मछलियों की मूर्खता - पंचतंत्र की एक कहानी | A Panchatantra Story

 एक सरोवर में बहुत-सी छोटी-छोटी मछलियाँ रहती थी. उन मछलियों में दो मछलियाँ ऐसी थी, जिनमे एक का नाम सौबुद्धि और दूसरी का नाम सहस्त्रबुद्धि था. सौबुद्धि अपने नाम के अनुसार ही समझती थी कि उसमे सौ बुद्धि है. इसी प्रकार सहस्त्रबुद्धि भी समझती थी कि उसमें सहस्त्र (हजार) बुद्धि है.    

सौबुद्धि और  सहस्त्रबुद्धि दोनों अपने को सभी मछलियों से श्रेष्ठ  समझती थी. दोनों के मन में अपनी-अपनी बुद्धि का बड़ा गर्व था. दोनो जब भी बोलती थी, ऐंठकर बोलती थी , बड़े गर्व के साथ बोलती थी |

एक बार गरमी के दिन थे, तालाब में पानी कम हो गया था.  पानी इतना कम हो गया था कि नीचे तैरती हुई मछलियाँ ऊपर से दिखाई पड़ जाती थी |

एक दिन एक मछुआ जाल लेकर तालाब के किनारे पंहुचा. वह किनारे पर खड़ा होकर तालाब की ओर देखने लगा. तालाब के पानी में हजारो मछलियाँ तैर रही थी.

मछलियों को देखकर मछुए के मुँह में पानी आ गया. वह अपने आप से कहने लगा,"इस तालाब में बहुत-सी मछलियाँ है, पानी भी कम हो गया है. कल सबेरे जाल डालकर इन्हें फँसा लेना चाहिए." 

मछुए की बात मछलियों के कानों में भी पड़ी. मछलियाँ व्याकुल हो उठी -हाय-हाय, अब क्या किया जाए? कल सवेरे मछुआ जाल डालकर हम सबको फँसा लेगा.

व्याकुल मछलिया सौबुद्धि के पास गई. वे सौबुद्धि को मछुए की बात सुनाकर बोली," तुम्हारे पास सौ बुद्धि है. तुम सबसे श्रेष्ठ हो. दया करके कोई ऐसा उपाय बताओ, जिससे हम सब उसके जाल में न फँसे."

सौबुद्धि इतराकर बोली, "तुम सब व्यर्थ ही डर रही हो. मछुआ कल यहाँ नहीं आएगा. उसे पता है कि इस तालाब में मेरी जैसी श्रेष्ठ मछलियाँ रहती है | तुम सब डरो नहीं. जाओ, सुख से रहो| यदि मछुआ आएगा तो मैं देख लूंगी."

व्याकुल मछलियाँ सहस्त्रबुद्धि के पास गई. उसे भी मछुए को बात सुनाकर मछलियों ने कहा, "तुम्हारे पास  सहस्त्र बुद्धि है, तुम सबसे श्रेष्ठ हो. कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताओ, जिससे हम सब मछुए के जाल में न फसें |"

पर सहस्त्रबुद्धि ने गर्व के साथ उसी तरह की बातें कही, जिस तरह की बातें सौबुद्धि ने कही थी | 

तालाब में एक मेंढक का नाम एकबुद्धि था. वह सबसे प्रेम से बोलता था, सबसे मिल -जुलकर रहता था. वह बड़ा अनुभवी और व्यावहारिक भी था. 

व्याकुल मछलियाँ एकबुद्धि के पास भी गई. उसे भी मछुए कि बात सुनाकर मछलियाँ बोली," दया करके कोई ऐसा उपाय बताओ, जिससे हम सब मछुए के जाल में न फँसे."

एकबुद्धि सोचता हुआ बोला, "मेरे पास तो एक ही बुद्धि है. मेरी समझ में तो यही आ रहा है कि तुम लोगो को इस तालाब को छोड़ देना चाहिए. तालाब में पानी कम हो गया है. कल मछुआ जरुर आएगा और वह तुम सबको फँसाने के लिए जाल अवश्य डालेगा."

एकबुद्धि की बात सुनकर सौबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने उसकी बड़ी हँसी उड़ाई.

दोनों ने बड़े गर्व के साथ मछलियों से कहा,"यह तो मुर्ख है. इसकी बातो पर विश्वास मत करना. चुपचाप इसी तालाब में रहो, कुछ नहीं होगा|"

मछलियाँ सौबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि कि बात मानकर उसी तालाब में रह गई, पर मेंढक अपने बाल-बच्चों को लेकर उसी दिन दुसरे तालाब में चला गया.

 दूसरे दिन सबेरा होते ही मछुआ जाल लेकर तालाब पर आ पहुँचा. उसने मछलियों को फँसाने के लिए जाल तालाब में फैला दिया.

मछलियाँ व्याकुल होकर इधर से उधर भागने लगी, पर भागकर कहाँ जा सकती थी? सारी मछलियाँ जाल में फँस गईं. 

सौबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने भी बचने का बड़ा प्रयत्न किया, पर वे दोनों भी जाल में फँस गई| 

मछुआ फसी हुई मछलियों को जाल में लेकर चल पड़ा. वह जाल कंधे पर रखे हुए था. उसका रास्ता उसी तालाब की ओर से होकर जाता था जिसमे एकबुद्धि अपने बाल-बच्चों के साथ जाकर बस गया था. 

एकबुद्धि किनारे पर बैठा हुआ था. उसने जब जाल में फँसी हुई मछलियों को देखा, तो उसे बड़ा दु:ख हुआ. उसने अपने बाल-बच्चों को बुलाकर कहा, "सौबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि की बात मानने के कारण बेचारी सभी मछलियों को जान से हाथ धोना पड़ा. दोनों अनुभवहीन थी, घमंडी थी. घमंड के कारण दोनों ने यह नहीं समझा कि तालाब में पानी कम हो गया है और मछुआ तालाब में जाल डालने से रुकेगा नहीं. अगर मछलियों ने मेरी बात मानकर तालाब को छोड़ दिया होता, तो उन्हें इस तरह अपनी जान न गंवानी पड़ती.

इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि घमंडी आदमी कभी भी सत्य को छू नहीं पाता और उसकी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए. उसी बात के अनुसार काम करना चाहिए जो व्यावहारिक हो और जिसे अनुभव ठीक कहता हो.       




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