चीन के एक गाँव में दो किसान मित्र रहते थे. दोनों बुजुर्ग हो चुके थे और उनकी आर्थिक स्थिति भी लगभग समान थी, अर्थात, दोनों गरीब थे. एक बार दोनों के खेतों में अच्छी फसल हुई और दोनों उसे बेचने शहर की मंडी में गए.
उस ज़माने में मुद्रा के रूप में चांदी के सिक्कों का प्रचलन था, इसलिए फसल बेचने पर उन्हें जो चांदी प्राप्त हुई, उसे लेकर वे शहर की एक सराय में ठहर गए क्योंकि गाँव लौटने के लिए काफी देर हो चुकी थी.
गरीब को अगर थोडा सा धन प्राप्त हो जाय तो उसके दिमाग में सबसे पहले उस धन की सुरक्षा की बात आती है, यही उन दोनों बूढों के दिमाग में भी आया. सोने से पहले उन्हें चिंता होने लगी कि अगर उनके सो जाने के बाद उनकी चांदी की मुहरें किसी ने चुरा लीं तो ?
उन दोनों ने अपनी चांदी की मुहरें आपस में सलाह मशविरा करके अपने साथ लायी कलेवे की टोकरी में छुपा दीं और उस टोकरी को एक तरफ रख दिया. उन्होंने सोचा कि अगर कोई चोर आया भी तो खाने-पीने की टोकरी पर ध्यान नहीं देगा. साथ ही, चोर को झांसा देने के लिए उन्होंने अपने गमछों में कुछ पत्थर के टुकड़े बांधकर अपने सिरहाने रख लिए और सो गए. उन्होंने सोचा था कि चोर सोचेगा कि धन बूढों के सिरहाने में रखा हुआ है और उसे ही चोरी करेगा.
लेकिन वे गलत थे. जब वे आपस में सलाह-मशविरा कर रहे थे, तब उनकी बातें सराय के मालिक और उसकी पत्नी ने सुन लीं थीं. उन्होंने छिपकर यह भी देख लिया कि दोनों बूढों ने असली रकम कलेवे की टोकरी में छिपाकर एक तरफ रख दी थी. जैसे ही दोनों बूढ़े गाढ़ी नींद में पहुंचे, वे कमरे के अन्दर गए और टोकरी में रखी मुहरों की पोटलियाँ उठा ले गए.
सुबह जब बूढ़े उठे, तो उन्होंने पाया कि टोकरी में रखा उनका धन चोरी हो चुका है. कुछ देर तक दोनों दुखी होते रहे, फिर उन्होंने सोचना आरम्भ किया कि उनकी मुहरें कौन चुरा सकता है. उन्होंने देखा कि उस रात उन दोनों के अलावा उस सराय में और कोई मुसाफिर न आया था न गया था. उन दोनों के अलावा उस सराय में रहने वाले केवल दो ही व्यक्ति थे, सराय का मालिक और उसकी पत्नी.
बूढों ने सीधे सराय के मालिक के पास जाकर पूछा- "कल रात हमारी चांदी की मुहरें किसने चुराईं ?"
सराय के मालिक ने अनभिज्ञता प्रकट करते हुए कुछ इस तरह से दिखाया जैसे वह इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित हो, बोला - "अरे, यह क्या हो गया ? आपकी चोरी हो जाना आपके लिए भले कुछ न हो, मगर हमारे लिए तो यह बड़ी बदनामी की बात है. अगर हमारी सराय में चोरी की बात फैली तो फिर हमारी सराय में ठहरेगा कौन ? इस चोरी का तो पता लगाना ही होगा. चलो, हम शहर के हाकिम के पास चलते हैं."
बूढों को पूरा संदेह था कि सराय मालिक और उसकी पत्नी ने ही मुहरें चुराईं हैं किन्तु पक्का सबूत न होने के कारण स्पष्ट नहीं कह पा रहे थे.
खैर, चारों मिलकर हाकिम के पास पहुंचे. हाकिम ने दोनों बूढों की, फिर सराय के मालिक और उसकी पत्नी की बात सुनी, पर उनकी बात सुनकर वह किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाया.
हाकिम का एक मित्र था, उसका नाम था फान चियान्गशान. फान बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि वाला व्यक्ति था. हाकिम अक्सर पेचीदे मामलों में उससे सलाह लेता रहता था. इस मामले में भी उसने फान से सलाह लेना मुनासिब समझा.
फान ने दोनों बूढों और सराय मालिक तथा उसकी पत्नी की बातें सुनीं फिर बोला - "आप लोगों के मामले में मेरी समझ में भी कुछ नहीं आ रहा. आपका फैसला तो अब केवल हमारे मंदिर का नगाड़ा ही कर सकता है."
नगाड़े की बात सुनकर चारों फरियादियों के साथ-साथ हाकिम भी चकित रह गया. हाकिम बोला, "जो मामला मेरी और तुम्हारी समझ में नहीं आया, उसका फैसला भला एक बेजान नगाड़ा क्या देगा ?"
