जो करे वही भरे - लोक कथा | Jo kare wahi bhare - Lok Katha in Hindi

बहुत पहले की बात है, किसी गाँव में रामदीन और तुलाराम नाम के दो आदमी रहते थे. दोनों छोटामोटा व्यापार करते थे और उनमें अच्छी मित्रता थी. एक बार रामदीन की इच्छा हुई कि वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बद्रीनाथ जी की तीर्थयात्रा पर जाए. उसके पास सोने की दो सौ अशर्फियाँ थीं किन्तु तीर्थयात्रा के लिए केवल सौ ही पर्याप्त थीं. 

इसीलिए रामदीन तीर्थयात्रा पर अपने साथ केवल सौ ही अशर्फियाँ लेकर जाना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि ज्यादा पैसा साथ होने से फिजूलखर्ची होती है. उसे डर था कि यदि वह पूरी दो सौ ले गया तो उसकी सारी अशर्फियाँ खर्च हो जायेंगी. 

किन्तु वह बची हुई सौ अशर्फियों को छोड़े कहाँ ? घर पर छोड़कर जाता है तो चोरी हो जाने का खतरा था. गाँव में तुलाराम को छोड़कर कोई ऐसा आदमी नहीं था जिस पर उसे विश्वास हो. उसने तुलाराम से कहा तो तुलाराम बोला कि भाई चोरी का खतरा तो मेरे घर में भी रहेगा. यदि कहीं तुम्हारे तीर्थयात्रा पर जाने के बाद मेरे घर में चोरी हो गई तो मैं तुम्हारी अशर्फियाँ कहाँ से दूंगा. इससे अच्छा है कि तुम अपने धन को किसी गोपनीय जगह पर छिपा दो फिर जहां जाना है वहाँ चले जाओ. 

रामदीन को तुलाराम की बात ठीक लगी. लेकिन समस्या हुई कि आखिर अशर्फियाँ कहाँ छिपाईं जाएँ ? इसका समाधान भी तुलाराम ने ही दे दिया. उसने बताया कि गाँव के बाहर जंगल में एक भुतहा बरगद का पेड़ है. यदि अशर्फियाँ उसके नीचे जाकर गाड़ दी जाएँ तो सुरक्षित रहेंगी क्योंकि वहाँ भूतों के डर से कोई नहीं जाता. 

एक रात रामदीन और तुलाराम दोनों उस भुतहा बरगद के पास गए और उसके नीचे सौ अशर्फियाँ गाड़कर आ गए. अगले दिन रामदीन सपरिवार तीर्थयात्रा पर चला गया. उधर तुलाराम से उसकी घरवाली ने पूछा - "क्यों जी, पिछली रात को तुम बहुत देर से लौटे थे ? कहाँ गए थे आखिर ?"

तुलाराम ने पूरी बात सच सच बता दी. अशर्फियों की बात सुनते ही तुलाराम की बीवी की नीयत बिगड़ गई. बोली - "जाओ वे अशर्फियाँ खोदकर ले आओ."

पत्नी की इस बात पर तुलाराम बीवी पर बिगड़ने लगा - "कैसी बात करती है ? तू चाहती है कि मैं अपने मित्र के साथ विश्वासघात करूं ? कल को जब वह तीर्थयात्रा से लौटकर पूछेगा कि अशर्फियाँ कहाँ गईं तो मैं क्या जवाब दूंगा ?"

स्त्री बोली - "कुछ भी कह देना. कह देना कि चोर ले गए होंगे या फिर कह देना कि बरगद पर रहने वाले भूतों ने गायब कर दी होंगी."

तुलाराम फिर भी राजी न हुआ तो बीवी धमकाने लगी कि अगर वह अशर्फियाँ लाने न गया तो वह कुए में कूदकर जान दे देगी. आखिर मजबूर होकर तुलाराम गया और अशर्फियाँ खोदकर ले आया. अशर्फियाँ पाते ही तुलाराम की बीवी ने तरह तरह के गहने जेवर बनवा लिए और उन्हें पहन पहन कर गाँव की औरतों को जलाने लगी. 

रामदीन को तीर्थयात्रा से लौटकर आने में काफी दिन लग गए. घर आते ही उसे अपनी बरगद के नीचे गाड़ी हुई सौ अशर्फियों की याद आई. वह तुलाराम के घर गया ताकि उसे भी साथ ले ले किन्तु वह घर पर नहीं मिला. तुलाराम को जैसे ही पता चला था कि रामदीन लौट आया है वह उससे छिपता छिपता घूम रहा था. 

आखिर रामदीन अकेला ही जंगल में गया, किन्तु बरगद के नीचे उसे एक भी अशर्फी नहीं मिली. मिलती कहाँ से ? उन्हें तो तुलाराम खोद ले गया था. 

