शरणागत - जयशंकर प्रसाद की कहानी | Sharanagat - A story by Jay Shankar Prasad

शरणागत 

(जयशंकर प्रसाद)

प्रभात-कालीन सूर्य की किरणें अभी पूर्व के आकाश में नहीं दिखाई पड़ती हैं. ताराओं का क्षीण प्रकाश अभी अम्बर में विद्यमान है. यमुना के तट पर दो-तीन रमणियाँ खड़ी हैं, और दो-यमुना की उन्हीं क्षीण लहरियों में, जो कि चन्द्र के प्रकाश से रंजित हो रही हैं-स्नान कर रही हैं. अकस्मात् पवन बड़े वेग से चलने लगा. इसी समय एक सुन्दरी, जो कि बहुत ही सुकुमारी थी, उन्हीं तरंगों से निमग्न हो गयी. दूसरी, जो कि घबड़ाकर निकलना चाहती थी, किसी काठ का सहारा पाकर तट की ओर खड़ी हुई अपनी सखियों में जा मिली. पर वहाँ सुकुमारी नहीं थी. सब रोती हुई यमुना के तट पर घूमकर उसे खोजने लगीं.

अन्धकार हट गया. अब सूर्य भी दिखाई देने लगे. कुछ ही देर में उन्हें, घबड़ाई हुई स्त्रियों को आश्वासन देती हुई, एक छोटी-सी नाव दिखाई दी. उन सखियों ने देखा कि वह सुकुमारी उसी नाव पर एक अंग्रेज और एक लेडी के साथ बैठी हुई है.

तट पर आने पर मालूम हुआ कि सिपाही-विद्रोह की गड़बड़ से भागे हुए एक सम्भ्रान्त योरोपियन-दम्पति उस नौका के आरोही हैं. उन्होंने सुकुमारी को डूबते हुए बचाया है और इसे पहुँचाने के लिये वे लोग यहाँ तक आये हैं.

सुकुमारी को देखते ही सब सखियों ने दौड़कर उसे घेर लिया और उससे लिपट-लिपटकर रोने लगीं. अंग्रेज और लेडी दोनों ने जाना चाहा, पर वे स्त्रियाँ कब मानने वाली थीं? लेडी साहिबा को रुकना पड़ा. थोड़ी देर में यह खबर फैल जाने से उस गाँव के जमींदार ठाकुर किशोर सिंह भी उस स्थान पर आ गये. अब, उनके अनुरोध करने से, विल्फर्ड और एलिस को उनका आतिथ्य स्वीकार करने के लिये विवश होना पड़ा क्योंकि सुकुमारी, किशोर सिंह की ही स्त्री थी, जिसे उन लोगों ने बचाया था.

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चन्दनपुर के जमींदार के घर में, जो यमुना-तट पर बना हुआ है, पाईंबाग के भीतर, एक रविश में चार कुर्सियाँ पड़ी हैं. एक पर किशोर सिंह और दो कुर्सियों पर विल्फर्ड और एलिस बैठे हैं, तथा चौथी कुर्सी के सहारे सुकुमारी खड़ी है. किशोर सिंह मुस्करा रहे हैं, और एलिस आश्चर्य की दृष्टि से सुकुमारी को देख रही है.

विल्फर्ड उदास हैं और सुकुमारी मुख नीचा किये हुए है. सुकुमारी ने कनखियों से किशोर सिंह की ओर देखकर सिर झुका लिया.

एलिस-(किशोर सिंह से) बाबू साहब, आप इन्हें बैठने की इजाजत दें.

किशोर सिंह-मैं क्या मना करता हूँ?

एलिस-(सुकुमारी को देखकर) फिर वह क्यों नहीं बैठतीं?

किशोर सिंह-आप कहिये, शायद बैठ जायँ.

विल्फर्ड-हाँ, आप क्यों खड़ी हैं?

बेचारी सुकुमारी लज्जा से गड़ी जाती थी.

एलिस-(सुकुमारी की ओर देखकर) अगर आप न बैठेंगी, तो मुझे बहुत रंज होगा.

किशोर सिंह-यों न बैठेंगी, हाथ पकड़कर बिठाइये.

