तीन भाई और राजकुमारी - एक लोक कथा | Teen Bhai aur Rajkumari - Ek Lok Katha

प्राचीन काल की बात है, किसी नगर में तीन भाई रहते थे. तीनों भाइयों में आपस में बड़ा प्रेम था और वे एक दूसरे से कुछ भी नहीं छिपाते थे. उस नगर की राजकुमारी बड़ी सुन्दर थी और तीनों भाई मन ही मन उसे प्रेम करते थे तथा उससे विवाह के इच्छुक थे. 

तीनों जब पूर्ण युवावस्था को प्राप्त हो गए तब उनके पिता ने सलाह दी कि अब उन्हें धन कमाने के लिए परदेश जाना चाहिए क्योंकि बिना धन कमाए जीवन के सुखों का उपभोग नहीं किया जा सकता. पिता की आज्ञा मानकर तीनों भाई एक दिन दूर देशों के लिए रवाना हो गए. 

शुरू में वे तीनों साथ - साथ चले और एक नगर में पहुंचकर एक सराय में रुके. वहाँ उन्होंने तय किया कि यहाँ से अब तीनों भाई व्यापार के लिए तीन अलग - अलग दिशाओं में जायेंगे और एक साल बाद इसी स्थान पर वापस मिलेंगे. इस प्रकार अगले दिन तीनों भाई तीन अलग अलग दिशाओं में धनोपार्जन हेतु चल पड़े. 

सबसे छोटा भाई उत्तर दिशा की ओर गया और व्यापार करते करते अनेक नगरों का भ्रमण करते हुए एक दिन एक सिद्ध साधू महाराज से मिला. साधु महाराज छोटे भाई के विनम्र और मृदु स्वभाव से बड़े प्रसन्न हुए इसलिए विदा होते समय उन्होंने उसे एक चमत्कारी नीबू का फल दिया. साधु ने छोटे भाई से कहा कि इस नीबू का रस यदि किसी बीमार के मुँह में डाल दोगे, भले ही वह मरणासन्न ही क्यों न हो, तुरंत चंगा हो जाएगा. 

छोटे भाई ने श्रद्धापूर्वक वह नीबू साधू से ले लिया और प्रणाम करके आगे चल पड़ा. 

मंझला भाई पूर्व दिशा में व्यापार करते करते एक दिन एक मेले में पहुंचा जहां बड़ी अजीबोगरीब चीज़ें बिक रही थीं. वहाँ उसे एक कालीन पसंद आया, जिस पर खड़े होकर जहां भी जाने की इच्छा की जाय, वहाँ तुरंत उड़कर पहुंचा जा सकता था. उसने वह कालीन खरीद लिया. 

इसी तरह बड़ा भाई भी दक्षिण दिशा में व्यापार करते करते एक जादूगर के संपर्क में आया जिसने खुश होकर उसे एक जादुई शीशा भेंट किया. शीशे की खासियत थी कि उसमें अपनी सूरत नहीं बल्कि संसार में जिसकी भी सूरत देखने की इच्छा हो, उसकी सूरत तुरंत देखी जा सकती थी. 

जब एक साल पूरा हुआ तब तीनों भाई पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार नियत स्थान पर वापस एक - दूसरे से मिले. तीनों भाई एक - दूसरे से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए और अपनी अपनी कहानियां सुनाते सुनाते सो गए. 

अगले दिन सबेरे जब छोटा भाई और मंझला भाई खाने पीने की सामग्री लेने बाजार गए हुए तब बड़े भाई को राजकुमारी की याद आई और उसने जादुई शीशा निकालकर उसके सामने राजकुमारी का चेहरा देखने की इच्छा व्यक्त की. 

पलक झपकते ही शीशे में राजकुमारी का चेहरा दिखाई देने लगा, किन्तु यह क्या ? राजकुमारी तो रुग्णावस्था में थी. वह सूखकर काँटा हो चुकी थी. राजवैद्य उसे दवा पिला रहे थे, और पास ही राजा रानी दोनों रुआंसे बैठे थे. ऐसा लग रहा था कि राजकुमारी किसी गंभीर बीमारी की चपेट में आ गई थी. 

