पुराने जमाने की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता था. सौभाग्य से उस किसान को बहुत ही सीधी सादी और नेक पत्नी मिली थी. कई वर्षों के वैवाहिक जीवन में वह कभी पति से झगड़ना तो दूर, रूठी तक न थी. लड़ाई झगड़ा जैसे वह जानती ही न थी. हर बात में वह पति की हाँ में हाँ मिलाती और किसान जो भी करता, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, उसकी तारीफ़ करती.
किसान के मित्र अक्सर उससे कहते - "तुम हर काम पत्नी के मन मुताबिक़ करते हो इसीलिए वह तुमसे झगड़ा नहीं करती. कभी कोई ऐसा काम करो जो उसे पसंद न आये फिर देखना वह तुम्हारी क्या गत बनाती है."
परन्तु किसान मित्रों पड़ोसियों की ऐसी बातें सुनकर सिर्फ मुस्कुराकर रह जाता, क्योंकि वह जानता था कि उसकी पत्नी सचमुच बहुत अच्छी है.
उस किसान के पास थोड़ी सी जमीन और दो गायें थीं, जिससे उसका गुजारा आसानी से हो जाता था. पत्नी नेक होने के साथ साथ कुशल गृहणी भी थी जिससे उसने थोड़ी थोड़ी बचत करके अपने पास लगभग सौ रुपये भी जमा कर लिए थे.
एक रोज उसने अपने पति से कहा - "हमारे पास दो गायें हैं जिनकी चारा टहल करने में आपको बहुत मेहनत करनी पड़ती है. मुझसे यह देखा नहीं जाता. क्यों न आप एक गाय को बाजार में जाकर बेच दें ? हमारे लिए तो एक ही गाय काफी है."
पत्नी की बात किसान को जंच गई. सचमुच दो गायों की देखभाल करने में उसे बहुत मेहनत करनी पड़ती थी. इसलिए अगले ही दिन वह गाय को लेकर शहर के बाजार में बेचने के लिए चल दिया.
वह अपनी गाय के दाम सौ रुपये के आसपास चाहता था किन्तु उस रोज किसी ने भी उसके पचास रुपये से अधिक नहीं लगाए. यह देखकर किसान ने गाय बेचने का इरादा बदल दिया और शाम होने के पहले ही अपनी गाय लेकर वापस गाँव की ओर चल दिया.
वह वापस तो चल दिया किन्तु गाय के न बिक पाने का उसे बहुत अफ़सोस हो रहा था. जैसे जैसे वह आगे बढ़ता जा रहा था उसे पछतावा होने लगा कि वह उसे पचास रुपये में ही बेच देता तो भी ठीक था.
खैर, आगे रास्ते में उसे एक आदमी मिला जो घोड़े पर सवार था. संयोग से उस घुड़सवार को किसान की गाय बहुत पसंद आई और उसने घोड़े के बदले किसान से वह गाय लेनी चाही. किसान तो वैसे भी गाय से छुटकारा चाहता था, उसने फ़ौरन गाय देकर घोड़ा ले लिया.
घोड़े को लेकर किसान आगे चला तो वह फिर सोचने लगा कि गाय के बदले घोड़ा लेकर उसे क्या फायदा हुआ. इस घोड़े की देखभाल में भी उसे उतनी ही मेहनत करनी पड़ेगी, यह भी गाय से कम चारा नहीं खायेगा.
वह सोचता जा रहा था कि तभी उसे एक और आदमी मिला जो बकरी लिए हुए जा रहा था. किसान को पता नहीं क्यों, उसकी बकरी पसंद आ गई. उसने बकरी के मालिक से पूछा कि क्या वह घोड़े के बदले बकरी दे सकता है ? घोड़े के बदले बकरी देने को कोई क्यों मना करता, सो बकरी के मालिक ने तुरंत बकरी किसान को थमा दी और खुद घोड़े को लेकर चला गया.
अब वह बकरी लेकर थोड़ी दूर चला तो उसके दिमाग में आने लगा कि बकरियां तो जल्दी जल्दी बच्चे देती हैं. कुछ ही समय में उसके घर बकरियों का झुण्ड हो जाएगा और उसे आराम मिलने के बजाय और भी ज्यादा काम करना पड़ेगा.
इन्हीं ख्यालों में डूबा वह चला जा रहा था कि उसे एक औरत मिली जिसके हाथ में एक मुर्गी थी. बातों बातों में किसान ने अपनी बकरी उस औरत की मुर्गी से बदल ली और प्रसन्न मन से घर की ओर चल पड़ा.
उसका गाँव अभी भी काफी दूर था और रास्ते में उसे तेज़ भूख लगने लगी. मगर उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह कहीं भोजन कर सके, सो रास्ते में मिलने वाले एक भोजनालय पर उसने मुर्गी के बदले पेट भर भोजन किया और खाली हाथ अपने घर की ओर चल पड़ा.
जब वह अपने गाँव पहुंचा तो घर के बाहर ही उसे अपना पडोसी मिला. उसने पूछा - "क्यों भाई, सुना है गाय बेचने शहर गए थे. अच्छा सौदा करके आये हो न ?"
किसान ने उसे पूरे दिन का ब्यौरा सुना दिया और कहा कि गाय भी चली गई और वह खाली हाथ घर लौट आया है.
