तूफान - शेक्सपियर की कहानी | The Tempest - by William Shakespeare

(महान नाटककार विलियम शेक्सपियर के नाटक का कथानुवाद) 

समुद्र के बीचोबीच एक विशाल टापू था. उस टापू पर प्रासपरो नामक एक व्यक्ति अपनी बेटी मिरांडा के साथ रहता था. वह टापू अनेक जीव-जंतुओं से भरा पड़ा था और मनुष्य के नाम पर वहाँ केवल वे दोनों ही रहते थे. एक पहाड़ी गुफा में उनका बसेरा था. मिरांडा की आयु लगभग तेरह वर्ष की थी. जब से उसने होश संभाला, तब से वह न तो कभी टापू से बाहर गई थी और न ही किसी को वहाँ आते देखा था. वह टापू ही उसका संसार था. वहाँ के जीव-जंतु उसके साथी थे. उसका सारा समय इन्हीं के साथ खेलने में बीतता था. 

प्रासपरो एक महान् जादूगर और तांत्रिक था. उसके पास कुछ पुराने ग्रंथ, किताबें तथा काले रंग की एक छड़ी थी. उसका अधिकतर समय उन ग्रंथों को पढ़ने में बीतता था. वह मिरांडा से बहुत प्यार करता था और उसकी सुख-सुविधाओं का पूरा ध्यान रखता था. उसके पालन-पोषण में उसने कोई कमी नहीं छोड़ी थी.

प्रासपरो बड़ी अजीबो-गरीब हरकतें किया करता था. कभी किसी अदृश्य शक्ति के साथ घंटों बातें करता तो कभी आकाश की ओर मुँह करके एकटक उसे निहारता रहता. जब कभी वह काली छड़ी को हाथ में लेकर अपने सिर के चारों ओर घुमाता तो आस-पास भयंकर घटनाएँ घटित होने लगतीं. आसमान में काले बादल घुमड़ आते, तेज हवाएँ चलने लगतीं, समुद्र में भयंकर तूफान उठ खड़ा होता, लहरें किनारों से टकराकर आसमान छूने लगतीं. 

सीधे तौर पर कहा जाए तो आँधी-तूफान उसके इशारों पर काम करनेवाले गुलाम थे. इसके अतिरिक्त टापू पर रहनेवाले जानवर और प्रेतात्माएँ भी उसकी आज्ञा का पालन करती थीं. प्रासपरो जब होठों को सिकोड़कर एक अजीब सी आवाज निकालता तो देखते-ही-देखते उसके आस-पास बहुत सी प्रेतात्माएँ प्रकट हो जाती थीं. वे उसके सैनिक थे और उसकी हर प्रकार से सहायता करते थे. इनमें सबसे शक्तिशाली प्रेत का नाम एरियल था. उसके लिए कोई भी काम असंभव नहीं था. वह पलक झपकते ही मीलों दूर पहुँच जाता था. प्रासपरो अपने इस प्रेत को सबसे आधिक प्यार करता था. 

एक दिन प्रासपरो हरी घास पर लेटा हुआ था. पास ही मिरांडा तितलियाँ और खरगोशों के साथ खेल रही थी. ठंडी हवाओं के झोंकों से उसे नींद आ गई और कुछ ही देर में वह खर्राटे भरने लगा. 

सहसा वह 'बदला-बदला' चीखते हुए उठ बैठा. वह पसीने से पूरी तरह भीग चुका था; उसकी साँसें धौंकनी के समान चल रही थी; आँखों में जैसे लहू उतर आया था. वह खड़ा हुआ और क्रुद्र्ध होकर समुद्र की ओर देखने लगा. 

प्रासपरो अपनी सभी तंत्र क्रियाएँ मिरांडा से छिपकर करता था. वह नहीं चाहता था कि उसके दिल और दिमाग पर इसका बुरा असर पड़े. लेकिन आज उसे किसी बात का ध्यान नहीं रहा. उसकी सुर्ख आँखें दूर समुद्र में तैरते एक छोटे से जहाज को देख रही थी. 

