डॉक्टर गोल्डस्मिथ की दवाई | Doctor Goldsmith - An inspiring story

अठारहवीं सदी में ओलिवर गोल्डस्मिथ (Oliver Goldsmith) नाम के एक मशहूर लेखक थे. उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं हालाँकि यह किस्सा उनके लेखन से सम्बंधित नहीं है. 

वे बड़े ही दयालु क़िस्म के इंसान थे और गरीबों की मदद करने को सदैव तत्पर रहते थे. वे गरीबों को इतना दान देते थे कि जिसके कारण उन्हें खुद भी अक्सर गरीबी में ही जीवन व्यतीत करना पड़ता था. 

लेखक होने के अलावा उनका एक और रूप भी था. उन्होंने चिकित्सा-विज्ञानं की पढ़ाई की थी और वे डाक्टरी भी करते थे. इसलिए लोग उन्हें डॉक्टर गोल्डस्मिथ के नाम से भी जानते थे. 

एक बार एक गरीब महिला डॉक्टर गोल्डस्मिथ के पास आई और उनसे घर चलकर अपने पति को देखने की प्रार्थना करने लगी. उसका पति कुछ दिनों से बीमार था और ठीक से खा पी नहीं रहा था. 

गोल्डस्मिथ उस महिला के घर पहुंचे. उन्होंने मरीज की अकेले में जांच की, उससे बात की, और पाया कि उसे कोई बीमारी नहीं है बल्कि वह गहरे अवसाद में है. आदमी लम्बे समय से बेरोजगार था और इसी चिंता में बिस्तर से लग गया था. 

जहां तक उसके खाना न खाने की बात थी तो घर में फाके हो रहे थे, वो बेचारा खाए भी तो क्या खाए ?

डॉक्टर गोल्डस्मिथ ने बाहर आकर महिला से कहा कि वह शाम को उनके क्लिनिक आकर दवाई ले जाए. 

शाम को जब महिला क्लिनिक पहुंची तो डॉक्टर गोल्डस्मिथ ने उसे एक कागज़ का छोटा सा, किन्तु अपेक्षाकृत भारी पैकेट पकडाते हुए कहा - "इसमें दवाई है. मुझे उम्मीद है यह तुम्हारे पति को जरूर अच्छा कर देगी. किन्तु एक बात का ध्यान रखना, इस पैकेट को घर पर जाकर ही खोलना."

महिला ने पूछा - "डॉक्टर साहब, दवाई कब और कैसे खानी है, ये तो बता दीजिये ?"

डॉक्टर गोल्डस्मिथ बोले - "वह सब पर्चे पर लिखकर मैंने पैकेट के भीतर रख दिया है."

घर जाकर जब महिला और उसके पति ने वह पैकेट खोला तो आप सोच सकते हैं कि उस पैकेट में क्या था ? 

उस पैकेट में नोट ही नोट थे .... उस रोज डॉक्टर साहब अपने सभी स्रोतों से जितने जुटा पाए थे, उतने नोट !

साथ में एक परचा भी रखा था जिस पर लिखा था - "To be taken as often as necessity requires."

अर्थात, जब जैसी आवश्यकता हो, तब उतनी लेना है. 

(मूल स्रोत : James Baldwin)




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