कलाकृति
सुप्रसिद्ध रुसी कथाकार अन्तोन चेखव (Anton Chekhov) की एक कहानी का भावानुवाद
साशा स्मिरनोव, अपनी माँ का इकलौता बेटा, एक अखबार में कोई चीज़ लपेटे डॉ. कोशेलकोव के चिकित्सालय में पहुंचा. इस समय वह बेहद भावुक लग रहा था.
"आओ बेटे," डॉक्टर उसे देखते ही बोला, "बताओ अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो ?मुझे लगता है तुम मेरे लिए कोई अच्छी खबर लाये हो."
साशा ने पलकें झपकाईं, अपना एक हाथ सीने पर रखा और भावुक स्वर में बोला, "सर, मेरी माँ ने आपको 'नमस्कार' और 'धन्यवाद' बोला है. आप तो जानते ही हैं, मैं अपनी माँ का इकलौता बेटा हूँ और एक खतरनाक बीमारी के चंगुल से आपने मेरी जान बचाई है. हमें समझ नहीं आ रहा कि आपका शुक्रिया कैसे अदा करें ?"
"क्या फ़ालतू की बात कर रहे हो, लड़के," डॉक्टर मुस्कुराते हुए बोला, "मैंने तो सिर्फ वही किया जो मेरी जगह कोई भी और डॉक्टर करता."
"ये तो आपका बड़प्पन है जो आप ऐसा कहते हैं.... हम गरीब लोग हैं और आपके एहसान की कीमत नहीं अदा कर सकते हैं.... मैं शर्मसार हूँ, डॉक्टर साहब, लेकिन मेरी माँ और मैं .... अपनी माँ का इकलौता बेटा, आपसे अर्ज करने आया हूँ कि आप, हमारी ओर से आभारस्वरुप यह कलाकृति ग्रहण करें. यह एक प्राचीन कांस्य कलाकृति है... एक दुर्लभ चीज़ !"
"इसकी कोई जरूरत नहीं है," डॉक्टर ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, "तुम मुझे ये क्यों दे रहे हो ?"
"नहीं सर, कृपया इसे अस्वीकार नहीं करें," साशा कलाकृति के ऊपर से अखबार हटाते हुए बोला, "यदि आप ऐसा करेंगे तो मुझे और मेरी माँ को बहुत दुःख होगा. ये बहुत बढ़िया चीज़ है ... एक प्राचीन कलाकृति ... मेरे स्वर्गीय पिता इसे हमारे लिए छोड़ गए थे और हमने इसे उनके बेशकीमती स्मृति-चिन्ह के रूप में अपने पास रखा हुआ था. मेरे पिता प्राचीन कलाकृतियों को खरीदकर उन्हें कद्रदानों को बेचा करते थे ... अब मैं और मेरी माँ उनका यह छोटा सा कारोबार संभालते हैं."
साशा ने अखबार हटाकर कलाकृति को सावधानीपूर्वक मेज पर रख दिया. वह कलात्मक कारीगरी से युक्त पुराने कांस्य का एक मोमबत्तियां रखने वाला स्टैंड था. उस स्टैंड पर हव्वा की वेशभूषा में दो युवतियों की मूर्तियाँ बनी थीं. उनकी भावभंगिमा ऐसी थी जिसे बयान करने का न तो मुझमें साहस है, न ही वैसा मेरा स्वभाव है. दोनों युवतियां बड़ी अदा और नखरे से मुस्कुरा रहीं थीं और उन्हें देखकर ऐसा लगता था कि यदि उन्हें मोमबत्तियां रखने वाली कलाकृति के आधार बनने के काम से मुक्त कर दिया जाता तो वे ऐसे लम्पटता में मग्न हो जातीं, जिसकी कल्पना करना भी पाठक के लिए अशोभनीय होगा.
खैर, तोहफे को देखते हुए डॉक्टर ने धीरे से अपना सिर खुजलाया और खंखारकर अपना गला साफ़ किया.
"कलाकृति तो वाकई बहुत बढ़िया है," डॉक्टर बुदबुदाते हुए बोला, "लेकिन अब मैं तुमसे कैसे कहूँ .... ये .... ये पारिवारिक माहौल के लिए नहीं बनी है .... इन मूर्तियों से कामुक नग्नता झलक रही है, बल्कि उससे भी कुछ ज्यादा..."
"क्या मतलब ?"
"अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ .... अगर मैं ऐसी चीज़ अपनी मेज पर रखूँगा तो यह पूरे घर का माहौल नहीं ख़राब कर देगी ?"
"कला को देखने का आपका बड़ा अजीब नजरिया है डॉक्टर साहब !" साशा नाराज सा होता हुआ बोला, "यह कोई बुरी चीज़ नहीं बल्कि एक कलाकृति है ... आप इसे ध्यान से देखिये ... इस चीज़ में इतना सौंदर्य और लालित्य है कि यह आपकी आत्मा को श्रद्धा से भर देती है. आपको अपना गला रुन्धता सा महसूस होता है. जब कोई इतनी सुन्दर कलाकृति को देखता है तो वह सभी सांसारिक चीज़ों को भूल जाता है. आप देखिये तो सही, इसकी अपनी एक लय है, अपना वातावरण है, अपनी एक मुद्रा है !"
