दुनिया का सबसे खुशकिस्मत आदमी | A remarkable story from history

ईसा से लगभग छह सौ साल पहले मध्य एशिया में क्रोएसस (Croesus) नाम का एक राजा था. उसका राज्य बहुत बड़ा तो नहीं था किन्तु उसके राज्य में खुशहाली और समृद्धि बहुत थी. खुद क्रोएसस के पास इतनी संपत्ति थी कि उस समय उसे दुनिया का सबसे अमीर आदमी माना जाता था. 

क्रोएसस के पास वह सबकुछ था जिसका कोई भी इंसान सपना देख सकता है. जमीन, सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात, आलीशान महल, नौकर चाकर, पहनने के लिए शानदार परिधान, देखने के लिए खूबसूरत नज़ारे आदि. कहने का अर्थ यह, कि संसार की कोई वस्तु ऐसी नहीं थी जो उसे अप्राप्य हो और इसीलिए कभी कभी वह सोचता था कि 'मैं दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान हूँ."

एक बार उसके राज्य में सोलोन (Solon) नाम के उस समय के एक बहुत बड़े ज्ञानी और दार्शनिक का आगमन हुआ. सोलोन मूलतः एथेन्स (Athens, Greece) का रहने वाला था और एशिया के भ्रमण पर निकला था. इतने बड़े विश्वविख्यात व्यक्ति का अपने राज्य में आगमन सुनकर क्रोएसस बहुत प्रसन्न हुआ. 

उसने सोलोन का जोरदार स्वागत किया तथा उसे अपना आलीशान महल दिखाया जिसमें दुनिया की हर सुखसुविधा मौजूद थी. उसने उसे अपने शानदार बाग़-बगीचे दिखाए, अपने अस्तबल दिखाए और दुनिया भर की दुर्लभ चीज़ों का संग्रह दिखाया. 

उस दिन शाम को, जब दुनिया का सबसे ज्ञानी आदमी और दुनिया का सबसे अमीर आदमी, एक साथ बैठकर भोजन कर रहे थे तब राजा ने सोलोन से पूछा - "श्रीमान सोलोन, आपने दुनिया देखी है और ज्ञानार्जन किया है. कृपया मुझे बताइये कि आपके हिसाब से दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान कौन है ?" दरअसल उसे आशा थी कि उसका वैभव और ठाटबाट देखने के बाद सोलोन कहेगा, "क्रोएसस". 

किन्तु सोलोन ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया. वह लगभग एक मिनट तक सोचता रहा जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो, फिर बोला - "मुझे एक गरीब आदमी याद आता है जो किसी ज़माने में एथेन्स में रहता था और उसका नाम टेलस था."

यह वह जवाब बिलकुल नहीं था जिसकी क्रोएसस आशा कर रहा था, फिर भी उसने अपने मनोभावों को दबाते हुए पूछा - "अच्छा ! गरीब आदमी ? भला आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि वो सबसे खुशकिस्मत था ?"

"क्योंकि," सोलोन ने कहा, "टेलस एक ईमानदार आदमी था जिसने कई साल अपने खेतों में मेहनत से काम किया ताकि वह अपने बच्चों का सही तरीके से पालन पोषण कर सके और उन्हें अच्छी शिक्षा दिलवा सके. जब उसके बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए और वह जिम्मेदारियों से मुक्त हो गया तब वह एथेन्स की सेना में भर्ती हो गया और एक दिन एक युद्ध में अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया. अब आप ही बताइये टेलस से बढ़कर खुशकिस्मत आदमी और कौन होगा ? "

"आप ठीक ही कहते हैं," टेलस ने ऊपरी मन से कहा, क्योंकि उसे टेलस की कहानी में कहीं भी खुशकिस्मती का अंश तक नजर नहीं आया था. फिर कुछ देर रूककर उसने दोबारा पूछा - "अच्छा, टेलस के बाद आपके विचार से दूसरा खुशकिस्मत इंसान और कौन हो सकता है दुनिया में ?"

अबकी बार उसे पक्का यकीन था कि सोलोन उसी का नाम लेगा किन्तु सोलोन एक बार फिर कुछ देर के लिए विचार-मग्न हो गया और फिर बोला - "हाँ, टेलस के बाद दूसरे खुशकिस्मत इंसानों के रूप में मुझे ग्रीस के दो नौजवान याद आते हैं जिनके पिता उनके बचपन में ही गुजर गए थे. घर में अगर कुछ था तो वह थी घनघोर गरीबी और एक बीमार माँ ! किन्तु उन दोनों बच्चों ने अतुलनीय पुरुषार्थ करते हुए घर की हालत को संभाला और अपनी बीमार माँ की सेवा की. उन दोनों ने वर्षों कड़ी मेहनत की और अपनी माँ की सेवा में अपने आपको समर्पित कर दिया. फिर कई साल बाद जब उनकी माँ गुजर गई, तब भी उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं किया बल्कि अपने देश की सेवा में लग गए और जब तक जिए देश सेवा ही करते रहे !"