कुछ ही पल बीते थे कि दूर-दूर तक शांत दिखनेवाले समुद्र में एक जलजला-सा उठ खड़ा हुआ. चारों ओर काले-काले बादल घिर आए; लहरें भयंकर शोर करते हुए आसमान की ओर उठने लगीं; तेज हवाओं ने जल में भँवर पैदा कर दिए; बिजली कड़कते हुए जमीन पर गिरने के लिए आतुर हो उठी. 

समुद्र की विशाल लहरों के बीच जहाज कागज की नाव की भाँति लहराने लगा. कभी वह दाईं ओर झुक जाता तो कभी बाईं ओर. प्रासपरो अभी भी उसे एकटक देख रहा था. ऐसा लगा रहा था मानो वह अपनी पूरी शक्ति को केन्द्रित करके जहाज को डुबो देना चाहता हो. 

इस कशमकश के बीच आखिरकार लहरों की विजय हुई और वे जहाज को तिनके की तरह बहाकर कहीं दूर ले गई. जहाज के अदृश्य होते ही प्रासपरो के चेहरे पर संतोष के भाव दिखाई देने लगे. वह जोर-जोर से हंसने लगा. 

दूर खड़ी मिरांडा इस दृश्य को देख रही थी. समुद्र के भयंकर रूप को देखकर उसका बाल-मन भय से काँपने लगा. वह दौड़कर आई और पिता के पैरों से लिपट गई. 

"मिरांडा! मेरी बच्ची." यह कहकर प्रासपरो ने उसे गोद में उठा लिया और स्नेहवश उसके सिर पर हाथ फेरने लगा.

मिरांडा डरते-डरते बोली, "पिताजी, यह सब क्या था? मुझे बहुत डर लग रहा है." 

"डरो मत, मिरांडा, "प्रासपरो ने उसका चेहरा समुद्र की ओर किया और उँगली से संकेत करते हुए बोला, "तुम्हें वह चमकीली वस्तु दिखाई दे रही है? उसे जहाज कहते हैं."

"जी पिताजी!" मिरांडा ने उँगली की दिशा में देखकर सहमति में सिर हिलाया.

"उसे यहाँ लाने के लिए ही मैंने अपने जादू से समुद्र में तूफान उठाया था." प्रासपरो ने धीरे से कहा. 

"लेकिन आपने ऐसा क्यों किया,? "मिरांडा डरते हुए बोली, "वह जहाज डूबने वाला है. उसके यात्री सहायता के लिए पुकार रहे हैं. भगवान् के लिए तूफान को रोक दें पिताजी, नहीं तो सब मारे जाएँगे."

प्रासपरो कठोर स्वर में बोला, "मिरांडा, यदि तुम्हें सच पता होता तो तुम कभी तूफान रोकने के लिए नहीं कहतीं. तुम नहीं जानतीं कि उस जहाज में बैठे यात्री कौन हैं."

मिरांडा ने उत्सुकतावश पूछा, "वे कौन हैं, पिताजी? और आप उन्हें कैसे जानते हैं?"

"बेटी, आज तक मैंने तुमसे एक रहस्य छुपा कर रखा है. यह रहस्य हमारे अतीत से संबन्धित है. परंतु आज मैं उसके बारे में तुम्हें सब कुछ बताऊंगा; क्योंकि उनके यहाँ आने से पहले तुम्हें जान लेना चाहिए कि वे कौन हैं और उनसे हमारा क्या संबंध है? तभी पूरीरी बात ठीक से समझ पाओगी ."

