आँखों की रोशनी - लोककथा | Ankhon ki roshani - Lok katha in Hindi

पुराने जमाने की बात है. किसी शहर में एक धनवान बुढ़िया रहती थी. उसका घर कीमती सामानों से हमेशा भरा रहता था. परंतु एक समय ऐसा आया जब बुढ़ापे के कारण उसकी आँखों की रौशनी धीरे धीरे कम होने लगी और कुछ ही दिनों में वह लगभग पूरी तरह से अंधी हो गई. अब उसे कुछ भी नहीं सूझता था और वह टटोल-टटोल कर किसी तरह अपना काम करती थी. 

उसी शहर में एक चिकित्सक भी रहता था. वह अपने काम में बड़ा होशियार था किन्तु थोडा लालची स्वभाव का था. किसी ने बुढ़िया को चिकित्सक के बारे में बताया तो एक दिन वह पडोसी को साथ लेकर अपनी आँखों का इलाज कराने उसके पास पहुंची. 

चिकित्सक को पता चला कि बुढ़िया काफी धनवान है तो वह बोला - "मैं तुम्हारी आँखों की रौशनी वापस ला सकता हूँ लेकिन इसके लिए तुम्हें एक हजार रुपये खर्च करने होंगे."

बुढ़िया बोली - "अगर मुझे पहले की तरह दिखने लगेगा तो मैं तुम्हें एक हजार क्या, दो हजार रुपये दूंगी." 

चिकित्सक बुढ़िया की बात सुनकर खुश हो गया. बोला - "तुम्हें सौ फ़ीसदी पहले की तरह दिखाई देने लगेगा. मेरी गारंटी है. अब तुम जाओ, मैं तुम्हारी आँखों के लिए दवा बनाता हूँ और उसे कल तुम्हारी आँखों में डालने तुम्हारे घर आऊंगा."

चिकित्सक की बात सुनकर बुढ़िया अपने घर चली आई. दूसरे दिन चिकित्सक उसकी आँखों में दवा डालने उसके घर आया. वहाँ आकर जब उसने देखा कि बुढ़िया का घर कीमती सामानों से भरा पड़ा है तो उसकी नीयत खराब होने लगी. वह बोला - "माँ जी, आपकी आँखें कुछ ज्यादा ही खराब हो गई हैं इसलिए इनमें एक दिन दवा डालने से काम नहीं चलेगा बल्कि एक महीने तक रोज नियम से दवा डालनी पड़ेगी. अब से मैं रोज इसी समय दवा डालने आ जाया करूंगा." 

इसके बाद चिकित्सक रोजाना बुढ़िया के घर दवा डालने के बहाने आने लगा. वह बुढ़िया की आँखों में दवा की जगह पानी की दो बूँदें टपका देता और उसके घर से चुपचाप कोई न कोई कीमती सामान उठाकर अपने घर ले जाता. बेचारी बुढ़िया को पता तक न चलता क्योंकि वह तो अंधी थी. 

महीना पूरा होते होते चिकित्सक ने बुढ़िया के घर का ज्यादातर कीमती सामान चुरा कर अपने घर में रख लिया. फिर एक दिन वह असली दवा की शीशी लेकर आया और उसे बुढ़िया की आँखों में डाला. दवा डालते ही अगले दिन से बुढ़िया को सबकुछ साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा. बुढ़िया बहुत खुश हुई लेकिन जब उसने अपने घर पर नजर डाली तो उसे अपना बहुत सा कीमती सामान गायब नजर आया. वह समझ गई कि यह सब चिकित्सक ही चुरा ले गया है क्योंकि उसके अलावा और कोई उसके घर में आता ही नहीं था. 

बुढ़िया की आँखों की रौशनी वापस आने के बाद जब चिकित्सक ने अपनी फीस मांगी तो बुढ़िया ने साफ़ इनकार कर दिया. बोली - "मुझे पहले की तरह दिखाई नहीं दे रहा है, इसलिए पैसे नहीं दूंगी." 

चिकित्सक बोला - "तुम झूठ बोलती हो. तुम्हें सबकुछ साफ़ साफ दिखाई दे रहा है पर तुम मेरे पैसे नहीं देना चाहतीं." 

बुढ़िया बोली - "तुम चाहे जो समझो पर मैं एक पैसा नहीं दूंगी." 

चिकित्सक ने बुढ़िया को बहुत समझाया, डराया, धमकाया, अनुनय विनय की परन्तु बुढ़िया टस से मस नहीं हुई. हार कर चिकित्सक ने उसके खिलाफ कचहरी में मुक़दमा कर दिया. 

न्यायाधीश ने बुढ़िया से कहा - "तुम इस चिकित्सक के पैसे क्यों नहीं दे रही हो ?"

बुढ़िया बोली - "हुजूर, इस चिकित्सक के साथ मेरा ये तय हुआ था कि मुझे पहले की तरह दिखाई देने लगेगा तो ही पैसे दूंगी. जब मुझे पहले की तरह दिखाई दे ही नहीं रहा है तो किस बात के पैसे दूँ ?"

न्यायाधीश ने पूछा - "पहले की तरह दिखाई देने से तुम्हारा क्या मतलब है ? "

बुढ़िया बोली - "हुजूर, मेरा घर कीमती सामानों से भरा हुआ था. पहले मुझे वह सब सामान दिखाई देता था किन्तु अब इनके इलाज के बाद मुझे मेरे घर में वह एक भी सामान नजर नहीं आ रहा है. आप ही बताइये, मैं कैसे मान लूँ कि मेरी नजर वापस आ गई है जब मुझे मेरा सामान ही नहीं दिखाई दे रहा है ?"

 बुद्धिमान न्यायाधीश बुढ़िया की बात समझ गया. उसने सिपाही भेजकर चिकित्सक के घर की तलाशी करवाई तो वहाँ बुढ़िया का सारा सामान मिल गया. 

न्यायाधीश ने बुढ़िया को उसका सारा सामान देकर विदा किया और चिकित्सक को फीस मिलने की जगह उससे दो हजार का जुर्माना भरवाया. 

(Isap ki kahaniya, Ishap ki kahanayan)




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