बुद्धिमान वन हंस - पंचतंत्र की कहानी | Buddhiman Van Hans - A Panchatantra Story

किसी वन में एक बहुत ही विशाल, ऊँचा और सघन वृक्ष था. इस वृक्ष के ऊपर कई वन-हंसों ने लम्बे समय से अपना डेरा बना रखा था. वे दिन में वन में जाकर भोजन की तलाश करते और रात्रि में उस वृक्ष पर आकर विश्राम करते थे. उन वन-हंसों में एक काफी बुजुर्ग वन-हंस भी था जो बहुत बुद्धिमान और अनुभवी था. वह जो भी बात कहता था, सोच समझकर कहता था. उसकी कही बात ज्यादातर सच ही निकलती थी. 

एक दिन उस बुजुर्ग हंस ने वृक्ष की जड़ में से एक लता निकलती हुई देखी, जिसे देखकर वह चिंतित हो गया. उसने अन्य वन-हंसों को भी वह लता दिखाई. वन-हंसों ने उस लता को देखकर कहा - "तो क्या हुआ ? वृक्ष की जड़ से लता निकल रही है तो निकलने दो. हमें उस लता से क्या लेना देना ?"

बुजुर्ग हंस बोला - "ऐसी बात नहीं है. हमारा इस लता से बहुत गहरा सम्बन्ध है क्योंकि यह लता उसी वृक्ष की जड़ से निकल रही है, जिस पर हम सब रहते हैं."

वन-हंसों ने कहा - "तुम्हारी बात हमारी समझ में नहीं आ रही है. जो भी कहना चाहते हो उसे साफ़-साफ़ कहो."

बुजुर्ग हंस बोला - "आज यह लता भले छोटी सी है लेकिन धीरे-धीरे यह बढ़कर बड़ी हो जायेगी. एक दिन आएगा जब यह वृक्ष से लिपट जायेगी और मोटी हो जायेगी. जब यह मोटी हो जायेगी तब हमारा कोई भी शत्रु उसे पकड़कर वृक्ष पर चढ़ सकता है और हमें हानि पहुंचा सकता है."

बुजुर्ग हंस की बातें सुनकर वन-हंस हँसने लगे और बोले - "तुम तो शेखचिल्ली जैसी बातें कर रहे हो. अरे यह लता कितनी छोटी सी मरियल सी है. कौन जानता है यह बढ़ेगी भी या नहीं."

बुजुर्ग हंस बोला - "हाँ, यह छोटी सी तो है, किन्तु जिस चीज़ से हानि होने की संभावना हो उसे समय रहते ही नष्ट कर देना चाहिए. मेरा विचार है कि हम इस लता को अभी उखाड़ फेंकें तो अच्छा होगा. यह बढ़ेगी तो हम सबके दुःख का कारण बन सकती है."

वन-हंस आराम करने की मनःस्थिति में थे, इसलिए किसी ने भी बुजुर्ग हंस की बात पर ध्यान नहीं दिया. बोले - "लता जब बढ़ेगी तब देखा जाएगा. आप भी चिंता छोडिये और विश्राम कीजिये."

बेचारा बुजुर्ग हंस मौन रह गया. वह वृद्ध था, और यह काम उसके अकेले के बस का नहीं था.

लता धीरे - धीरे बढ़ने लगी. वह वृक्ष से लिपट गई और मोटी भी होने लगी. धीरे - धीरे वह इतनी मोटी हो गई कि कोई भी आदमी उसका सहारा लेकर वृक्ष के ऊपर चढ़ सकता था. 

एक दिन एक शिकारी की नजर वन-हंसों के डेरे, अर्थात उस वृक्ष पर पड़ गई. उसने देखा कि रात्रि के समय इस वृक्ष पर सैकड़ों वन-हंस विश्राम करते हैं. इस पेड़ पर जाल बिछाकर उन्हें आसानी से फँसाया जा सकता है. 

अगले दिन जब सभी वन-हंस भोजन की तलाश में उड़कर चले गए, वह शिकारी वृक्ष के नीचे आया और उस मोटी लता का सहारा लेकर ऊपर चढ़ गया. वहाँ उसने सभी शाखाओं पर,  बारीक तारों से बना अपना जाल बिछा दिया और फिर उसी लता का सहारा लेकर नीचे उतरा और घर चला गया. 

सायंकाल जब सभी वन-हंस वृक्ष पर लौटे और अपने - अपने स्थान पर बैठे तो उनके पंजे शिकारी द्वारा बिछाए गए जाल में फँस गए. जाल में फँसते ही वे फडफडाने लगे और रो-रो कर कहने लगे - "हाय हाय यह क्या हो गया ! हम सब जाल में फंस गए. अब कल शिकारी आएगा और हमें पकड़कर मार डालेगा."

वन-हंसों का रोना-कलपना सुनकर बुजुर्ग हंस बोला - "अगर तुम लोगों ने उस दिन मेरी बात मानकर उस लता को नष्ट कर दिया होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता. शिकारी उस मोटी लता का सहारा लेकर ही वृक्ष पर चढ़ा और हमारे लिए जाल बिछाकर चला गया."

वन-हंस रोते हुए बोले - "भाई हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई. किन्तु अब जो हो गया सो हो गया. अभी तो ऐसा उपाय बताओ जिससे हम सबके प्राण बच सकें."

बुद्धिमान हंस सोचकर बोला - "एक उपाय से तुम सबके प्राण बच सकते हैं. कल जब शिकारी आये तो सभी के सभी मुर्दे के समान पड़ जाओ. शिकारी तुम्हें मरा हुआ समझकर जाल से निकाल कर फेंक देगा. जब तक वह आखिरी हंस को भी जाल से निकालकर न फेंक दे, तुम सबको मुर्दे की तरह ही जमीन पर पड़े रहना होगा."

वन-हंसों को बुजुर्ग हंस की बात समझ में आ गई. वे बोले - "कल शिकारी के आने पर हम सभी ऐसा ही करेंगे."

दूसरे दिन जैसे ही शिकारी आता हुआ दिखाई दिया, सभी वन-हंस मुर्दे के समान पड़ गए. शिकारी ने पेड़ पर चढ़कर देखा तो सभी हंसों को मरा हुआ समझकर दुखी हुआ. वह एक - एक करके हंसों को जाल से निकाल - निकाल कर फेंकने लगा. जब तक सभी वन-हंसों को उसने जाल से नहीं निकाल दिया, तब तक सभी के सभी हंस मुर्दे की तरह पड़े रहे. जैसे ही आखिरी हंस मुक्त हुए सभी एक साथ फडफडाकर उठे और आकाश में उड़ गए. 

शिकारी बस आँखें फाड़े उन्हें आसमान में जाते हुए देखता रह गया. 

इसीलिए कहा गया है कि अनुभवी आदमी की सलाह का आदर करना चाहिए, उसे यूँ ही हलके में नहीं लेना चाहिए. 




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