प्रासपरो मिरांडा को लेकर वहीं एक ओर बैठ गया और अतीत के पन्नों को खोलते हुये कहने लगा, "यहाँ से बहुत दूर समुद्र के दूसरे किनारे पर मिलान नामक एक बहुत खूबसूरत देश है. आज से दस वर्ष पहले मैं वहाँ का राजा था. उस समय तुम तीन साल की थीं. तुम्हें जन्म देने के कुछ दिनों बाद ही तुम्हारी माँ स्वर्ग सिधार गई थी. तभी से मैं पिता के साथ-साथ माँ बनकर तुम्हारा पालन-पोषण कर रहा हूँ. हमारे पास नौकर-चाकर, धन-दौलत, हाथी-घोड़े; सबकुछ था. तुम मेरी एकमात्र संतान थीं, इसलिए मैं तुम्हें लेकर अधिक चिंतित रहता था. मेरा अधिकांश समय तुम्हारी देखभाल में बीतता था. शेष समय में पुराने ग्रंथ और किताबें पढ़ना मेरा शौक था. मेरा एंटोनियो नामक एक छोटा भाई भी था. वह बड़ा बुद्धिमान, साहसी कुटनीतिज्ञ था.इसलिए राजकाज की सारी जिम्मेदारी मैंने उसे सौंप रखी थी. परंतु सिंहासन के सभी अधिकार पाकर उसके मन में लोभ आ गया. उसे लगने लगा कि जब तुम कुछ बड़ी हो जाओगी तो मैं उससे सारे अधिकार वापस लेकर स्वयं राज्य का कार्यभार सँभाल लूँगा. यही से उसकी सोच गलत दिशा की ओर मुड़ गई. वह मुझे सिंहासन से हटाकर स्वयं राजा बनने का स्वप्न देखने लगा. लेकिन मेरे रहते उसका यह स्वप्न कभी पूरा नहीं हो सकता था. अत: उसने एक भयंकर षड्यंत्र रच डाला. एक दिन उसने समुद्र-भमण का कार्यक्रम बनाया. इसके लिए उसने मुझे भी तैयार कर लिया था. निश्चित दिन मैं और तुम जहाज पर सवार होकर समुद्र-यात्रा पर निकल पड़े. जहाज का कप्तान और कर्मचारी एंटोनियो के आदमी थे. बीच समुद्र में पहुँचकर उन्होंने हमें जबरदस्ती एक नाव में बिठाकर समुद्र में मरने के लिए छोड़ दिया. लेकिन जहाज का एक मल्लाह मेरा विश्वासपात्र था. इसलिए उसने एक दिन पहले ही नाव में खाने-पीने का सामान और मेरे सभी ग्रंथ छिपाकर रख दिए थे. लहरों के थपेड़े खाते हुए हमारी नाव अनजानी दिशा की ओर चल पड़ी. उस समय मुझे सबसे अधिक चिंता तुम्हारी थी. तुम्हें सीने से चिपटाकर मैं तेजी से नाव खे रहा था. इस प्रकार कई दिन बीत गए. धीरे-धीरे खाने-पीने का सामान समाप्त हो गया. अंतत: थकान और भूख से बेहाल होकर मैं ईश्वर को पुकारने लगा. आखिरकार उसने मेरी पुकार सुन ली और एक दिन हमारी नाव इस हरे-भरे टापू से आ टकराई. उसी दिन से हम इस टापू पर रह रहे हैं."

अपने अतीत के बारे में सुनकर मिरांडा की आँखों से आँसू छलक आए और वह पिता के सीने से चिपट गई तभी प्रासपरो को एरियल का स्वर सुनाई दिया, "स्वामी, मैं लौट आया हूँ."

प्रासपरो बेटी के सामने एरियल से बात नहीं करना चाहता था. उसने सोचा कि उसे अद्श्य शक्ति से बात करते देखकर वह भयभीत हो जाएगी. इसलिए सर्वप्रथम उसने मंत्र पढ़कर मिरांडा को गहरी नींद में सुला दिया. फिर वह एरियल को संबोधित करते हुए बोला, "आओं प्रेतराज! क्या समाचार लाए हो? जहाज के यात्री कैसे हैं?"

