रंगा सियार - पंचतंत्र की कहानी | Ranga Siyar - A Panchatantra Story

एक बार भोजन की तलाश में घूमता घामता एक सियार नगरीय क्षेत्र में आ गया. नगर के कुत्तों ने जैसे ही उसे देखा तो अपने स्वभाव के अनुसार उस पर भौंकने लगे और उसे दौड़ा लिया. जान बचाने के लिए भागता हुआ वह सियार एक रंगरेज़ के घर में घुस गया. वहाँ कपडे रंगने के लिए रंगरेज़ ने एक बड़े से बर्तन में नीला रंग घोलकर रखा हुआ था. 

हड़बड़ी में वह सियार उसी बर्तन में जा गिरा और जब निकला तो वह पूरा नीला हो चुका था. कुत्तों के भय से उस समय वह बर्तन से निकलकर वहीं रंगरेज़ के घर में एक कोने में दुबक रहा और जब रात हो गई तो छिपता छिपाता कुत्तों की नजर बचाकर वापस अपने वन प्रदेश में आ गया. 

दूसरे दिन जब वह जंगल में रोज़ की तरह निकला तो उसने अनुभव किया कि जंगल के दूसरे जानवर उसकी ओर शंकित नज़रों से देख रहे हैं और उसे देखकर कुछ भयभीत से प्रतीत हो रहे हैं. यहाँ तक कि उसके अपने सजातीय भाई अर्थात दूसरे सियार भी उसके नजदीक आने में डर रहे हैं. 

पहले तो सियार को जानवरों का यह व्यवहार कुछ समझ नहीं आया लेकिन फिर जब उसने गौर से अपने शरीर को देखा तो पाया कि वह नीले रंग का हो चुका है. वह समझ गया कि यह रंग, रंगरेज़ के घर में रखे बर्तन में गिरने की वजह से लगा है. उसकी समझ में यह भी आ गया कि इसी रंग की वजह से जानवर उसे देखकर डर रहे हैं क्योंकि इस रंग का जानवर उन्होंने जंगल में इससे पहले कभी देखा ही नहीं था. 

दूसरे जानवरों को घबराया देखकर सियार के मन में इस मौके का फायदा उठाने की बात सूझ गई. उसने एक ऊंचे स्थान पर खड़े होकर जानवरों को संबोधित करते हुए कहा - "मेरे जानवर भाइयो, मुझे देखकर घबराओ मत. मैं तुम्हारा नया राजा हूँ. मुझे स्वयम भगवान ने इस जंगल में भेजा है और कहा है कि मैं जाकर तुम लोगों का राजा बनूँ और तुम्हारा पालन पोषण करूं. अगर तुम सब मेरी आज्ञा मानोंगे तो मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुचाऊँगा." 

बेचारे जानवर, जिन्होंने पहली बार जंगल में कोई नीले रंग का जानवर देखा था, सियार की बात को सच मान बैठे और उसकी जय जयकार करने लगे. 

अब तो नीले रंग में रंगा सियार जंगल का राजा बन गया. सबसे पहले तो उसने अपने सजातीय बंधुओं अर्थात दूसरे सियारों से दूरी बना ली और  उनसे बातचीत बंद कर दी. शेर को उसने अपना मंत्री बना लिया और चीते को सलाहकार. शेष जानवरों को भी यथायोग्य पद सौंप दिए और जंगल का राजकाज चलाने लगा. 

सभी जानवर उसकी आज्ञा का पालन करते और उसके आगे सिर झुकाते. उसे अब भोजन खोजने की जरूरत नहीं रही बल्कि दूसरे जानवर उसके लिए खुद भोजन का प्रबंध करके लाते. कुल मिलाकर सियार की ज़िन्दगी मौज में कटने लगी. 

एक रात की बात है. चाँदनी खिली हुई थी. मंद मंद हवा चल रही थी. मौसम बड़ा ही सुहाना था. राजा सियार अपने ख़ास-ख़ास मंत्रियों और दरबारियों के साथ बैठा हुआ था. तभी अचानक जंगल से सियारों के हुआं हुआं करके चिल्लाने की आवाजें आनी शुरू हो गईं जैसा कि सियार चाँदनी रातों में अक्सर किया करते हैं. 

अब राजा सियार था तो आखिर सियार ही. उसके कानों में जब दूसरे सियारों की आवाजें पडीं तो उससे रहा नहीं गया और मस्ती में उसने भी अपना मुँह ऊपर की ओर उठाया और अपने स्वभावानुसार चिल्लाना शुरू कर दिया. 

अपने राजा को सियार की तरह चिल्लाता देखकर उसके साथ बैठे उसके मंत्रिमंडल के सदस्य शेर, चीते, भालू जैसे जानवर चौंक उठे. "अरे यह तो सियार है ! कहीं से अपना रंग बदलकर आ गया है ! ये पिद्दी सा जानवर हम जैसे खतरनाक जानवरों का राजा बनकर बैठ गया है !" उन्होंने आपस में एक दूसरे से कहा. 

फिर क्या था ? असली पहचान सामने आते ही अगले ही क्षण उन खूंखार जानवरों ने उसे पकड़कर चीरफाड़ डाला और रंगे सियार की जीवनलीला समाप्त कर दी. 

तात्पर्य यह है कि जो अपनी वास्तविक शक्ति से परिचित होते हुए भी अधिक शक्तिशाली होने का ढोंग करता है उसकी एक दिन राजा सियार जैसी दुर्गति होती है. 




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