हित और अहित - एक छोटी सी लोक कथा | Hit aur ahit - A short folk tale in Hindi

प्राचीन काल की बात है, सुधर्म नाम का एक राजा था। एक बार उसके सिपाही एक परदेशी को पकड़कर उसके दरबार में न्याय के लिए ले आए। उस परदेशी पर आरोप था कि वह नगर के एक व्यापारी के घर में चोरी करने की नीयत से घुसा और असफल रहने पर व्यापारी पर जानलेवा हमला भी किया। 

राजा सुधर्म के राज्य में चोरों डकैतों के लिए कोई जगह नहीं थी। वह ऐसे असामाजिक तत्वों के साथ कोई रियायत नहीं बरतता था। यही कारण था कि उसके राज्य में सर्वत्र खुशहाली, अभय और अमन चैन था। एक परदेशी ने उसके राज्य में आकर चोरी करने का दुस्साहस किया, यह सोचते ही राजा का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने पूरा मामला सुनने के बाद फैसला दिया कि इस परदेशी को अगले दिन सुबह फांसी पर लटका दिया जाये। 

राजा का फैसला सुनने के बाद सिपाही जब उस परदेशी को लेकर जाने लगे तो वह परदेशी अपनी भाषा में कुछ अंटशंट बकने लगा। राजा को लगा कि परदेशी ने जरूर उसी के संबंध में कुछ कहा है। उसने तुरंत अपने मंत्री से कहा - "मंत्री जी, क्या आप बता सकते हैं कि इस परदेशी ने अभी-अभी क्या कहा है ? आप तो बहुत सी भाषाओं के जानकार हैं।" 

मंत्री जी बोले - "जी हाँ महाराज ! मैं इस आदमी की भाषा समझ सकता हूँ। यह आदमी आपके न्याय की प्रशंसा कर रहा है।"

परदेशी उसके न्याय की प्रशंसा कर रहा है ! यह सुनते ही राजा का क्रोध कुछ शांत हो गया। उसे लगा कि फांसी की सजा देकर शायद उसने कुछ ज्यादती कर दी है। उसने तुरंत सिपाहियों से कहा - "मैं इस आदमी की फांसी की सजा रद्द करता हूँ। इसके बजाय इसे सिर्फ एक साल के लिए कारागार में बंद रखा जाये।"

मंत्री जी मुसकुराते हुये अपनी जगह पर बैठ गए। उसी दरबार में एक सभासद भी बैठा हुआ था। वह भी परदेशी की भाषा का जानकार था। वह तुरंत अपने आसन से खड़े होकर बोला - "महाराज, मंत्री जी ने आपसे झूठ बोला है। यह आदमी आपके न्याय की प्रशंसा नहीं कर रहा था बल्कि आपकी निंदा कर रहा था। मैं भी इस आदमी की भाषा बखूबी समझ सकता हूँ। "

सभासद की बातें सुनकर राजा कुछ पल मौन रहे, फिर बोले - "मंत्री जी ने जो झूठ कहा, उसके कारण एक आदमी की जान बची। लेकिन तुमने जो सच कहा उसके कारण इसकी जान जा सकती है। मंत्री जी के झूठ में हित छिपा हुआ है जबकि तुम्हारे सच में अहित। किसी का अहित करने वाले सच की अपेक्षा किसी का हित करने वाला झूठ अधिक श्रेयस्कर होता है। इसलिए अब तुम अपनी जगह पर बैठ जाओ।"

राजा की बात सुनकर सभासद लज्जित होकर अपनी जगह पर बैठ गया। चोर परदेशी को राजा ने एक साल के लिए कारगार में भिजवा दिया।




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