"स्वामी, आपने जैसा कहा था, मैंने वैसा ही किया. इस समय जहाज के सभी यात्री कुशल हैं. मैंने पूरी शक्ति लगाकर ऐसा भयंकर तूफान उठाया कि जहाज तिनके की तरह समुद्र में डूबने लगा. इतने भयंकर दृश्य को देखकर सभी के प्राण सूख गए. प्राण संकट में पड़े देख आपका वीर भाई सहायता के लिए चिल्लाने लगा. वह मल्लाहों के पैर पकड़कर प्राणरक्षा के लिए प्रार्थना करने लगा. परंतु उसका पुत्र फर्डिनेंड बहुत वीर और दिलेर है. वह स्वयं नाव खेते हुए इस टापू की ओर आ रहा है. जहाज डूबने के बाद शेष लोग भी अलग-अलग तरीकों से टापू की ओर आ रहे हैं. परन्तु आप निश्चिंत रहें, वे सभी सुरक्षित हैं."

घटना का सारा विवरण सुनकर प्रासपरो प्रसन्न होकर बोला, "प्रेतराज, आज तुमने बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य पूरा किया है. इस उपकार के बदले में तुम्हें शीघ ही मुक्त कर दूँगा, जिससे तुम अपने सगे-संबंधियों से जाकर मिल सको. अब तुम सभी को सकुशल यहाँ ले आओ. ध्यान रहे, कोई भी यात्री मरना नहीं चाहिए. मेरे भाई एंटोनियो का विशेष तौर पर खयाल रखना, मुझे उससे एक पुराना हिसाब चुकता करना है."

आज्ञा पाते ही एरियल वहाँ से चला गया. 

उधर, फर्डिनैड नाव खेते हुए टापू की ओर आ रहा था. प्रासपरो की आज्ञा से एरियल ने उसके चारों ओर संगीत की मधुर स्वर-लहरियाँ बिखेर दी थीं. उसके प्रभाव से थोड़ी देर पहले घटी घटना की भी कोई सुध नहीं रही. वह टापू के उस ओर तेजी से नाव खे रहा था, जिस ओर मिरांडा और प्रासपरो बैठे हुए थे.

अथक प्रयासों के बाद फर्डिनैड की नाव टापू पर आ लगी. उसने जैसे ही टापू पर कदम रखा, मिरांडा की नजर उसपर पड़ी. अपने पिता के अतिरिक्त आज तक उसने किसी पुरुष को नहीं देखा था. इसलिए फर्डिनैड की सौम्यता, सुंदरता और बलिष्ठ शरीर ने उसे मोहित-सा कर दिया. उसके दिल में फर्डिनैड के लिए प्रेम का अंकुर फूट पड़ा.

इधर, मिरांडा को देखकर फर्डिनैड भी अपनी सुधबुध खो बैठा था. एक सुनसान टापू पर उसकी मुलाकात एक अद्वितीय सुंदरी से होगी, इसकी कल्पना उसने कभी नहीं की थी. उसे लगा मानो वह परियों के देश में आ गया हो और सामने बैठी सुंदरी परियों की रानी है. 

फर्डिनैड की नाव जैसे ही टापू से लगी थी, वैसे ही प्रासपरो अदृश्य हो गया था. वह उनकी भाव-भंगिमाएँ देख रहा था. उन्हें एक-दूसरे में खोया देखकर उसके मन को असीम शांति मिल रही थी. उसने निश्चय कर लिया था की वह अपनी पुत्री का विवाह इस सुंदर राजकुमार के साथ ही करेगा. परंतु वह एक बार उसकी परीक्षा लेना चाहता था. अत: वह प्रकट होकर गरजते हुए बोला, "हे उद्र्ड युवक! तू कौन है? इस टापू पर किसी परदेसी आदमी का आना मना है. फिर तूने यहाँ आने का साहस कैसे किया? अवश्य तू शत्रुओं का जासूस है और यहाँ की शांति भंग करने आया है. अपना परिचय दो, वरना मैं तुम्हे दंडित कर दूँगा."