एलिस सचमुच उठी, पर सुकुमारी एक बार किशोर सिंह की ओर वक्र दृष्टि से देखकर हँसती हुई पास की बारहदरी में भागकर चली गयी, किन्तु एलिस ने पीछा न छोड़ा. वह भी वहाँ पहुँची, और उसे पकड़ा. सुकुमारी एलिस को देख गिड़-गिड़ाकर बोली-क्षमा कीजिये, हम लोग पति के सामने कुर्सी पर नहीं बैठतीं, और न कुर्सी पर बैठने का अभ्यास ही है.

एलिस चुपचाप खड़ी रह गयी, यह सोचने लगी कि-क्या सचमुच पति के सामने कुर्सी पर न बैठना चाहिये. फिर उसने सोचा-यह बेचारी जानती ही नहीं कि कुर्सी पर बैठने में क्या सुख है?

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चन्दनपुर के जमींदार के यहाँ आश्रय लिये हुए योरोपियन-दम्पति सब प्रकार सुख से रहने पर भी सिपाहियों का अत्याचार सुनकर शंकित रहते थे. दयालु किशोर सिंह यद्यपि उन्हें बहुत आश्वासन देते, तो भी कोमल प्रकृति की सुन्दरी एलिस सदा भयभीत रहती थी.

दोनों दम्पति कमरे में बैठे हुए यमुना का सुन्दर जल-प्रवाह देख रहे हैं. विचित्रता यह है कि 'सिगार' न मिल सकने के कारण विल्फर्ड साहब सटक के सड़ाके लगा रहे हैं. अभ्यास न होने के कारण सटक से उन्हें बड़ी अड़चन पड़ती थी, तिस पर सिपाहियों के अत्याचार का ध्यान उन्हें और भी उद्विग्न किये हुए था; क्योंकि एलिस का भय से पीला मुख उनसे देखा न जाता था.

इतने में बाहर कोलाहल सुनाई पड़ा. एलिस के मुख से 'ओ माई गाड' (Oh My God !) निकल पड़ा और भय से वह मूर्च्छित हो गयी. विल्फर्ड और किशोर सिंह ने एलिस को पलंग पर लिटाया, और आप 'बाहर क्या है' सो देखने के लिये चले.

विल्फर्ड ने अपनी राइफल हाथ में ली और साथ में जान चाहा, पर किशोर सिंह ने उन्हें समझाकर बैठाला और आप खूँटी पर लटकती तलवार लेकर बाहर निकल गये.

किशोर सिंह बाहर आ गये, देखा तो पाँच कोस पर जो उनका सुन्दरपुर ग्राम है, उसे सिपाहियों ने लूट लिया और प्रजा दुखी होकर अपने जमींदार से अपनी दु:ख-गाथा सुनाने आयी है. किशोर सिंह ने सबको आश्वासन दिया, और उनके खाने-पीने का प्रबन्ध करने के लिए कर्मचारियों को आज्ञा देकर आप विल्फर्ड और एलिस को देखने के लिये भीतर चले आये.

किशोर सिंह स्वाभाविक दयालु थे और उनकी प्रजा उन्हें पिता के समान मानती थी, और उनका उस प्रान्त में भी बड़ा सम्मान था. वह बहुत बड़े इलाकेदार होने के कारण छोटे-से राजा समझे जाते थे. उनका प्रेम सब पर बराबर था. किन्तु विल्फर्ड और सरला एलिस को भी वह बहुत चाहने लगे, क्योंकि प्रियतमा सुकुमारी की उन लोगों ने प्राण-रक्षा की थी.

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किशोर सिंह भीतर आये. एलिस को देखकर कहा-डरने की कोई बात नहीं है. यह मेरी प्रजा थी, समीप के सुन्दरपुर गाँव में सब रहते हैं. उन्हें सिपाहियों ने लूट लिया है. उनका बंदोबस्त कर दिया गया है. अब उन्हें कोई तकलीफ नहीं.

एलिस ने लम्बी साँस लेकर आँख खोल दी, और कहा-क्या वे सब गये?

सुकुमारी-घबराओ मत, हम लोगों के रहते तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं हो सकता.

