पड़ोसी - एक लोक कथा | Padosi - Ek Lok Katha

एक धनी व्यक्ति शहर के कोलाहल से बहुत उकता गया इसलिए उसने अपने रहने के लिए शहर की भीड़भाड़ से बहुत दूर एक नया मकान बनवाया। वह बहुत शांतिप्रिय व्यक्ति था इसलिए बहुत खुश था वहाँ बहुत कम घर थे । उसके घर के आजू-बाजू में दो झोपड़ियाँ बनीं थीं, इसके अलावा नजदीक और कोई घर या मकान नहीं था। 

वह खुशी - खुशी अपने नए घर में रहने आया लेकिन पहली रात में ही उसकी खुशी काफ़ूर हो गई। उसके घर के एक ओर बनी झोपड़ी से रात भर हथौड़े चलने की तो दूसरी ओर वाली झोपड़ी से आरी चलने की आवाजें लगातार आतीं रहीं। 

सुबह होते ही उसने नौकर को भेजकर पता करवाया तो पता चला कि उसके घर के एक ओर की झोपड़ी एक लुहार की है तो दूसरी ओर की झोपड़ी में एक लकड़ी का सामान बनाने वाला रहता है। नौकर के जरिये उसे यह भी पता चला कि वे दोनों रात में ही काम करने के आदी हैं और दिन में आराम करते हैं। 

नौकर की बात सुनकर धनी व्यक्ति बेचैन हो गया। जिस शांति की तलाश में उसने शहर से इतनी दूर घर बनाया था, वह उसे यहाँ भी नसीब नहीं होने जा रही थी। किसी तरह उसने हथौड़े की ठक ठक और आरी की घर्र-घर्र सुनते हुये एक हफ्ता गुजारा किन्तु उसकी बेचैनी बढ़ती गई। नया मकान बनाने में उसने जो लाखों रुपये खर्च किए थे, वह इन दो अजीब पड़ोसियों की वजह से व्यर्थ होते नजर आ रहे थे। 

आखिर एक दिन तंग आकर उसने दोनों पड़ोसियों को बुलाया और उनसे रात की बजाय दिन में अपना काम करने की प्रार्थना की, क्योंकि दिन में वह भी अक्सर घर से बाहर रहता था इसलिए उसे विशेष असुविधा नहीं महसूस होती थी। 

किन्तु पड़ोसियों ने रात का काम छोडने से साफ मना कर दिया। उन्होने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बरसों से उनका यही क्रम चला आ रहा है कि दिन में वे आराम करते हैं और अपने ग्राहकों से मिलते हैं। किन्तु काम सिर्फ रात में ही करते हैं। इसे वे नहीं बदल सकते। 

पड़ोसियों की बात सुनकर धनी को बहुत निराशा हुई। किसी तरह उसने एक हफ्ता और गुजारा, किन्तु उसे चैन न मिलता था। अंततः उसने धन की शक्ति का सहारा लेने का निश्चय किया। उसने अपने पड़ोसियों को बुलाया और उनसे कहा कि यदि वह उन्हें उनकी झोपड़ियों की कीमत दे दे तो क्या वे अपनी झोपड़ियाँ उसे बेच देंगे ? 

इस प्रस्ताव को भी दोनों पड़ोसियों ने यह कहते हुये नकार दिया कि ये उनकी पुश्तैनी झोपड़ियाँ हैं। उनके बाप-दादे इन्हीं झोपड़ियों में रहते आए थे इसलिए इन्हें वे किसी कीमत पर नहीं बेच सकते। बेचारा धनी एक बार फिर निराश हो गया। 

एक हफ्ते बाद धनी ने नई युक्ति सोची और दोनों पड़ोसियों को बुलाया। उसने उनसे कहा कि यदि वह उन्हें एक-एक हजार रुपये प्रति महीने दे तो क्या वे अपना रात का काम किसी दूसरे स्थान पर जाकर करने को तैयार हैं ? 

इस प्रस्ताव पर दोनों पड़ोसियों ने एक दूसरे की ओर देखा, और कुछ सोचते हुये यह प्रस्ताव मान लिया। धनी बहुत प्रसन्न हुआ । उसने तुरंत दोनों को एक - एक हजार रुपये पेशगी दे दिये। दोनों पड़ोसी रुपये लेकर चले गए। 

उस रात धनी बहुत खुश था कि चलो अब कम से कम रात को वह चैन से सोया करेगा। किन्तु उसकी यह खुशी ज्यादा देर तक टिक न सकी। जैसे ही रात गहराई, लुहार वाली झोपड़ी से आरी चलने की आवाज और बढ़ई की झोपड़ी से हथौड़े की ठक ठक की आवाज आने लगी। 

सुबह धनी के नौकर ने बताया कि लकड़ी का काम करने वाले बढ़ई ने अपना कारोबार लुहार की झोपड़ी में, और लुहार ने अपना कारोबार बढ़ई की झोपड़ी में स्थानांतरित कर लिया है। 




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