फर्डिनैड विनम्र स्वर में बोला, "मैं  मिलान देश के राजा एंटोनियो का पुत्र राजकुमार फर्डिनैड हूँ. तूफान के कारण हमारा जहाज समुद्र में डूब गया है. किसी तरह मैं यहाँ तक पहूँचा हूँ. मुझे बहुत भूख लग रही है. कुछ खाने को मिलेगा?"

"तुम्हें भोजन अवश्य दिया जाएगा, राजकुमार. लेकिन बदले में तुम्हें कुल्हाड़े से मेरी कुटिया के आसपास का जंगल साफ़ करना होगा. यदि इस काम में तुमने जरा सी भी लापरवाही की तो तुम्हें दंडित किया जाएगा."प्रासपरो गरजते हुए बोला.

यह बात सुनकर फर्डिनैड की आँखों में खून उतर आया. प्रासपरो को ललकारते हुए बोला, "मैं एक राजकुमार हूँ, तुम्हारा गुलाम नहीं. लगता है, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, इसलिए बहकीं-बहकी बातें कर रहे हो. यदि तुम्हें अपनी शक्ति पर घमंड है तो आओ, मेरा मुकाबला करो."

"मैं तो तुझे एक बालक समझ रहा था, लेकिन तेरा दुसाहस बढ़ता ही जा रहा है. ठहर, मैं अभी तुझे मजा चखाता हूँ."

"तो फिर देर क्यों कर रहे हो? उठाओ तलवार और मुकाबला करो. ध्यान रखना, जब तक मेरे हाथ में तलवार है तब तक कोई भी मेरा अहित नहीं कर सकता." यह कहकर राजकुमार ने तलवार की मूँठ पकड़ ली. परंतु लाख यत्न करने के बाद के वह उसे म्यान से बाहर नहीं निकाल पाया. उसका हाथ मूंठ के साथ चिपककर रह गया. 

उसकी यह हालत देखकर प्रासपरो हँसते हुए बोला, "अभी तुम बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे, अचानक क्या हो गया? कहाँ गई तुम्हारी वीरता? तुमसे तो म्यान से तलवार ही नहीं निकाली जा रही, भला मेरा सामना कैसे करोगे! अगर मैं चाहूँ तो अभी तुम्हारा मस्तक काट सकता हूँ; लेकीन मैं किसी बेबस व्यक्ति पर हथियारं नहीं उठाता. यदि अपना भला चाहते हो तो मेरी गुलामी स्वीकार कर लो." 

विवश राजकुमार ने सहमति में सिर हिला दिया. 

फिर प्रासपरो उसकी ओर कुल्हाड़ा बढ़ाते हुए बोला, "यह लो कुल्हाड़ा और जल्दी से काम में लग जाओ. मैं शाम तक वापस लौटूँगा. तब तक एक ओर का सारा जंगल साफ हो जाना चाहिए."

फर्डिनैड के प्रति पिता का इतना कठोर व्यवहार मिरांडा को अच्छा नहीं लगा. वह उसका हाथ पकड़कर बोली, "पिताजी, यह राजकुमार है. इसने कभी पानी तक अपने हाथ से नहीं पिया होगा, भला इतना कठिन कार्य यह कैसे कर सकेगा? कुल्हाड़ा पकड़ने मात्र से इसके हाथ छिल जाएँगे. आप इतने कठोर और निर्दयी न बनें. इसे क्षमा कर दें."

"चुप करों मिरांडा! एक अनजाने लड़के के लिए तुम अपने पिता को समझा रही हो. इस जैसे न जाने कितने राजकुमार दुनिया में भरे पड़े हैं. लकड़ियाँ काटने से ज्यादा-से-ज्यादा इसके हाथ छिल जाएँगे, टूटेंगे तो नहीं. इसे यह कार्य करना ही होगा. तुम भी इसका पक्ष लेने के बजाय इसके कार्य पर नजर रखो. अगर यह अपने कार्य में जरा भी लापरवाही दिखाए तो मुझे अवश्य बताना." यह कहकर प्रासपरो वहाँ से चला गया.

