राजा और बाज़ - हिन्दी लोक कथा | Raja aur Baaz - Hindi Lok Katha

बहुत पुरानी बात है. गर्मियों का मौसम था. ऐसे में एक राजा अपने दलबल सहित जंगल में शिकार के लिए निकला. राजा के साथ उसका एक पालतू बाज़ पक्षी था जो उसके कंधे पर बैठा रहता था. वह एक प्रशिक्षित और वफादार बाज़ था. शिकार अभियान के दौरान बीच बीच में राजा का इशारा पाकर वह आसमान में उड़ जाता और आसपास यदि कोई शिकार नजर आता तो उस स्थान पर झपट्टा मार कर राजा को सूचना दे देता. 

उस दिन राजा और उसके साथी पूरी दोपहर जंगल में भटकते रहे किन्तु उन्हें कोई ढंग का शिकार नहीं मिला. जब शाम होने लगी तो उन्होंने वापस राजधानी की ओर रुख किया. 

राजा को बहुत प्यास लगी थी इसलिए वह अपने अन्य साथियों के साथ न जाकर, अकेला ही एक अन्य पहाड़ी रास्ते से राजधानी की ओर चला. दरअसल इस रास्ते पर एक झरना मिलता था जिसके पानी से वह अपनी प्यास बुझाना चाहता था. इस रास्ते में उसका एक ही साथी था, और वह था उसका प्यारा बाज़, जो उसके कंधे पर बैठा हुआ था. 

थकामांदा राजा ऊबड़खाबड़ पहाड़ी रास्तों पर चलते हुए जब झरने के पास पहुंचा तो उसने पाया कि गर्मी के कारण झरना सूख चुका है और वहाँ पानी का नामोनिशान तक नहीं है. यह देखकर उसे बड़ी निराशा हुई क्योंकि उसे बहुत तेज प्यास लगी थी. वह आसपास नजर दौडाने लगा कि शायद कहीं किसी गड्ढे में भरा हुआ एक-दो चुल्लू पानी दिख जाय. 

अचानक उसे एक जगह पर जमीन कुछ गीली सी दिखाई दी. राजा वहाँ पहुंचा तो उसने देखा कि ऊपर चट्टान की एक दरार से धीरे -धीरे एक-एक बूँद पानी टपक रहा है. राजा समझ गया कि चट्टान के ऊपर जरूर कहीं किसी गड्ढे में पानी भरा है जो रिस रिस कर आ रहा है. 

किन्तु चट्टान के ऊपर तक चढ़ने की ताक़त अब उसके शरीर में नहीं बची थी. सौभाग्य से उसके थैले में चांदी का एक कप रखा हुआ था, जिसे उसने निकाला और उसमें वह बूँद-बूँद पानी इकठ्ठा करने लगा. इसी बीच राजा के कंधे पर बैठा बाज़ उड़कर आसमान में चला गया. 

काफी देर इंतज़ार करने के बाद राजा के कप में दो - तीन घूँट पानी भर गया. उसने सोचा पहले इसे पी लूँ फिर और भरता हूँ. वह जैसे ही पानी पीने के लिए कप को मुँह के पास ले गया, तभी आसमान से अचानक बाज़ झपट्टा मारता हुआ आया और उसने राजा के हाथ का कप नीचे गिरा दिया. पूरा पानी जमीन पर फ़ैल गया. 

राजा को बाज़ की हरकत पर गुस्सा तो बहुत आया परन्तु वह उसे बहुत प्यार करता था, इसलिए गुस्से को पीकर रह गया. उसने फिर से कप उठाया और फिर बूँद बूँद पानी उसमें इकठ्ठा करने लगा. 

दुबारा जब कप में पीने लायक पानी भर गया और राजा उसे पीने चला तो बाज़ ने फिर झपट्टा मारा और पानी गिरा दिया. अब तो राजा को और भी ज्यादा गुस्सा आया और वह बाज़ को भला-बुरा कहकर डांटने लगा. बाज़ उड़कर थोड़ी दूर चट्टान पर जा बैठा. 

किन्तु तीसरी बार भी यही हुआ. जैसे ही राजा ने बड़ी मुश्किल से भरे हुए कप को पीने के लिए मुँह की ओर बढ़ाया, बाज़ ने फिर से झपट्टा मार कर उसे गिरा दिया. अब तो राजा के क्रोध का पारावार न रहा. 

अबकी बार उसने एक हाथ में तलवार निकाल ली और दूसरे हाथ से कप में पानी भरने लगा. बाज़ दूर बैठा यह सब देख रहा था. जैसे ही राजा ने भरे हुए कप को मुँह की ओर बढ़ाया, बाज़ फिर से आया और कप को गिरा दिया. किन्तु इस बार राजा तैयार था. उसने तलवार का एक जोरदार वार किया और पक्षी वहीं दो टुकड़ों में बंट गया. 

बाज़ तो मर गया किन्तु इस बीच वह कप भी राजा के हाथ से छिटक गया और दो चट्टानों के बीच जाकर इस तरह से अटक गया कि उसे निकालना उसके लिए संभव न रहा. 

"पानी तो आज मैं पीकर ही रहूँगा," राजा ने सोचा और वह चट्टान के ऊपर चढ़ने की कोशिश करने लगा ताकि उसी गड्ढे से पानी पी सके जहां से वह रिस रहा था. 

किसी तरह वह चट्टान के ऊपर चढ़ने में सफल हो गया और वहाँ जाकर उसे प्रसन्नता हुई क्योंकि वहाँ सचमुच चट्टान के बीचोंबीच एक छोटा सा गड्ढा बना हुआ था जिसमें पानी भरा हुआ था. 

राजा तेजी से पानी पीने के लिए गड्ढे के पास पहुंचा किन्तु वहाँ पहुँचते ही उसके कदम अचानक ठिठक गए. गड्ढे के पानी में एक बड़ा सा सांप, जो अत्यंत विषैली प्रजाति का था, मरा हुआ पड़ा था. 

अब राजा को समझ में आया कि बाज़ उसे पानी पीने से क्यों रोक रहा था ? क्यों वह बार बार उसके हाथ से पानी का भरा हुआ कप गिरा देता था ? वह तो मेरी जान बचाना चाहता था किन्तु मैंने उसके साथ क्या किया ? अपना जीवन बचाने वाले की जान ले ली ?

ग्लानि और क्षोभ से भरा हुआ राजा चट्टान से नीचे उतरा और बाज़ के शरीर के टुकड़ों को समेट कर गोद में रखे काफी देर तक बैठा बैठा रोता रहा. फिर भारी मन से राजधानी की ओर चल दिया. 

आज उसने जीवन का एक बहुत बड़ा सबक सीखा था कि क्रोध की अवस्था में कोई काम नहीं करना चाहिए बल्कि क्रोध आने पर उसके शांत होने का इंतज़ार करना चाहिए. 




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