"बेटे, मैं यह सब अच्छी तरह समझता हूँ ..." डॉक्टर ने उसे बीच में टोकते हुए कहा, "तुम जानते हो कि मैं एक पारिवारिक आदमी हूँ. मेरे बच्चे यहाँ आते रहते हैं, महिलायें यहाँ आती रहती हैं."
"अब अगर आप इस कलाकृति को भीड़ के नजरिये से देखेंगे तो यह आपको किसी विशेष रंग में रंगी नजर आएगी ही ," साशा ने कहा, "किन्तु आप भीड़ से ऊपर उठिए, डॉक्टर साहब ! इसे लेने से इनकार करके आप मुझे और मेरी माँ को दुखी करेंगे. आप एक बार सोचकर तो देखिये कि मैं अपनी माँ का इकलौता बेटा हूँ और आपने मेरा जीवन बचाया है... बदले में हम आपको अपनी अमूल्य चीज़ उपहार में दे रहे हैं. मुझे तो इस बात का बहुत खेद हो रहा है कि मेरे पास आपको देने के लिए इसका जोड़ा नहीं है."
"धन्यवाद बेटा, मैं बहुत आभारी हूँ," डॉक्टर बात को ख़त्म करने के अंदाज़ में बोला, "अपनी माँ को मेरा प्रणाम कहना. जैसा कि मैंने तुम्हें बताया कि मेरे बच्चे यहाँ आते रहते हैं, महिलायें यहाँ आती रहती हैं. लेकिन मैं देख रहा हूँ कि तुमसे बहस का कोई फायदा नहीं, इसलिए तुम इसे यहीं रख दो !"
"सर, बहस करने की कोई वजह ही नहीं !" साशा ने राहत महसूस करते हुए कहा. "मैं इसे यहाँ गुलदारों के पास रख रहा हूँ .... काश मेरे पास आपको देने के लिए इसका जोड़ा होता !"
साशा बड़ी ख़ुशी से कलाकृति को मेज पर कर चला गया. उसके जाने के बाद डॉक्टर बड़ी देर तक सिर खुजलाते हुए, कुछ सोचते हुए उस कलाकृति को देखता रहा.
"चीज़ है तो वाकई शानदार," डॉक्टर ने सोचा, "इसे फेंकना तो मुनासिब नहीं होगा ... लेकिन मैं इसे अपने पास रख भी तो नहीं सकता .... यह तो सचमुच एक समस्या है ... लेकिन मैं इसे किसी को तोहफे या दान में दे सकता हूँ."
काफी देर सोचने के बाद डॉक्टर को अपने एक वकील मित्र उहोव का ध्यान आया. वह कानूनी मामलों में अक्सर डॉक्टर की मदद किया करता था, जिसकी वजह डॉक्टर उसका एहसानमंद था.
"ये ठीक रहेगा," डॉक्टर ने फैसला लेते हुए सोचा, "मेरा मित्र होने के नाते यूँ भी वह मुझसे पैसे नहीं लेता है. मुझसे यह कलाकृति लेने में उसे कोई उलझन नहीं होगी. वैसे भी खुशकिस्मती से अभी वह कुंवारा है और शौक़ीन भी."
बिना और कुछ सोचे, डॉक्टर ने अपनी टोपी और अपना कोट पहना और कलाकृति को बगल में दबाकर उहोव के घर की ओर चल पड़ा.
उहोव घर पर ही था. डॉक्टर ने पूछा, "कैसे हो मेरे दोस्त ? आज मैं किसी कानूनी काम से नहीं बल्कि सिर्फ तुमसे मिलने आया हूँ. तुम मेरी बहुत मदद करते हो इसके लिए शुक्रिया. मुझसे तुम पैसे तो लोगे नहीं इसलिए मैं तुम्हारे लिए उपहारस्वरुप यह कलाकृति लाया हूँ. तुम इसे स्वीकार करो ... जरा देखो तो, कितनी बढ़िया और शानदार चीज़ है !"
उस कांस्य कलाकृति को देखकर वकील सचमुच बहुत खुश हुआ.
"वाह, क्या शानदार चीज़ है," वह चहकते हुए बोला, "यह तो कल्पना की पराकाष्ठा है. कितनी सम्मोहक है ! दोस्त, तुम्हारे पास इतनी शानदार चीज़ कहाँ से आई ?"
फिर जब वह अपना उल्लास पूरा व्यक्त कर चुका, उसने सहमते हुए दरवाजे की ओर देखा और डॉक्टर से बोला, "किन्तु दोस्त, तुम्हें अपना यह तोहफा वापस ले जाना होगा ... मैं इसे नहीं ले सकता !"
"क्यों भाई ?" डॉक्टर ने नाराज होते हुए पूछा.
