बहुत समय पहले, काउंट चार्नी (Charney) नाम का एक आदमी, सम्राट नेपोलियन का विरोधी होने के कारण फ़्रांस की जेल में बंद था. उस पर सम्राट के खिलाफ षड़यंत्र रचने का संदेह किया गया था. शासन की नजर में वह एक खतरनाक कैदी था इसलिए उससे किसी को मिलने की इजाजत नहीं थी. बाहरी दुनिया से उसका संपर्क लगभग पूरी तरह से कटा हुआ था जिसकी वजह से वह बहुत उदास रहता था.
जेल में उसके पास करने के लिए कोई काम नहीं था, जिस कारण एक - एक दिन उसे पहाड़ सा प्रतीत होता. उसका समय अक्सर अपनी कोठरी के बाहर बरामदे में टहलते हुए बीतता था. कभी वह कोठरी में जाकर लेट जाता तो कभी बरामदे में इधर से उधर निरुद्देश्य टहलता रहता और बरामदे के फर्श में जड़े पत्थरों को गिनता रहता. इसी तरह कुछ साल बीत गए.
बसंत ऋतु की एक सुबह की बात है. चार्नी हमेशा की तरह बरामदे में टहल रहा था कि एकाएक उसके कदम रुक गए. बरामदे के फर्श में जड़े पत्थरों के बीच की एक दरार में उसे एक नन्हा अंकुर सा फूटा हुआ दिखाई दिया. उसने झुककर गौर से देखा तो सचमुच वह अंकुर ही था. पता नहीं कैसे कोई बीज उस दरार में फंस गया था जो अंकुरित हो गया था.
उस अंकुर में एक छोटी सी नन्हीं सी पत्ती दिखाई दे रही थी. चार्नी को पहली बार जेल की अपनी उस छोटी सी दुनिया में कुछ नया होता हुआ दिखाई दिया था. उस अंकुर को देखते ही उसे न जाने क्यों उस पर प्यार सा आ गया. काफी देर तक उसे गौर से निहारने के बाद वह फिर टहलने लगा. लेकिन अब वह सावधानी से टहल रहा था कि कहीं उसका पैर उन नन्हे पौधे के ऊपर न पड़ जाए.
अगले रोज उसने फिर देखा तो पाया कि अंकुर में अब दो पत्तियाँ निकल आईं हैं और वह दरार के ऊपर निकलना चाहती हैं. अब तो उस नन्हे से पौधे को बढ़ते हुए देखते देखते ही उसके दिन बीतने लगे. वह घंटों उसे निहारता रहता और जब टहलता, तो पूरी सावधानी से टहलता ताकि पौधा कहीं कुचला न जाए.
एक दिन अपनी कोठरी की खिड़की से उसने जेलर को अपनी कोठरी की ओर आते हुए देखा. जेलर उसी बरामदे से होकर चला आ रहा था. जैसे ही जेलर पौधे के नजदीक पहुंचा, उसे लगा कि वह पौधे को कुचल देगा. वह अचानक बदहवास सा खिड़की से हाथ निकालकर चिल्लाया - "अरे ! जेलर साहब ! मेरा पौधा..... !"
चार्नी की आवाज सुनकर जेलर जहां था वहीं ठिठक गया. उसने बड़े कातर स्वर में जेलर से पौधे को बचाते हुए निकलने की प्रार्थना की. हालांकि उसे आशंका थी कि नेपोलियन की जेल का जेलर होने के नाते वह भी उससे नफरत करता होगा और शायद ही उसकी प्रार्थना स्वीकार करेगा, किन्तु उसकी आशंका के विपरीत, जेलर भला आदमी निकला.
"ओह, तो तुम्हें लगता है मैं इतना कठोर हूँ कि तुम्हारे इस प्यारे से नन्हे पौधे को कुचल दूंगा ?" जेलर कोमल स्वर में बोला, "बिलकुल नहीं, यदि मैं ऐसा सोचता तो ये पौधा कब का कुचला जा चुका होता? मुझे मालूम है तुम्हें इस पौधे से काफी लगाव है, इसीलिए मैं जब भी यहाँ से गुजरता हूँ, इसका विशेष ध्यान रखता हूँ."
चार्नी को जेलर से ऐसे जवाब की आशा न थी. उसने लगभग शर्मिंदा होते हुए जेलर को उसकी भावनाओं का सम्मान करने के लिए धन्यवाद दिया.
उसने उस पौधे का नाम रखा Picciola. हर दिन वह Picciola को बढ़ते हुए देखता और उसकी खूबसूरती पर मुग्ध होता.
लेकिन एक दिन जेलर के भारीभरकम कुत्ते का पैर उस पौधे पर पड़ ही गया और उसका नाज़ुक तना एक जगह से टूट गया. और इसी के साथ टूट गया चार्नी का दिल !
"मुझे Picciola के लिए एक घर बनाना होगा, ताकि भविष्य में गलती से भी किसी का पैर इसके ऊपर न पड़े," चार्नी ने मन ही मन तय किया.
जेल में उसे ठण्ड से बचाव हेतु अलाव जलाने के लिए कुछ लकडियाँ दी जाती थीं, उन लकड़ियों को उसने बचाकर पौधे के चारों तरफ एक घेरा सा बना दिया.
वह बीज किसी फूलदार पौधे का था. धीरे-धीरे और समय बीता और उस पौधे पर फूल खिलने लगे. वह पौधे के विकास क्रम को बारीकी से देखता रहा और उसका अध्ययन करता रहा. वह अपनी इन जानकारियों को लिखना चाहता था किन्तु उसके पास कागज़ कलम नहीं था और न ही उसे इन चीज़ों के इस्तेमाल की इजाजत थी.