फान बोला, "यह कोई आम नगाड़ा नहीं, बल्कि दैवीय शक्तियों से युक्त नगाड़ा है. इनमें से जो भी सच बोल रहा है उसकी फरियाद सुनकर नगाड़ा अपने आप बज उठेगा जबकि झूठ बोलने वाले के सामने नगाड़ा नहीं बजेगा."
हाकिम को नगाड़े वाली तजबीज बिलकुल समझ नहीं आई फिर भी चूंकि उसे अपने मित्र पर विश्वास था इसलिए उसने फान को इजाजत दे दी.
फान ने सबसे पहले दोनों बूढों से कहा कि वे कल सुबह मंदिर से अपने कन्धों पर नगाड़े को उठाकर हाकिम के दफ्तर तक ले कर आयें.
मरते क्या न करते ! बेचारे दोनों बूढ़े अगली सुबह मंदिर पहुंचे और अपने कन्धों पर नगाड़े को उठाकर ले जाने लगे. नगाड़ा आकार में जितना बड़ा था, उसके अपेक्षाकृत काफी भारी था. उसे कन्धों पर उठाकर वे आधे रास्ते में ही बुरी तरह थक गए. उन्होंने नगाड़े को जमीन में रख दिया और आपस में बातें करने लगे. एक बूढ़ा बोला - "हमारे पैसे तो गए ही, ऊपर से इस नगाड़े को ढोने की आफत और आन पड़ी है."
दूसरा बूढ़ा बोला, "सच कहते हो भैया, न जाने कौन घडी में हम अपनी फसल बेचने निकले थे. मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि अब घरवालों को जाकर क्या जवाब दूंगा ? पता नहीं कौन कमबख्त हमारी पूरी कमाई ले गया."
पहला बूढ़ा बोला, "मुझसे तो अब इसे और नहीं ढोया जाता, मैं तो हाकिम को यहीं बुला लाता हूँ और उससे कहता हूँ कि नगाड़े से जो भी पूछना है यहीं पूछ ले." इतना कहकर वह हाकिम को बुला लाने के लिए चल दिया.
हाकिम ने आकर नगाड़े से पूछा - "बता नगाड़े, ये दोनों बूढ़े सच्चे हैं या झूठे ?"
हाकिम के इतना कहते ही नगाड़ा अपने आप बज उठा. हाकिम समझ गया कि बूढों के पैसे सचमुच चोरी हुए थे. अब उसके सामने समस्या थी कि पैसे किसने चोरी किये थे ?
शाम के वक़्त फान ने सराय मालिक और उसकी पत्नी को हाकिम के दफ्तर में बुलाया और कहा - "कल सुबह तुम दोनों को मंदिर से नगाड़े को अपने कन्धों पर उठाकर हाकिम के दफ्तर तक लाना है."
अगली सुबह सराय का मालिक और उसकी पत्नी नगाड़े को कन्धों पर उठाकर हाकिम के दफ्तर की ओर चले. नगाड़ा पिछले दिन की ही तरह काफी भारी था. कुछ ही दूर चलने पर दोनों की सांस फूल गई. आखिर उन्होंने नगाड़े को उतारकर एक ओर रख दिया और बतियाने लगे.
सराय मालिक बोला, "हमने बूढों के पैसे चुराकर सचमुच गलती की. अब यह नगाड़ा हमारी सारी पोल खोल देगा."
पत्नी बोली - "क्यों न हम इस नगाड़े को ही फोड़ दें ? फिर हम हाकिम से कह सकते हैं कि फूटा नगाड़ा हमारे सच की गवाही देने के लिए आखिर कैसे बजेगा ?"
सराय मालिक बोला, "तुम ठीक कहती हो." इतना कहकर उसने एक नुकीला पत्थर नगाड़े को फोड़ने के लिए उठाया. किन्तु इससे पहले कि वह नगाड़े को फोड़ता, नगाड़े का आवरण उठाकर उसके भीतर से फान प्रकट हुआ और बोला, "नगाड़े ने सच जान लिया है. तुम दोनों ने ही बूढों के पैसे लिए हैं."
फान को देखते ही सराय मालिक और उसकी पत्नी के होश उड़ गए. जैसे तैसे वे अपने आप को संभलकर फान के पैरों में गिर पड़े और कहने लगे, "हम बूढों के पैसे वापस करने को तैयार हैं, किन्तु हमें अपयश और सजा से बचाइये. हम आइन्दा ऐसी गलती नहीं करेंगे."
फान बोला, "तुम्हें माफ़ करने का अधिकार केवल उन दोनों बूढों के पास है."
दोनों गरीब बूढ़े, अपना धन पाकर खुश हो गए और सराय मालिक और उसकी पत्नी को क्षमा करते हुए अपने घर को चले गए.
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