राजकुमारी की यह हालत देखकर बड़े भाई को बहुत दुःख हुआ और उसकी आँखों में आंसू भर आये. ठीक उसी समय छोटा भाई और मंझला भाई कमरे में वापस आ गए और बड़े भाई के दुःख का कारण पूछा. बड़े भाई ने सब सच सच बता दिया कि राजकुमारी की हालत बहुत ख़राब है और जब तक हम नगर में पहुंचेंगे तब तक शायद वह जीवित भी न रहे. "काश, एक बार उसे जीवित देख पाता !" बड़े भाई ने उसांस लेते हुए कहा. 

यह सुनकर मंझला भाई, जो खुद भी राजकुमारी से मन ही मन प्रेम करता था, बोला, "भैया, मेरे पास एक जादुई कालीन है जिस पर बैठकर हम कुछ ही क्षणों में अपने नगर उड़कर पहुँच सकते हैं !"

छोटा भाई भी बोला, "मेरे पास एक ऐसा नीबू है जिसके रस से कैसा भी रोगी ठीक हो जाएगा !"

फिर क्या था, तीनों भाई फ़ौरन उस कालीन पर बैठकर अपने नगर पहुंचे और राजकुमारी से मिलने राजमहल पहुँच गए.  उन्होंने राजा से कहलवाया कि वे राजकुमारी की बीमारी ठीक कर सकते हैं, उन्हें राजकुमारी से मिलने की अनुमति दी जाए. 

राजा ने जब यह सुना तो पहले तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि जब बड़े वैद्य कुछ नहीं कर पा रहे तो ये तीन लड़के क्या कर लेंगे. फिर उसने सोचा कि राजकुमारी तो वैसे भी मरणासन्न है, एक बार इन लोगों को भी मौका देने में क्या हर्ज है, शायद कोई चमत्कार हो जाए. उसने तीनों को राजकुमारी के पास जाने की अनुमति दे दी. 

राजकुमारी के पास पहुंचकर छोटे भाई ने अपना नीबू निकाला, उसे काटा और उसका रस राजकुमारी के सूखे अधरों के बीच डाल दिया. और फिर सचमच चमत्कार हुआ .... कुछ ही देर में राजकुमारी को स्वास्थ्यलाभ होने लगा. उसकी रौनक लौटने लगी और देखते ही देखते दो ही दिन में वह पूर्ववत भली चंगी हो गई. 

राजा तीनों युवकों से बहुत प्रसन्न हुआ और उसने कहा, "मांगो, क्या मांगते हो ? आज तुम जो मांगोगे वह मिलेगा !"

तीनों युवक सहसा एक साथ बोल पड़े, "मैं राजकुमारी से विवाह करना चाहता हूँ !"

कहने के साथ ही तीनों ने हैरानी से एक-दूसरे की ओर देखा, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं था कि वे तीनों एक ही राजकुमारी से प्रेम करते हैं. 

अब तो राजा बड़े पसोपेश में पड़ गया. बोला, "तुम तीनों की वजह से ही राजकुमारी की जान बची है इसलिए तुम्हारे साथ राजकुमारी का विवाह करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं, किन्तु उसका विवाह तुम में से किसी एक के साथ ही हो सकता है. राजकुमारी को स्वस्थ बनाने में तुम में से जिसका भी योगदान ज्यादा होगा, उसी से उसका विवाह कर दिया जाएगा."

यह सुनकर बड़ा भाई कहने लगा, "महाराज, मेरे जादुई शीशे की वजह से ही हमें राजकुमारी की बीमारी का पता चला. यदि मैं शीशे में न देखता तो हमें तो कुछ पता हीं नहीं चल पाता और फिर हम यहाँ पहुँचते ही नहीं. इसलिए मेरा ही योगदान सबसे पहला और ज्यादा है जिससे राजकुमारी की जान बचाई."