अब तो क्रोएसस को गुस्सा आ गया. बोला, "ये क्या है, सोलोन ? आपके सामने दुनिया का सबसे धनवान राजा बैठा हुआ है, आपको उसकी खुशकिस्मती दिखाई नहीं दे रही ? आप मेरे नाम का जिक्र तक नहीं कर रहे बल्कि मुझे गुजर चुके गरीबों की कहानियां सुनाये चले जा रहे हैं ?"

तब सोलोन बोला - "राजन ! जब तक आप जीवित हैं तब तक मैं ये कैसे कह सकता हूँ कि आप खुशकिस्मत हैं या बदकिस्मत ? जीवन में आपदाएं विपदाएं कभी भी आ सकती हैं, खुशकिस्मती कभी भी बदकिस्मती में बदल सकती है, इस बारे में कोई कुछ नहीं जानता, इसीलिए मैं अभी आपके बारे में कुछ नहीं कह सकता."

क्रोएसस और सोलोन के बीच हुए वार्तालाप की इस घटना के कई साल बाद, एशिया में एक नई सैन्य शक्ति का उदय हुआ, जिसका प्रमुख था राजा सायरस. 

सायरस एक विशाल सेना लेकर अपने सैन्य अभियान पर निकला और एक के बाद दूसरे देश को पराजित करता हुआ, एक दिन, क्रोएसस के राज्य की सीमा पर आ खड़ा हुआ. 

क्रोएसस के पास धनसम्पदा तो अकूत थी किन्तु उसकी सेना सायरस की सेना के आगे कुछ भी न थी. नतीजा वही हुआ, जो होना था. क्रोएसस की सेना ने बहुत बहादुरी से मुकाबला किया किन्तु हार गई. 

विजयी राजा सायरस की सेना ने क्रोएसस के आलीशान महल को जला दिया, उसके खूबसूरत बाग़-बगीचे रौंद डाले और खजाने को लूट लिया. खुद क्रोएसस को बंदी बना लिया गया. 

"इस जिद्दी आदमी की वजह से हमारे बहुत से बहादुर सैनिक मारे गए हैं," राजा सायरस ने क्रोध भरी आँखों से क्रोएसस की ओर देखते हुए कहा, "इसे ले जाओ और ऐसी सजा दो जिससे दूसरा कोई राजा इसकी तरह हमारे सामने सर उठाने की हिम्मत न कर सके !"

राजा का आदेश पाते ही सैनिक क्रोएसस को घसीटते हुए बीच बाजार में स्थित चौक की ओर ले चले जहां उसे जिन्दा जलाया जाना था. जलाने के लिए लकडियाँ इकट्ठी की गईं, चिता बनाई गई और एक सैनिक आग लगाने के लिए मशाल लाने दौड़ गया. 

बेचारा क्रोएसस, जो उस समय बहुत दुखी था, अचानक कुछ याद करने लगा. उसे वर्षों पहले सोलोन के कहे गए शब्द आने लगे. खुशकिस्मती कब बदकिस्मती में बदल जाए, कोई नहीं जानता. 

यह याद आते ही उसके मुख से अस्फुट से शब्द फूट पड़े - "ओह सोलोन ! ओह सोलोन ! सोलोन !"

राजा सायरस, जो क्रोएसस के जिन्दा जलाए जाने का तमाशा देखने आया था, संयोग से उस समय क्रोएसस के पीछे ही खड़ा था. उसने जब क्रोएसस के मुख से 'सोलोन' का नाम सुना तो उसे हैरत हुई क्योंकि वह भी सोलोन के नाम से परिचित था. 

उसने क्रोएसस से पूछा - "तुमने सोलोन का नाम क्यों लिया ?"

पहले तो क्रोएसस ने कोई जवाब नहीं दिया और चुप बैठा रहा किन्तु जब सायरस ने बार बार वही सवाल पूछा तो क्रोएसस ने सोलोन के साथ हुए अपने वार्तालाप की पूरी घटना सुना दी. 

राजा सायरस पर उस कहानी का गहरा प्रभाव पड़ा. वह सोचने लगा, 'सचमुच कोई नहीं जानता कि इंसान का वक़्त कब बदल जाए ? जो आज खुशकिस्मत है वह कल बदकिस्मत भी हो सकता है. जिस तरह आज क्रोएसस, जो कि कल तक अपने को दुनिया का सबसे धनवान समझता था, मेरे सामने बेबस है, उसी तरह कल किसी मुझसे भी शक्तिशाली राजा के सामने मैं भी बेबस हो सकता हूँ !' 

बस, उसने क्रोएसस को मारने का इरादा त्याग दिया. न सिर्फ उसकी जान बख्शी, बल्कि उसका राज्य भी उसे लौटा दिया और उससे मित्रता करके चला गया.




Post a Comment

0 Comments