दुखी मन से रामदीन घर लौटा और उसने अपनी घरवाली को यह बात बताई. घरवाली बोली - "तुम्हारी अशर्फियाँ तुम्हारा दोस्त तुलाराम ही ले आया है. गाँव की औरतें कह रही थीं कि आजकल उसकी बीवी ने खूब सारे नए नए गहने बनवा लिए हैं और उन्हें पहन कर सबको दिखाती फिरती है. मुझे पूरा यकीन है उसके सब गहने हमारी अशर्फियों से ही बने हैं."

यह सुनकर रामदीन को बड़ा क्रोध आया और वह तुरंत तुलाराम के घर जाने को तत्पर हो गया, किन्तु उसकी घरवाली ने रोक लिया. बोली - "तुम समझते हो कि जिस आदमी की नीयत में बेईमानी आ गई है वह इतनी आसानी से मान जाएगा कि अशर्फियाँ उसने ली हैं ? मेरी मानो, अभी उससे कुछ मत कहो, हमें बुद्धि से काम लेना होगा. मैं तुम्हें बताऊँगी कि उसके साथ क्या करना है."

उसकी पत्नी ने एक योजना बनाकर रामदीन को बता दी. योजना के तहत रामदीन गाँव में प्रसन्नचित्त होकर घूमने लगा. तुलाराम से मुलाक़ात होने पर भी उसने ऐसा प्रकट किया कि जैसे उसे अशर्फ़ियों के संबंध में कुछ मालूम ही नहीं है. वह उससे खुलकर मिला और तीर्थयात्रा के किस्से सुनाने लगा. उसे देखकर कोई कह भी नहीं सकता था कि इसकी अशर्फियाँ खो गईं हैं. तुलाराम ने यह सोचकर राहत की सांस ली कि 'चलो, अभी तक इसे अशर्फियों के बारे में पता नहीं चला है'.

इसी दौरान तुलाराम की पत्नी भी वहाँ आकर बैठ गई और उनकी बातचीत सुनने लगी. बातचीत के दौरान रामदीन कहने लगा - "भाई, यह तीर्थयात्रा मेरे लिए इतनी फलदायी रही कि अब क्या बताऊँ ? तुम्हें तो पता है मैं मात्र सौ अशर्फियाँ लेकर गया था, लेकिन वहाँ बद्रीनाथ जी की कुछ ऐसी कृपा हुई कि मुझे व्यापार करने का मौका मिल गया और तुम विश्वास नहीं करोगे, मैंने एक सप्ताह में ही एक हजार अशर्फियाँ कमा लीं !भगवान ने मेरे धन को सीधा सीधा दस गुना बढ़ा दिया !"

तुलाराम की पत्नी को रामदीन के भाग्य से तुरंत जलन होने लगी, किन्तु ऊपर से बोली - "भाई तुम्हारा भाग्य बहुत अच्छा है !"

रामदीन आगे बोला, "किन्तु अब मेरी पत्नी जिद पर अड़ी है. कहती है, लगे हाथ रामेश्वर जी की यात्रा भी कर आयें. बद्रीनाथ जी की इतनी कृपा हुई तो रामेश्वर जी भी कुछ न कुछ अवश्य करेंगे. इसलिए मैं तो चार दिन बाद फिर से जा रहा हूँ तीर्थयात्रा पर. "

फिर रामदीन धीमे स्वर में तुलाराम से बोला, "भाई, लेकिन जाने से पहले एक दिन हमें उस बरगद के पास चलना होगा. मेरे घर पर जो हजार अशर्फियाँ रखी हैं, सोच रहा हूँ उन्हें भी उन्हीं सौ अशर्फियों के साथ गाड़ दूँ, फिर रामेश्वर जी से लौटकर ले लूंगा."

बरगद का नाम सुनते ही तुलाराम का मुँह फक पड़ गया, उसके मुँह से बोल न निकला. रामदीन देखकर समझ तो गया पर उसने कुछ नहीं कहा. सिर्फ इतना कहकर चला आया कि परसों रात को बरगद के पास चलेंगे. 

रामदीन के जाते ही तुलाराम के मन में खलबली मच गई. बरगद के नीचे खोदने पर रामदीन पूछेगा कि सौ अशर्फियाँ कहाँ गईं तो वह क्या जवाब देगा ? वह मन ही मन अपने किये पर बहुत पछताने लगा किन्तु उसकी पत्नी के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. उसकी नजर अब रामदीन की हजार अशर्फियों पर लग गई थी. इन हजार अशर्फियों से कितने गहने और बनवाये जा सकते हैं, वह यह सोच रही थी. 

