बात उन दिनों की है जब जानवर भी इंसानों की तरह बोला करते थे.
किसी गाँव में रामू और दीनू नाम के दो भाई रहा करते थे. दोनों भाइयों के स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर था. रामू सीधा-सादा, नेक और मेहनती आदमी था तो दीनू कुटिल और चोर प्रवृत्ति का आदमी था. दीनू की हरकतों से तंग आकर आखिर एक दिन रामू अलग घर बना कर रहने लगा. किन्तु उनकी माँ दीनू के साथ ही रहती रही.
एक दिन दीनू ने रामू के घर से कुछ बर्तन चुरा लिए. रामू को पता चला तो वह दीनू के घर आया और बोला - "तूने मेरे बर्तन चुराए हैं ?"
उस समय दीनू अपने गधे को घास डाल रहा था. बोला- "नहीं भाई, मैंने तुम्हारे बर्तन नहीं लिए ?" किन्तु रामू को दीनू की बात पर विश्वास नहीं हुआ. उसने गधे से पूछा - "क्या यह सच बोल रहा है ?"
गधा पक्का सत्यवादी था. बोला - "यह झूठ बोल रहा है. इसी ने तुम्हारे बर्तन चुराए हैं. मैंने इसे तुम्हारे घर से बर्तन लाते अपनी आँखों से देखा है."
गधे के मुँह से यह सुनकर रामू कोतवाल के पास शिकायत करने की धमकी देकर चला गया. अब दीनू बड़ी चिंता में पड़ गया. अगर रामू ने कोतवाल के पास जाकर शिकायत कर दी तो उसे पकडे जाने से कोई नहीं बचा सकता ! क्योंकि यह गधा तो कोतवाल के सामने भी सच बोल देगा.
वह घबराया हुआ अपनी माँ के पास गया. माँ को जब सारी बात पता चली तो वह दीनू पर गुस्सा होती हुई बोली - "अब तू जाकर जेल की चक्की पीस ! भाई के घर चोरी करते तुझे शर्म नहीं आई ?"
माँ की बात सुनकर दीनू रोने लगा और माँ से बचा लेने की विनती करने लगा. जब दीनू बहुत रोया गिडगिडाया तो माँ को उस पर दया आ गई. उसने पहले तो दीनू से भविष्य में चोरी न करने की प्रतिज्ञा कराई फिर उसे बचा लेने का आश्वासन दिया.
दीनू को अपनी माँ की सूझबूझ पर बहुत भरोसा था. उसकी माँ ने उस रात खूब सारी रोटियाँ बनाईं और फिर चुपचाप छत के ऊपर जाकर आँगन में फेंकने लगी. दीनू नीचे आँगन में खड़ा हुआ यह देखकर ख़ुशी से नाचते हुए कहने लगा - "ओहो ... आज तो रोटियों की बरसात हो रही है ! आनंद आ गया !"
पास ही में बंधा हुआ गधा भी यह देखकर ख़ुशी से नाचने लगा. दीनू ने उन् रोटियों में से बहुत सारी गधे को खिला भी दीं.
अगले दिन तडके ही, जब गधा सोया हुआ था, दीनू की माँ ने कुछ चांदी के सिक्के गधे के आसपास बिखेर दिए. उजाला होने पर जब सब लोग जाग गए तब दीनू और उसकी माँ ख़ुशी से नाचते हुए कहने लगे - "देखो, रात में जो रोटियाँ बरसीं थीं उन्हें खाकर हमारे गधे ने लीद में चांदी के सिक्के दिए हैं !"
गधा भी अपने आसपास चांदी के सिक्के बिखरे देखकर आश्चर्यचकित हो गया और ख़ुशी से झूमने लगा.
दो तीन दिन बाद रामू कोतवाल को लेकर दीनू के घर आया. कोतवाल ने दीनू से चोरी के बावत पूछा तो वह साफ़ मुकर गया. उलटे यह कहने लगा कि उसका भाई उसे झूठमूठ चोरी के मामले में फंसाना चाहता है.
रामू बोला - "कोतवाल साहब, आप इस चोर की बातों पर विश्वास मत कीजिये. आप इसके गधे से पूछिये, वह हमेशा सच बोलता है !"
इस पर दीनू बोला - "कोतवाल साहब, मेरा गधा पागल है. हमेशा बेसिरपैर की बातें करता रहता है. उसकी बात का क्या विश्वास ?"
कोतवाल कड़ककर दीनू से बोला - "तुम चुप रहो ! मुझे गधे से पूछने दो !"
कोतवाल ने गधे से पूछा - "क्या दीनू ने रामू के बर्तन चुराए ?"
गधा बोला - "जी हाँ सरकार ! मैंने अपनी आँखों से देखा था."
कोतवाल - "ये किस दिन की बात है ?"
गधा - "उसी दिन की सरकार जिस रोज रात को आसमान से रोटियाँ बरसीं थीं !"
कोतवाल चकित होकर बोला - "आसमान से रोटियाँ बरसीं थीं ? तेरा दिमाग खराब है ?"
गधा - "हाँ सरकार ! उन रोटियों को खाकर मैंने सुबह चांदी के सिक्के लीद में दिए ! आप चाहें तो दीनू से पूछ लीजिये !"
कोतवाल ने हैरान होकर दीनू की ओर देखा. दीनू बोला - "मैं तो आपसे पहले ही कह चुका हूँ सरकार कि यह गधा पागल है, हमेशा बेसिरपैर की बातें करता रहता है."
"तुम ठीक कहते हो," कोतवाल बोला, "इस गधे की बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता. यह तो परले दर्जे का मूर्ख है."
और इस तरह दीनू उस दिन चोरी के इलज़ाम से बच गया. किन्तु जैसा उसने माँ के सामने प्रतिज्ञा की थी, उस दिन से उसने चोरी करना छोड़ दिया. माँ के कहने पर उसने रामू के बर्तन भी वापस कर दिए और उसके पैर पड़कर उससे क्षमा मांग ली.
किन्तु गधा उस दिन से खामोश हो गया. कहते हैं उसी दिन से गधे ने चुप्पी साध रखी है. अब वह किसी बारे में कोई टिप्पणी नहीं करता है. उसकी समझ में आ गया है कि मानव बुद्धि और सूझबूझ के आगे उसका सीधासादा सच भी झूठ में बदल सकता है. उसे मूर्ख ठहराया जा सकता है.
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