"ऐसा इसलिए दोस्त," वकील बोला, "क्योंकि कभी कभी मेरी माँ मुझसे मिलने यहाँ आती रहती हैं. मेरे मुवक्किल यहाँ आते रहते हैं ... और फिर नौकर भी इसे देखेंगे .... मुझे बहुत शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा !"
"कैसे बकवास बातें कर रहे हो ?" डॉक्टर बनावटी क्रोध दिखाते हुए बोला, "तुम पाखंडी हो ! जरा देखो तो ये कितनी खूबसूरत कलाकृति है ! इसकी लय ... इसकी मुद्रा तो देखो ! मैं इसके खिलाफ कुछ भी नहीं सुनूंगा. कहे दे रहा हूँ, मैं तुमसे नाराज हो जाऊँगा !"
"यदि इस कलाकृति का कुछ भाग प्लास्टर या अंजीर के पत्तों से ढँक दिया जाता तो ...."
यह सुनकर डॉक्टर पहले से भी ज्यादा उत्तेजित हो गया. वह कलाकृति को वहीं छोड़कर पैर पटकता हुआ वहां से चला आया. हालांकि घर लौटकर वह मन ही मन खुश हुआ कि उसे उस बेहूदे तोहफे से छुटकारा मिल गया था.
जब डॉक्टर उस तोहफे को वहीं छोड़कर चला आया तो वकील ने उस कलाकृति को उँगलियों से छूकर देखा, और अपने डॉक्टर मित्र की तरह सोचने लगा कि वह इस तोहफे का क्या करे.
"कलाकृति तो वाकई उम्दा है," वह सोचने लगा, "इसे फेंक देना तो कला का अपमान होगा. लेकिन इसे अपने पास रखना मेरे लिए उचित नहीं होगा. सबसे बेहतर यही होगा कि मैं इसे किसी को तोहफे में दे दूँ ... बिलकुल ठीक ! यही ठीक होगा ... मैं इसे हास्य अभिनेता शैशकिन को उपहार में दे दूंगा. उस बदमाश को वैसे भी ऐसी चीज़ें अच्छी लगती हैं. आज रात उसका एक कार्यक्रम है जिसमें मुझे जाना भी है."
जो उसने सोचा, वही उसने किया भी. उस शाम को मोमबत्तियों का वह स्टैंड, तोहफे वाली चमकीली पन्नी में लपेटकर हास्य अभिनेता शैशकिन को भेंट कर दिया गया. पूरी शाम, हास्य अभिनेता के ड्रेसिंग रूम में उस तोहफे की प्रशंसा करने वालों का जमघट लगा रहा. ड्रेसिंग रूम, प्रशंसा करने वालों की खिलखिलाहटों से गूंजता रहा, गोया वहाँ घोड़े हिनहिना रहे हों.
कार्यक्रम के बाद, जब हास्य कलाकार वापस ड्रेसिंग रूम में आया, तब उसने अपने कंधे उचकाये, हाथ ऊपर उठाये और कहा, "अब इस अरुचिकर चीज़ का मैं क्या करूं ? मैं अपने निजी मकान में रहता हूँ, वहाँ अभिनेत्रियाँ मुझसे मिलने आती रहती हैं. यह कोई फोटो तो है नहीं कि इसे उठाकर मैं किसी दराज में डाल दूँ!"
"सर, बेहतर होगा कि आप इसे बेच दें," हास्य-अभिनेता के हेयर ड्रेसर ने सलाह दी, "मेरे घर के पास ही एक बुढ़िया रहती है जो प्राचीन कांस्य कलाकृतियाँ खरीदती है. श्रीमती स्मिरनोव नाम है उसका ... मोहल्ले में उसे सभी जानते हैं !"
हास्य अभिनेता ने यह सलाह मान ली ....
दो दिन बाद, डॉक्टर अपने क्लिनिक में बैठा था, और माथे पर उंगली टिकाकर किसी मरीज के पर्चे का अध्ययन कर रहा था. अचानक क्लिनिक का दरवाजा खुला और साशा स्मिरनोव तेजी से भीतर घुसा. वह मुस्कुरा रहा था और उसका मुखमंडल प्रसन्नता की कान्ति से दमक रहा था.
"डॉक्टर साहब," उसने अपनी चढ़ी हुई साँसों पर काबू करते हुए कहा, "आपको मेरी प्रसन्नता का अंदाजा नहीं होगा ! अद्भुत संयोग से हम आपके लिए उस दुर्लभ कलाकृति, उस मोमबत्तियों के स्टैंड, का जोड़ा पाने में सफल हो गए हैं ! मेरी माँ और मैं, उनका इकलौता बेटा ... जिसकी आपने जान बचाई है, आज कितने खुश हैं, आप समझ नहीं सकते !"
और साशा ने कृतज्ञता से कांपते हुए हाथों से वह मोमबत्तियों का स्टैंड डॉक्टर की मेज पर रख दिया. डॉक्टर का मुँह खुला रह गया. वह कुछ कहना चाहता था मगर आवाज उसके गले में फंस कर रह गई. वह कुछ भी बोल नहीं पाया.
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