड़ा पैदल चले 
तीर चलावै बीन
थाती धरै दमाद घर
जग में भकुआ तीन 

(घाघ कहते हैं कि संसार में तीन मूर्ख हैं - जो घर में घोड़ा होते हुए भी पैदल चले, बीन बीन कर तीर चलाये और जो धरोहर (थाती) को दामाद के घर रखता है.)

खेती पाती बीनती 
अरु घोड़े का तंग
आपन हाथ संवारिये 
लाख लोग हो संग

(अर्थात खेती का काम, चिट्ठी लिखने का काम, विनय करना और घोड़े का तंग कसना ये हमेशा स्वयं ही करना चाहिए, किसी दूसरे से नहीं कराना चाहिए  चाहे लाख लोग ही साथ क्यों न हों.)

निह्पछ राजा मन हो हाथ 
साधु परोसी नीमन साथ 
हुकमी पूत धिया सतवार
तिरिया भाई रखे विचार 
कहैं घाघ हम करैं विचार 
बड़े भाग से दे करतार 

(अर्थात - निष्पक्ष राजा हो, मन वश में हो, पडोसी सज्जन हो, ताकतवर दोस्त हो, आज्ञाकारी पुत्र हो, सतवाली पुत्री हो, पत्नी और भाई विचार रखने वाले हों, घाघ कहते हैं कि ये सब सुयोग बड़े भाग्य से मिलते हैं.)

ढीठ पतोहू धिया गरियार 
पति बेपीर न करैं विचार 
घरे जलावन अन्न न होइ
घाघ कहैं तो अभागी जोइ

(अर्थात जिसकी पुत्रवधू ढीठ हो, कन्या घमंडी हो, पति सुनता न हो, घर में न ईंधन हो न अन्न हो, वह स्त्री अभागिनी है.)

परहथ बनिज संदेसे खेती 
बिन वर देखे ब्याहे बेटी 
द्वार पराये गाड़े थाती 
ये चारों मिलि पीटे छाती 

(अर्थात दूसरे के भरोसे व्यापार करने वाला, संदेशों के जरिये खेती कराने वाला, बिना वर देखे बेटी ब्याहने वाला और दूसरे के दरवाजे पर अपनी धरोहर गाड़ने वाला ये चारो अंत में छाती पीटकर पछताते हैं.)

अगसर खेती अगसर मार 
कहैं घाघ ते कबहूँ न हार 

(जो खेत सबसे पहले बोता है और जो लड़ाई में सबसे पहले मारता है, घाघ कहते हैं वह कभी नहीं हारता है.)

ओछौ मंत्री राजे नासै
ताल विनासै काई
सान साहिबी फूट विनासै
घग्घा पैर विवाई

(घाघ कहते हैं कि नीच मंत्री राजा का नाश करता है, काई तालाब का विनाश करती है, आपसी फूट  मान-मर्यादा का नाश करती है और विवाई पैर का नाश करती है. )

उत्तम खेती मध्यम बान
अधम चाकरी भीख निदान 

(अर्थात खेती का पेशा सबसे उत्तम है, वाणिज्य मध्यम और नौकरी सबसे निकृष्ट है. भीख माँगना तो सबसे बुरा है.)

खाइ के मूतै सूतै बाउं
काहि क वैद बसावै गाउं

(अर्थात खाने के बाद पेशाब करे और बाईं करवट सोये तो वैद्य को गाँव में बसाने की क्या जरूरत है.)

प्रातकाल खटिया तै उठिके 
पिए तुरंतै पानी 
कबहूँ घर में वैद न आइहैं
बात घाघ के जानी 

(सुबह सोकर उठते ही तुरंत पानी पी लिया करें तो घर में वैद्य की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी, यह बात घाघ की आजमाई हुई है.)

घाघ की खेती किसानी विषयक कहावतें 

उत्तम खेती जो हर गहा 
मध्यम खेती जो संग रहा 
जो पूछै हरवाहा कहाँ 
बीज बूडिगे तिनके यहाँ 

(जिसने खुद हल पकड़ा उसकी खेती उत्तम है, जो हलवाहे के संग रहा उसकी मध्यम है और जो पूछे कि हलवाहा कहाँ है उनका तो बीज बोना ही व्यर्थ है.)

जो हल जोते खेती ताकी 
और नहीं तो जाकी ताकी 

(जो हल जोतता है खेती उसी की होती है अन्यथा जिसकी तिसकी होती है.)

उलटै गिरगिट ऊंचे चढ़े 
बरखा होय भूमि जल बुडै 

(अर्थात यदि गिरगिट उल्टा होकर अर्थात पूंछ ऊपर की ओर करके पेड़ पर चढ़े तो समझना चाहिए कि इतनी वर्षा होगी कि भूमि डूब जायेगी. )

दिन में बादर रात में तारे 
चलो कंत जंह जीवें बारे 

(अर्थात यदि दिन में बादल हों और रात में तारे दिखाई दें तो सूखा पड़ेगा इसलिए हे नाथ ! वहाँ चलो जहां बच्चे जीवित रह सकें.)

अम्बाझोर चले पुरवाई 
तो समझो वर्षा ऋतु आई 

(यदि पूर्वा हवा इतनी जोर से चले कि आम झड पड़ें तो समझना चाहिए कि वर्षा ऋतु आ गई है.)

रात करे घापघूप दिन करे छाया 
कहैं घाघ अब वर्षा गया 

(यदि रात में बादल हों और दिन में तितर बितर होकर उनकी छाया दौड़ने लगे तो समझो वर्षा ऋतु गई.)

जो खेती थोड़ी करे 
मेहनत करे सिवाय 
राम चहे वा मनुष कों
टोटा कभी न आय

(जो खेती थोड़ी करता है किन्तु परिश्रम खूब करता है, राम की कृपा से उसको कभी हानि नहीं होती.)

खेती वह जो खड़ा रखावे
सूनी खेती हरिना खावे 

(खेती उसी की है जो खुद उसकी रखवाली करता है, सूनी खेती को तो हिरन चर जाते हैं.)

पहले पानि नदी उफनाय 
तौ जानियो कि बरखा नांय

(यदि पहले ही पानी में नदी उफनकर बहने लगे तो समझना चाहिए कि उस बरस वर्षा अच्छी नहीं होगी. )

जितना गहरा जोतै खेत 
बीज परे फल अच्छा देत
(अर्थात जुताई जितनी गहरी होगी, फसल उतनी ही अच्छी होगी.)




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