उसने लकडियाँ जलाने से जो धुएं की जो कालिख दीवारों पर जम जाती थी, उसे स्याही के रूप में इस्तेमाल किया, फटे - पुराने कपड़ों को कागज़ बनाया और अपने नवार्जित ज्ञान को लेखबद्ध किया.
गर्मियां बीतते बीतते Picciola और भी खूबसूरत दिखाई देने लगा. उस समय उसके ऊपर लगभग तीस फूल खिले हुए थे. फिर एक दिन अचानक, सुबह सुबह चार्नी ने देखा कि पौधा कुम्हलाने लगा है. उसे समझ नहीं आया कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. उसने पौधे को पानी दिया, बार - बार दिया, किन्तु इसके बावजूद पौधे में ऐसे लक्षण दिखाई देने लगे जैसे वह सूखता जा रहा हो.
चार्नी की बेचैनी इस तरह बढ़ने लगी, जैसे उसका अपना कोई सगा बीमार हो गया हो. वह सबकुछ भूलभाल कर यह पता लगाने में जुट गया कि आखिर पौधा सूख क्यों रहा है?
आखिर बात उसकी समझ में आ गई. दरअसल दो पत्थरों के बीच की जिस दरार में वह उगा था, उतनी जगह अब उसके लिए छोटी पड़ने लगी थी. उसे विकास के लिए और ज्यादा जगह की जरूरत थी. जगह बनाने के लिए उसके आसपास के पत्थरों को हटाया जाना अत्यंत जरूरी था. किन्तु यह कोई आसान काम न था. या कहें कि असंभव ही था !
जिस जेल में वह कैद था वह नेपोलियन की जेल थी और चार्नी तो नेपोलियन के खिलाफ षड़यंत्र के आरोप में ही बंद था. कहने का अर्थ यह कि उससे सम्बंधित कोई भी निर्णय बिना सम्राट की अनुमति के नहीं लिया जा सकता था. फिर भले ही वह फर्श के दो पत्थर हटाने का मसला ही क्यों न हो ?
जेलर ने साफ़ हाथ खड़े कर दिए. उसकी क्या मजाल कि सम्राट के शत्रु कैदी की इच्छा पूरी करे या करने के सम्बन्ध में सोचे भी ?
चार्नी भी इस बात को जानता था कि जेलर न तो खुद पत्थरों को हटाएगा न ही उसे हटाने देगा. वह अच्छी तरह जानता था कि बिना सम्राट की अनुमति के पौधे को बचाना असंभव है. किन्तु वह सम्राट से अनुमति कैसे मांगे ? उसने सम्राट के खिलाफ षड़यंत्र भले न किया हो किन्तु वह सम्राट को पसंद नहीं करता था, यह तो सत्य था. वह व्यक्ति, जिसका वह विरोधी है, उससे याचना कैसे करे ?
उसने पौधे की ओर देखा तो उसे अपना दिल बैठता सा लगा. याचना नहीं की तो यह पौधा निश्चित मर जाएगा. आत्म-सम्मान और पौधे के प्रति प्यार के द्वंद्व में पौधे का प्यार जीत गया. ऐसा आत्म-सम्मान किस काम का जो एक पौधे का जीवन न बचा सके ? उसने तय कर लिया कि वह सम्राट के पास विनती पत्र भेजेगा.
किन्तु सम्राट तक विनती पहुंचाना उसके लिए आसान न था. कागज़ कलम के इस्तेमाल की उसे इजाजत न थी. खैर, वह समस्या तो उसने कालिख और फटे पुराने कपड़ों के इस्तेमाल से दूर कर ली थी. लेकिन जेलर इतना छोटा आदमी था कि उसकी हैसियत और हिम्मत दोनों ही नहीं थी कि सम्राट तक उसकी बात पहुंचा सके. चार्नी को समझ नहीं आ रहा था कि सम्राट तक अपनी बात कैसे पहुंचाए ?
चार्नी के पास वाली कोठरी में एक और कैदी था जिसकी खूबसूरत बेटी, टेरेसा, अक्सर उससे मिलने आया करती थी. टेरेसा चार्नी को पौधे की देखभाल करते हुए देखती थी और उससे काफी प्रभावित थी. आखिरकार चार्नी का सन्देश सम्राट तक पहुंचाने का बीड़ा टेरेसा ने ही उठाया.
टेरेसा किसी तरह चार्नी का पत्र सम्राट तक पहुंचाने में कामयाब रही.
कुछ ही दिनों की प्रतीक्षा के बाद, एक दिन चार्नी ने देखा कि Picciola के आसपास के पत्थर हटाये जा रहे हैं. ये उसके लिए सबसे बड़ी ख़ुशी का दिन था. उसका पौधा अब जीवित रह सकता था.
सम्राट की पत्नी, अर्थात साम्राज्ञी को जब चार्नी और पौधे की कहानी के बारे में पता चला और उन्होंने जब वह कपडा देखा जिस पर चार्नी ने अपना सन्देश सम्राट को लिख भेजा था, तो उन्होंने कहा - "इतने दयालु आदमी को जेल में रखना उचित नहीं है. ये षड़यंत्रकारी नहीं हो सकता."
और, आखिरकार, चार्नी को जेल से रिहा कर दिया गया.
पौधे के प्रति चार्नी के प्रेम ने उसे जीवनदान दिया, और पौधे ने चार्नी को आजादी दिलाई.
0 Comments