लेकिन कुछ दूर जाकर वह पुन: अदृश्य हो गया और उनके पास आकर उनकी बातें सुनने लगा. 

पिता की कठोरता और राजकुमार की विवशता देखकर मिरांडा की आँखे नम हो आई. वह राजकुमार से बोली, "पिताजी की ओर से मैं आपसे क्षमा माँगती हूँ. मुझे विश्वास है कि वे शीघ लौटकर आपको यह कार्य करने से रोक देंगे." 

"तुम दुखी मत हो, मिरांडा! मुझे न तो किसी से कोई शिकायत है और न ही किसी के प्रति दिल में कोई द्वेषभाव है. लेकिन यह सत्य है कि मैं तुमसे प्रेम करने लगा हूँ. मैं यहाँ से तुम्हें अपने साथ लेकर ही जाऊँगा. तुम मेरे दिल की रानी बनकर हमेशा मेरे साथ रहोगी." राजकुमार ने प्रेम भरे स्वर में कहा.

"राजकुमार, मैं भी मन-ही-मन आपसे प्रेम करने लगी हूँ. मैंने स्वयं को तन-मन से आपको अर्पित कर दिया है. आप जहाँ रहेंगे, मैं वहाँ रहकर आपकी सेवा करूँगी." मिरांडा ने भी अपने दिल की बात प्रकट कर दी.

अब तक प्रासपरो को उनके प्रेम पर यकीन हो चूका था. वह प्रकट होते हुआ बोला, "और मेरा आशीर्वाद सदा तुम दोनों के साथ रहेगा. तुम जहाँ रहो, खुश रहो."

मिरांडा और फर्डिनैड विस्मित होकर प्रासपरो को देखने लगे. तभी एंटोनियो और उसके अन्य साथी भी एरियल के साथ वहाँ आ पहुँचे. अभी तक एंटोनियो समझ रहा था कि तूफान उसके पुत्र को लील गया है. इस दुख के कारण उसका चेहरा मुरझाया हुआ था. लेकिन जब उसने फर्डिनैड को एक सुंदर युवती के साथ बैठे देखा तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. उसने दौड़कर पुत्र को गले से लगा लिया.

इस मिलन के बाद एंटोनियो, की दृष्टि प्रासपरो पर पड़ी. लेकिन वह उसे पहचान नहीं सका. तब प्रासपरो उसके पास आकर बोला, "आओ एटोनियो, मुझसे भी गले मिलो. मैं कब से तुम्हें गले लगाने के लिए तरस रहा हूँ. वर्षों पहले इंसानी कमजोरियों के कारण हम एक-दूसरे से अलग हो गए थे. लेकिन ईश्वर की कृपा से आज फिर हम एक हो रहे हैं."

आवाज सुनते ही एंटोनियो प्रासपरो को पहचान गया. अपने नीच कर्म की याद आते ही उसकी नजरें झुक गई. वह घुटनों के बल बैठकर प्रासपरो से क्षमा माँगने लगा. प्रासपरो ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और स्नेह भरे स्वर में बोला, "भाई, जीवन में ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं. लोभ कभी किसी को नहीं छोड़ता. लेकिन इनसान वही है जो दूसरों की गलतियों को दिल से क्षमा कर सके. मैंने तुम्हें उसी दिन क्षमा कर दिया था जिस दिन तुम्हारे सेवकों ने हमें समुद्र में छोड़ा था. आओ, अब सारे गिले-शिकवे भुलाकर हम इस जोड़े को अपना आशीर्वाद दें और नई जिंदगी की शुरुआत करें."

एंटोनियो ने प्रसन्नतापूर्वक दोनों को आशीर्वाद दिया. फिर उस टापू पर खुशियों की वर्षा होने लगी.




Post a Comment

0 Comments