सच्चे आलसी - एक छोटी सी लोक कथा | Sachche Aalasi - A short folk tale in Hindi

 पुराने जमाने में एक बड़ा दयालु राजा था। वह हमेशा प्रजा के सुख-दुख का खयाल रखता और उन्हें कोई कष्ट न होने देता था। किन्तु धीरे-धीरे राजा की अच्छाई का परिणाम यह हुआ कि उसके राज्य में बहुत सारे लोग आलसी हो गए। उन्होंने सारा कामधाम करना छोड़ दिया। 'जब हमारी चिंता करने के लिए राजा मौजूद है फिर हम क्यों फिजूल में खटते रहें', कुछ इस तरह की सोच बहुत से लोगों ने बना ली।  यहाँ तक कि अपने खाने पीने के लिए भी वे दूसरों पर या राजा की दया पर निर्भर रहने लगे। ज्यादातर समय वे लेटे रहते या सोते रहते।

खाने की समस्या का निराकरण जरूरी था क्योंकि इन आलसियों को खिलाने में लोग आनाकानी करने लगे। आलसियों की बढ़ती तादाद के कारण राजा के लिए भी यह मुश्किल काम होता जा रहा था। एक दिन सभी आलसियों ने राजा से मांग की कि सभी आलसियों के लिए एक आश्रम बनवाना चाहिए और उनके खाने पीने और रहने की व्यवस्था करनी चाहिए।

राजा नेक और दयालु तो था ही, साथ साथ बुद्धिमान भी था। उसने कुछ सोचकर मंत्री को एक आश्रम बनाने का आदेश दिया। आश्रम के तैयार होने पर सभी आलसी वहाँ जाकर खाने और सोने लगे।

एक दिन राजा अपने मंत्री और कुछ सिपाहियों के साथ वहाँ आया और उसने एक सिपाही से कहकर आश्रम में आग लगवा दी। आश्रम को जलता देख आलसियों में भगदड़ मच गई और सभी जान बचाने के लिए आश्रम से दूर भाग गए।

जलते हुए आश्रम में दो आलसी अभी भी सोये हुए थे। एक को पीठ पर गर्मी महसूस हुई तो उसने पास ही में लेटे दूसरे आलसी से कहा, “मुझे पीठ पर गर्मी लग रही है, ज़रा देखो तो क्या माजरा है ?”

“तुम दूसरी करवट लेट जाओ”, दूसरे आलसी ने बिना आखें खोले ही उत्तर दिया।

यह देखकर राजा ने अपने मंत्री से कहा, “केवल ये दोनों ही सच्चे आलसी हैं। इन्हें भरपूर सोने और खाने को दिया जाए। शेष सारे कामचोर हैं। उन्हें डंडे मार मार कर काम पर लगाया जाए।”




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