पत्नी ने पूछा - "रामदीन धीमे से क्या कह रहा था आपके कान में ?"

तुलाराम चिढ़कर बोला - "बरगद के पास जाने की कह रहा था ! तू तो सौ अशर्फियाँ खाकर बैठ गई अब मुझे समझ में नहीं आ रहा कि जब वह पूछेगा कि अशर्फियाँ कहाँ गईं तब उसे क्या जवाब दूंगा ?"

पत्नी थोड़ी देर चुप बैठकर कुछ सोचती रही, फिर बोली, "आपको कोई जवाब नहीं देना होगा क्योंकि उसकी सौ अशर्फियाँ उसे वहीं रखी मिलेंगी."

"कैसे मिलेंगी ? उन्हें तो मैं खोद लाया हूँ !" तुलाराम तीखी आवाज में बोला. 

"हाँ तो क्या हुआ ? अब तुम्हीं वहाँ गाड़ कर आओगे." पत्नी बोली. 

"लेकिन मेरे पास सौ अशर्फियाँ हैं कहाँ गाड़ने के लिए ? तू कहना क्या चाहती है, साफ़ साफ़ बोल दे !", तुलाराम क्रोध में आते हुए बोला. 

"जो मैं कहती हूँ, ध्यान से सुनो," पत्नी बोली, "सबसे पहले कल सुबह मेरे सारे गहने गिरवी रखकर सौ अशर्फियों का इंतजाम करो, फिर चुपचाप बरगद के नीचे जाकर उन्हें वहीं गाड़ आओ. फिर परसों जब रामदीन के साथ हजार अशर्फियाँ गाड़ने जाओगे तो उसे कोई शक नहीं होगा क्योंकि उसे सौ अशर्फियाँ वहीं रखी मिलेंगी. वह हजार अशर्फियाँ भी वहीं गाड़ देगा. फिर उसके जाने के बाद तुम पूरी ग्यारह सौ अशर्फियाँ खोद लाना. समझे ?"

ग्यारस सौ अशर्फियों की बात सुनते ही तुलाराम के मन में लालच आ गया. आखिर एक बार तो वह पाप कर ही चुका था, अब दुबारा पाप करने में उसे कोई संकोच न था. सुबह होते ही वह पत्नी के सारे गहने लेकर महाजन के पास गया और गिरवी रखकर सौ अशर्फियाँ ले आया. फिर अँधेरा होते ही वह बरगद के नीचे पहुंचा और अशर्फियाँ गाड़कर लौट आया. 

अगली रात, जिस रात को रामदीन ने हजार अशर्फियाँ गाड़ने के लिए चलने को कहा था, तुलाराम इंतज़ार करता रहा किन्तु रामदीन नहीं आया. रात के ग्यारह बज गए, फिर बारह बज गए पर रामदीन का कोई अतापता न था. उसकी बेचैनी बढ़ने लगी. वह बार बार दरवाजे की ओर देखता, गली में झांकता पर रामदीन तो छोडो कोई परछाईं भी नजर नहीं आती थी.  धीरे धीरे रात के दो बज गए, पर रामदीन नहीं आया. 

अब तो तुलाराम और उसकी पत्नी का धैर्य जवाब दे गया. पत्नी ने उसे ठेला कि जाओ, जाकर देखो रामदीन क्यों नहीं आया. तुलाराम उतनी ही रात को रामदीन के घर पहुंचा और दरवाजा खटखटा कर उसे जगाया. रामदीन आँखे मलते-मलते बाहर आया और बोला - "अरे तुलाराम भाई, इतनी रात को तुम यहाँ ?"

तुलाराम बोला, "भूल गए क्या ? आज हमें अशर्फियाँ गाड़ने चलना था. तुम आये क्यों नहीं ?"

रामदीन मुस्कुराते हुए बोला, "माफ़ करना भाई, मैं कल दिन में तुम्हें बता नहीं पाया. मैंने सोचा था कि सुबह तुम्हारे घर आकर बता दूंगा. दरअसल हमने तीर्थयात्रा पर जाने का कार्यक्रम फिलहाल टाल दिया है. तो अब अशर्फियाँ जंगल में गाड़ने की जरूरत नहीं है. और हाँ, कल दोपहर को मैं खेतों की ओर निकला था तो टहलते टहलते बरगद तक भी पहुँच गया. वहाँ जाकर उन सौ अशर्फियों की याद आ गई तो उन्हें भी खोदकर लेता आया. अच्छा भैया, अब रात बहुत हो चुकी है, तुम भी घर जाकर आराम करो." 

इतना कहकर रामदीन ने किवाड़ बंद कर लिए. 




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