यह सुनकर पडोसी बोला, "यह तुमने क्या किया भाई ? अब यह बात तुम अपनी पत्नी को जाकर कैसे बताओगे ? जब उसे पता चलेगा कि तुम खाली हाथ घर लौटे हो तो वह आसमान सिर पर उठा लेगी, तुमसे झगड़ा करेगी और हो सकता है दो चार दिन तुम्हें भोजन भी नहीं मिले !"
किन्तु किसान पडोसी की इस बात से बिलकुल भी चिंतित नहीं हुआ, बोला - "मेरी पत्नी झगड़ा करने वालियों में से नहीं है."
पडोसी बोला, "मैं जानता हूँ तुम्हारी पत्नी बहुत सीधीसादी है लेकिन जो बेवकूफी तुमने आज की है उसे कोई भी औरत बर्दाश्त नहीं कर सकती, भले ही वह कितनी ही अच्छी क्यों न हो? आज तो तुम्हारी खैर नहीं है बच्चू !"
किसान फिर भी निश्चिन्त भाव से बोला, "मेरी पत्नी झगड़ा नहीं करेगी, तुम देख लेना."
पडोसी बोला, "शर्त लगाते हो ?"
किसान बोला, "लगा लो शर्त ... तुम मेरे साथ चलो और मेरे घर के दरवाजे के पास छुप जाना. मैं भीतर जाऊँगा और जो बातें तुम्हें बताईं हैं, वही सारी पत्नी को भी बताऊँगा. अगर वह मेरे ऊपर चीखे चिल्लाये तो मेरे घर में बचत के सौ रुपये रखे हैं, वह मैं तुम्हें दे दूंगा. अगर वह नाराज नहीं हुई तो तुम मुझे सौ रुपये दोगे. बोलो मंजूर है ?"
"मंजूर है", पडोसी बोला.
दोनों किसान के घर पहुंचे. पडोसी दरवाजे के पास छिपकर कान लगाकर खड़ा हो गया और किसान भीतर चला गया. पत्नी किसान को देखते ही बोली, "जी आप आ गए ? क्या गाय बिक गई ?"
किसान बोला, "नहीं बिक सकी .... कोई पचास रुपये से ज्यादा ही न देता था !"
"चलो अच्छा हुआ, उस गाय के बिना मेरा भी दिन भर से जी न लग रहा था." पत्नी बोली.
"गाय वापस नहीं लाया. रास्ते में एक आदमी मिला. मैंने उसे गाय देकर उसका घोड़ा ले लिया." किसान बोला.
"घोड़ा ले लिया ? ये तो आपने बहुत अच्छा किया ! अब हम एक गाड़ी और बनवा लेंगे और फिर अपनी घोड़ागाड़ी में बैठकर जहां चाहें वहाँ चले जाया करेंगे," पत्नी हुलसकर बोली.
"आगे तो सुनो," किसान बोला, "घोड़ा लेकर घर आ रहा था कि रास्ते में एक बकरी वाला मिल गया, उसे घोड़ा देकर उसकी बकरी ले ली."
"बकरी ! ओहो मेरी कबसे इच्छा थी कि हमारे घर में एक बकरी हो ! ये तो आपने बहुत ही अच्छा किया !" पत्नी खुश होते हुए बोली.
"पूरी बात तो सुन लो, भागवान ! आगे जाकर मैंने बकरी के बदले एक मुर्गी ले ली," किसान बोला.
"ये तो आपने बहुत ही अक्लमंदी का काम किया ! अब हमें अंडे भी खाने को मिल जाया करेंगे," पत्नी चहकती हुई बोली.
"अरे रुको तो," किसान आगे बोला, "मुर्गी लेकर घर आ ही रहा था कि रास्ते में मुझे भूख लगने लगी, तो मैंने एक भोजनालय में मुर्गी देकर बदले में भोजन कर लिया,"
"हाय राम आपको भूख लगी ? मैं भी कैसी पागल हूँ जाते समय आपको रास्ते के लिए कलेवा बांधकर नहीं दिया था. वह तो अच्छा हुआ आपके पास मुर्गी थी तो भोजन भी कर लिया. ये तो बताइये, मुर्गी के बदले में भोजनालय वाले ने आपको पेट भर भोजन कराया कि नहीं ?" पत्नी चिंतित स्वर में बोली.
"भोजन तो पेट भर कर कराया था उसने, लेकिन .... खाली हाथ घर लौटना पड़ा." किसान बोला.
"कैसी बात करते हैं आप भी ? पैसा क्या आपके प्राणों से बढ़कर है ? भगवान की बड़ी कृपा है कि आपके पास मुर्गी थी, नहीं तो आज आपको भूखे रह जाना पड़ता. अगर ऐसा होता तो मैं तो अपने आपको कभी क्षमा नहीं कर पाती. चलिए, अब आप हाथ-मुँह धोइए, मैं आपके लिए गरमागरम भोजन तैयार करती हूँ." इतना कहकर पत्नी जल्दी जल्दी रसोई की ओर चली गई.
दरवाजे पर कान लगाकर पति-पत्नी की बातचीत सुन रहे पडोसी ने पहले तो अपना माथा पीटा, फिर चुपचाप सौ रुपये अपने घर से लाकर किसान को दे दिए. शर्त जो हार गया था !
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