राजा और दार्शनिक - एक ऐतिहासिक लघु कथा | Raja aur Darshnik - A short story from History

इतिहास में रुचि रखने वाला हर व्यक्ति, सिकंदर के नाम से अवश्य परिचित होगा। मकदूनिया के राजा फिलिप का बेटा सिकंदर महान, ईसा से लगभग तीन शताब्दी पूर्व, बहुत ही छोटी उम्र में सिंहासन पर बैठा और शीघ्र ही विश्वविजय के लिए निकल पड़ा था। 

सिकंदर केवल एक योद्धा ही नहीं था बल्कि वह महान दार्शनिक अरस्तू का शिष्य था और इस कारण वह विद्वानों और गुणीजनों से मिलने के लिए सदैव लालायित रहता था। उसके समय में डायोजिनिस (Diogenes) नाम का एक दार्शनिक हुआ करता था। उसका स्वभाव बड़ा अजीब था। वह एथेंस नगर के समीप एक पाइपनुमा निवास में रहता था और हमेशा घमंडी और शक्तिशाली व्यक्तियों का मज़ाक उड़ाया करता था। लेकिन उसकी हाजिरजवाबी और बुद्धिमानी कुछ इस दर्जे की थी कि लोग उस पर मुग्ध रहा करते थे। 

सिकंदर ने जब डायोजिनिस के बारे में सुना तो वह उससे मिलने गया और उसने उससे कुछ प्रश्न पूछे। उस समय डायोजिनिस अपने पाइप के बाहर धूप में लेटा हुआ था। डायोजिनिस ने सभी प्रश्नों के उत्तर दिये जिससे सिकंदर बहुत प्रभावित हुआ। सिकंदर ने डायोजिनिस से प्रभावित होकर उसे इनाम के तौर पर धन-दौलत, महल या उसकी मनोवांछित कुछ भी चीज़ देने का निश्चय किया। दरअसल उसे उस महान दार्शनिक पर दया भी आ रही थी जिसके पास सिर छिपाने के लिए ढंग की छत भी नहीं थी। 

"कहिए डायोजिनिस, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?" सिकंदर ने पूछा। 

मगर दार्शनिक ने कोई उत्तर नहीं दिया बल्कि मौन लेटा रहा। 

सिकंदर ने सोचा, शायद डायोजिनिस यह हिसाब लगा रहा है कि वह इतने बड़े राजा से कितना धन मांगे, इसलिए वह प्रश्न करने के बाद शांत होकर कुछ देर खड़ा रहा। किन्तु काफी देर इंतज़ार करने के बाद भी डायोजिनिस के मुँह से कोई बोल न फूटा। वह मौन ही रहा। 

जब राजा ने अपना प्रश्न दुहराया तब डायोजिनिस धीमे से बोला, "आप सूरज की रोशनी को रोक रहे हैं। क्या आप थोड़ा सा हट जाएँगे जिससे मुझे कुछ धूप मिल सके।"

राजा के साथ उस समय जो सरदार और सिपहसालार आदि थे, उन्होने सोचा कि सिकंदर इस दार्शनिक को इस गुस्ताखी की सख्त सजा देगा। लेकिन सिकंदर चुपचाप वहाँ से खिसक गया और दूर जाकर अपने साथियों से बोला, "यदि में सिकंदर न होता तो डायोजिनिस बनना पसंद करता।"

दार्शनिक डायोजिनिस का एक और किस्सा प्रसिद्ध है। उसका एक गरीब प्रशंसक कमोबेश हर रोज अपना भोजन दार्शनिक के साथ बाँटकर खाता था। उस गरीब आदमी का भोजन भी क्या होता था, कभी दलिया तो कभी कुछ और रूखा सूखा। एक दिन अरिस्टिफ़्स नाम का एक दूसरा प्रसिद्ध दार्शनिक, जो एथेंस के राजा के संरक्षण में आराम की ज़िंदगी गुजार रहा था, डायोजिनिस को दलिया खाते देखकर बोला, "मेरे दोस्त, यदि तुम केवल राजा को खुश करना जान जाते, तो तुम्हें दलिया खाकर गुजारा नहीं करना पड़ता !"

डायोजिनिस तुरंत बोला - "मेरे दोस्त, यदि तुम केवल यह जान जाते कि दलिया खाकर कैसे ज़िंदा रहा जा सकता है, तो तुम्हें राजा की खुशामद नहीं करनी पड़ती।"

कहने की जरूरत नहीं, मित्र महोदय अपना सिर झुकाये वहाँ से चले गए। 




Post a Comment

0 Comments