विल्फर्ड-क्या सिपाही रियासतों को लूट रहे हैं?

किशोर सिंह-हाँ, पर अब कोई डर नहीं है, वे लूटते हुए इधर से निकल गये.

विल्फर्ड-अब हमको कुछ डर नहीं है.

किशोर सिंह-आपने क्या सोचा?

विल्फर्ड-अब ये सब अपने भाइयों को लूटते हैं, तो शीघ्र ही अपने अत्याचार का फल पावेंगे और इनका किया कुछ न होगा.

किशोर सिंह ने गम्भीर होकर कहा-ठीक है.

एलिस ने कहा-मैं आज आप लोगों के संग भोजन करूँगी.

किशोर सिंह और सुकुमारी एक दूसरे का मुख देखने लगे. फिर किशोर सिंह ने कहा-बहुत अच्छा.

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साफ दालान में दो कम्बल अलग-अलग दूरी पर बिछा दिये गये हैं. एक पर किशोर सिंह बैठे थे और दूसरे पर विल्फर्ड और एलिस; पर एलिस की दृष्टि बार-बार सुकुमारी को खोज रही थी और वह बार-बार यही सोच रही थी कि किशोर सिंह के साथ सुकुमारी अभी नहीं बैठी.

थोड़ी देर में भोजन आया, पर खानसामा नहीं. स्वयं सुकुमारी एक थाल लिये हैं और तीन-चार औरतों के हाथ में भी खाद्य और पेय वस्तुएँ हैं. किशोर सिंह के इशारा करने पर सुकुमारी ने वह थाल एलिस के सामने रखा, और इसी तरह विल्फर्ड और किशोर सिंह को परस दिया गया. पर किसी ने भोजन करना नहीं आरम्भ किया.

एलिस ने सुकुमारी से कहा-आप क्या यहाँ भी न बैठेंगी? क्या यहाँ भी कुर्सी है?

सुकुमारी-परसेगा कौन?

एलिस-खानसामा.

सुकुमारी-क्यों, क्या मैं नहीं हूँ?

किशोर सिंह-जिद न कीजिये, यह हमारे भोजन कर लेने पर भोजन करती हैं.

एलिस ने आश्चर्य और उदासी-भरी एक दृष्टि सुकुमारी पर डाली. एलिस को भोजन कैसा लगा, सो नहीं कहा जा सकता.

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भारत में शान्ति स्थापित हो गयी है. अब विल्फर्ड और एलिस अपनी नील की कोठी पर वापस जाने वाले हैं. चन्दनपुर में उन्हें बहुत दिन रहना पड़ा. नील-कोठी वहाँ से दूर है.

दो घोड़े सजे-सजाये खड़े हैं और किशोर सिंह के आठ सशस्त्र सिपाही उनको पहुँचाने के लिए उपस्थित हैं. विल्फर्ड साहब किशोर सिंह से बात-चीत करके छुट्टी पा चुके हैं. केवल एलिस अभी तक भीतर से नहीं आयी. उन्हीं के आने की देर है.

विल्फर्ड और किशोर सिंह पाईं-बाग में टहल रहे थे. इतने में सात-आठ स्त्रियों का झुंड मकान से बाहर निकला. हैं! यह क्या? एलिस ने अपना गाउन नहीं पहना, उसके बदले फिरोजी रंग के रेशमी कपड़े का कामदानी लहँगा और मखमल की कंचुकी, जिसके सितारे रेशमी ओढ़नी के ऊपर से चमक रहे हैं. हैं! यह क्या? स्वाभाविक अरुण अधरों में पान की लाली भी है, आँखों में काजल की रेखा भी है, चोटी भी फूलों से गूँथी जा चुकी है, और मस्तक में सुन्दर सा बाल-अरुण का बिन्दु भी तो है!

देखते ही किशोर सिंह खिलखिलाकर हँस पड़े, और विल्फर्ड तो भौंचक्के-से रह गये.

किशोर सिंह ने एलिस से कहा-आपके लिये भी घोड़ा तैयार है-पर सुकुमारी ने कहा-नहीं, इनके लिये पालकी मँगा दो.




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