लड़की की चतुराई - एक लोक कथा | Lok Katha in Hindi

किसी गाँव में एक गरीब किसान रहता था. एक बार उसे पैसों की बहुत आवश्यकता पड़ी तो वह गाँव के महाजन के पास गया। महाजन भला आदमी था उसने दया करके किसान को एक हजार रुपये दे दिये।  किसान ने महाजन को रुपये लौटाने के लिए एक साल की मोहलत मांगी। महाजन ने किसान की बात मान ली। 

किन्तु एक साल बीत जाने के बाद भी किसान महाजन के पैसे नहीं लौटा सका। उसकी फसल अच्छी नहीं हुई थी ।  आखिरकार महाजन को मजबूरन उसके घर जाना पड़ा. लेकिन वहां वह किसान उसे नहीं मिला. किन्तु किसान की छोटी लड़की वहाँ बैठी थी. महाजन ने उसी से पूछा-'तुम्हारे पिताजी कहाँ है?'

लड़की बोली- "पिताजी देवताओं का पानी रोकने गये हैं."

महाजन को कुछ समझ नहीं आया। उस ने फिर पूछा- "तुम्हारा भाई कहां है?"   

लड़की बोली- "भैया बिना झगड़ा के झगड़ा करने गये हैं."

महाजन की समझ में एक भी बात नहीं आ रही थी. इसलिए आगे पूछा- "तुम्हारी माँ कहां है?" 

लड़की बोली-'माँ एक के दो करने गई है.' 

महाजन लड़की के ऊल-जुलूल जवाबों से खीझ गया. उसने थोड़ा गुस्से में आकर पूछा - "और तुम यहां बैठी क्या कर रही हो?"

लड़की हंसकर बोली- "मैं घर बैठी संसार देख रही हूं."

महाजन समझ गया कि लड़की उसकी किसी भी बात का सीधा जवाब नहीं देगी. इसलिए उसे अब इससे इन बातों का मतलब जानने के लिए प्यार से बतियाना पड़ेगा. महाजन ने चेहरे पर प्यार से मुस्कान लाकर पूछा- "बेटी,तुमने जो अभी-अभी मेरे सवालों के जवाब दिये, उनका मतलब क्या है? मैं तुम्हारी एक भी बात का मतलब नहीं समझ सका. तुम मुझे सीधे-सीधे उनका मतलब समझाओ."

लड़की ने भी मुस्करा कर पूछा- 'अगर मैं सभी बातों का मतलब समझा दूं तो आप मुझे क्या देंगे?'

महाजन के मन में सारी बातों को जानने की तीव्र उत्कंठा जाग उठी थी. वह बोला-"जो मांगोगी,वही दूंगा." तब लड़की बोली- "आप मेरे पिताजी का सारा कर्ज माफ़ कर देंगे तो मैं आपको सारी बातों का अर्थ बता दूंगी.'

महाजन समझ गया कि यह लड़की साधारण नहीं है। किन्तु उसके लिए हजार रुपये कोई बड़ी रकम नहीं थी। इसलिए उसने कहा- "ठीक है, मैं तुम्हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा. अब तो सारी बातों का अर्थ समझा दो"

लड़की बोली- "आज मैं आपको सारी बातों का अर्थ नहीं समझा सकती. कृपा कर आप कल आयें. कल मैं ज़रूर बता दूंगी."

महाजन अगले दिन फिर किसान के घर गया. आज वहां सभी लोग मौजूद थे. वह किसान, उसकी पत्नी, बेटा और उसकी बेटी भी. महाजन को देखते ही लड़की ने पूछा- "आपको अपना वचन याद है ना?"

महाजन बोला- "हां मुझे याद है. तुम अगर सारी बातों का अर्थ बता दो तो मैं तुम्हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा."

लड़की बोली-'सबसे पहले मैंने यह कहा था कि पिताजी आसमान का पानी रोकने गये हैं, इसका मतलब था कि वर्षा ऋतु आने वाली है और हमारे घर की छत से पानी टपकता है. पिताजी पानी रोकने के लिए छत को बना रहे थे. अब वर्षा का पानी आसमान से ही गिरता है और हमलोग तो यही मानते हैं कि आसमान में ही बसते है. बस, पहली बात का अर्थ यही है. दूसरी बात मैंने कही थी कि भईया बिना झगड़ा के झगड़ा करने गये है. इसका मतलब था कि वे रेंगनी के कांटे को काटने गये थे. अगर कोई भी रेंगनी के कांटे को काटेगा तो उसके शरीर में जहां-तहां काँटा गड़ ही जायेगा, यानि झगड़ा नहीं करने पर भी झगड़ा होगा और शरीर पर खरोंचें आयेंगी."

महाजन उसकी बातों से सहमत हो गया. वह मन-ही-मन उसकी चतुराई  की प्रशंसा करने लगा. उसने उत्सुकता के साथ पूछा- 'और तीसरी-चौथी बात का मतलब क्या था बेटी?'

लड़की बोली- "तीसरी बात मैंने कही थी कि माँ एक के दो करने गई है. इसका मतलब था कि माँ अरहर दाल को पीसने अर्थात उसे एक का दो करने गई है. अगर साबुत दाल को पिसा जाय तो एक दाना का दो भाग हो जाता है. यही था एक का दो करना. रही चौथी बात तो उस समय मैं भात बना रही थी और उसमे से एक चावल देखकर ही जान जाती कि पूरा चावल पका है कि नहीं. अर्थत चावल के संसार को मैं घर बैठी देख रही थी.' यह कहकर लड़की चुप हो गई.

महाजन सारी बातों का अर्थ जान चुका था. उसे लड़की की बुद्धिमानी भरी बातों ने आश्चर्य में डाल दिया था. फिर उसने कहा- 'बेटी, तुम तो बहुत चतुर हो. पर एक बात समझ में नहीं आई कि यह सारी बातें तो तुम मुझे कल भी बता सकती थी, फिर तुमने मुझे आज क्यों बुलाया?'

लड़की हंसकर बोली- 'मैं तो बता ही चुकी हूं कि कल जब आप आये थे तो मैं भात बना रही थी. अगर मैं आपको अपनी बातों का मतलब समझाने लगती तो भात गीला हो जाता या जल जाता, तो माँ मुझे ज़रूर डांटती. फिर घर मैं कल कोई भी नहीं था. अगर मैं इनको बताती कि आपने कर्ज माफ कर दिया है तो ये मेरी बात का विश्वास नहीं करते. आज स्वयं आपके मुंह से सुनकर कि आपने कर्ज माफ कर दिया है,  इन्हें इसका विश्वास हो जायेगा।"

महाजन लड़की की बात सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुआ. उसने अपने गले से मोतियों की माला निकाल उसे देते हुए कहा- 'बेटी, यह लो अपनी चतुराई का पुरस्कार! तुम्हारे पिताजी का कर्ज तो मैं माफ कर ही चुका हूं. अब तुम्हें या तुम्हारे घरवालों को कुछ नहीं चुकाना पड़ेगा. अब तुम लोग निश्चिंत होकर रहो. अगर फिर कभी किसी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक होकर मुझसे कहना.'

इतना कहकर महाजन लड़की को आशीर्वाद देकर चला गया. लड़की के परिवारवालों ने उसे खुशी से गले लगा लिया.




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