मंझला भाई बोला, "ये ठीक है कि बड़े भाई के शीशे ने हमें राजकुमारी की बीमारी की खबर दी किन्तु यदि मेरा जादुई उड़ने वाला कालीन न होता तो शीशे में देखकर भी क्या कर लेते ? इसलिए राजकुमारी को बचाने में सबसे ज्यादा योगदान तो मेरा है."

छोटा भाई बोला, "तुम्हारे शीशे ने देख लिया, तुम्हारे कालीन ने यहाँ तक पहुंचा दिया, लेकिन उससे क्या राजकुमारी की बीमारी ठीक हो गई ? बीमारी तो जादुई नीबू के रस से ठीक हुई है जो मेरे पास था ! "

इस प्रकार तीनों भाई आपस में बहस करने लगे और अपना अपना योगदान बड़ा बताने लगे. राजा और उसके मंत्री भी यह देखकर विचारमग्न हो गए कि क्या किया जाए ? 

आखिरकार मंत्रियों की सलाह पर राजा ने कहा कि विवाह तो राजकुमारी को करना है, इसलिए यह फैसला राजकुमारी पर ही छोड़ दिया जाए कि वह इन तीनों में से किसके योगदान को बड़ा मानती है. 

राजकुमारी बोली, "मैं छोटे भाई से विवाह करूंगी." 

इस पर दोनों बड़े भाई आपत्ति करने लगे और बोले कि राजकुमारी को बताना होगा कि छोटे भाई से विवाह करने का फैसला वह किस आधार पर ले रही हैं ? 

तब राजकुमारी बोली, "मेरे प्राणों की रक्षा करने में तुम तीनों में से किसका योगदान ज्यादा है, यह प्रश्न ठीक नहीं है. मेरी नजर तुम तीनों का ही योगदान बराबर है. न किसी का कम, न किसी का ज्यादा. अतः इस आधार पर कोई फैसला नहीं हो सकता. मैं जो फैसला ले रही हूँ वह इस आधार पर ले रही हूँ कि तुम तीनों में से मेरी खातिर किसने बड़ा त्याग किया है ?"

राजकुमारी बड़े भाई की ओर इंगित करते हुए बोली, "तुमने अपने शीशे में देखकर मेरी बीमारी के बारे में जाना, किन्तु तुम्हारा शीशा अब भी तुम्हारे पास है. तुम अब भी चाहो तो किसी और का हाल उसमें देख सकते हो. "

"इसी तरह," उसने मंझले भाई की ओर इशारा करते हुए कहा, "तुम्हारा कालीन न होता तो तुम तीनों का यहाँ समय पर पहुंचना मुश्किल था किन्तु तुम्हारा कालीन अब भी तुम्हारे पास है. तुम आगे भी उस पर बैठकर जहाँ चाहे जा सकोगे."

"किन्तु छोटे भाई के पास प्राणरक्षा करने वाला सिर्फ एक ही नीबू था जो उसने मेरे ऊपर व्यय कर दिया. वह अब चाहे भी तो किसी और की जान नहीं बचा सकता. वह चाहता तो उस नीबू को अपने स्वयं के बुढ़ापे के लिए या बीमारी के लिए बचाकर रख सकता था, किन्तु उसने ऐसा नहीं किया. उसने वह जादुई नीबू मेरे ऊपर खर्च कर दिया. इसलिए उसी का त्याग सबसे बड़ा है और इसीलिए मैं उसी से विवाह करूंगी."

राजकुमारी की बुद्धिमत्तापूर्ण बातें सुनकर न सिर्फ दोनों बड़े भाई, बल्कि राजा और मंत्रीगण भी संतुष्ट हो गए और छोटे भाई के साथ राजकुमारी का विवाह निर्विवाद संपन्न हो गया.  




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