चोर और ठग - राजस्थानी लोक कथा (Rajasthani Lok Katha)

चोर और ठग (Rajasthani Lok Katha in Hindi)

एक बार एक चोर और एक ठग, साथ - साथ कमाने निकले. दोनों अपने - अपने हुनर के धनी थे लेकिन पूरा दिन घूमने के बाद भी कहीं से एक पैसा तक हाथ न लगा. 

शाम को घर की ओर लौटते वक़्त अचानक उन्होंने देखा कि एक दुकानदार दिए की रौशनी में दिन भर की बिक्री के रुपये गिन रहा है. चोर ने मौका देखकर एक कंकड़ी उठाई और ताक कर दीपक में मारी. दीपक एक ओर को लुढ़क कर बुझ गया. दुकानदार रुपये वहीं छोड़कर दुबारा दिया जलाने के लिए जैसे ही माचिस लेने दुकान के भीतर गया, चोर ने रुपये उठाये और दोनों अँधेरे का लाभ उठाकर गली में भाग गए. 

दूकानदार ने लौटकर दिया जलाया तो देखा कि रुपये गायब हैं. उसने शोर मचाना शुरू कर दिया तो आसपास के कुछ लोग इकट्ठे हो गए और चोरी की घटना पर आश्चर्य व्यक्त करने लगे. 

उधर चोर और ठग अँधेरी गली में सुरक्षित स्थान पर पहुंचे तो चोर बोला कि भाई ये रुपये तो मैंने अपने हुनर से कमाये हैं, इसमें तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं है. यह सुनकर ठग बोला कि कोई बात नहीं अब तुम मेरा हुनर देखो. 

ठग वापस उसी दूकान पर आया और पूछने लगा कि यहाँ क्या हुआ है. लोगों ने बताया कि कोई चोर रुपये लेकर भाग गया बड़े आश्चर्य की बात है. यह सुनकर ठग बोला कि चोर किधर गया किसी ने देखा क्या ? सब ने इनकार में सर हिलाया. तब ठग बोला कि महत्वपूर्ण ये है कि अगर हमें ये पता चल जाए चोर इस तरफ को गया है तो उस दिशा में जाकर हम चोर को पकड़ सकते हैं. अगर सेठ जी चाहें तो हम चोरी की घटना दोहराकर चोर के जाने की दिशा का पता लगा सकते हैं. मैं खुद चोर बनकर ये जानने की कोशिश करूँगा कि असली चोर किस तरफ को भाग सकता है. 

लोगों के कहने पर दुकानदार चोरी की घटना दोहराने पर तैयार हो गया. जो लोग वहाँ खड़े थे वो भी कुछ दूर जाकर खड़े हो गए. सेठ ने कुछ और रुपये मंगवाए और फिर से उसी तरह से गिनने लगा जैसे चोरी के पहले गिन रहा था. ठग चोर बनकर आया और उसने दिए में कंकड़ी मारी तो दीपक बुझ गया. सेठ रुपये वहीं छोड़कर माचिस लेने भीतर चला गया. तब तक चोर बने ठग ने रुपये उठाये और उसी अँधेरी गली में भाग गया. 

दुकानदार और दूर खड़े लोग यही सोचते रहे कि वह अभी लौटकर आएगा लेकिन वह अँधेरी गली में खड़े अपने दोस्त चोर के पास पहुंचा और बोला कि मैं भी अपने हुनर से रुपये कमा लाया हूँ अब फ़ौरन यहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाओ. और दोनों भाग गए. 

फेरा उधेड़ ले (राजस्थानी लोककथा )

एक सेठ और सेठानी घर में सो रहे थे. रात में एक चोर घर में घुस आया. खटपट की आवाज सुनकर सेठ की आँख खुल गई. लेकिन उसने शोर नहीं मचाया क्योंकि उसे लगा कि शोर मचाने पर चोर हमला कर सकता है. उसने सोचा कि चोर को तरकीब से पकड़ना चाहिए. और उसके दिमाग में एक युक्ति सूझ गई. 

अचानक सेठ अपने बगल में सो रही सेठानी से बोला कि मैं इसी वक़्त हरिद्वार जाऊँगा. सेठ की आवाज सुनकर चोर फ़ौरन अँधेरे में एक खम्भे से चिपककर खड़ा हो गया. 

उधर सेठानी झुंझला कर सेठ से बोली कि आधी रात को कौन हरिद्वार जाता है. सुबह चले जाना. लेकिन सेठ ने हठ पकड़ लिया. वह उठकर पलंग पर बैठ गया और कहने लगा कि जाऊँगा जाऊँगा और अभी जाऊँगा ! देखता हूँ मुझे कौन रोकता है ? 

अब तो सेठानी को भी गुस्सा आ गया. वह भी उठकर खडी हो गई और बोली कि मैं रोकूंगी तुम्हारी पत्नी ! सात फेरे लेकर इस घर में आई हूँ कोई मजाक नहीं है !

सेठ बोला अपने फेरे उधेड़ ले लेकिन मैं तो जाऊँगा हरिद्वार अभी के अभी ! इस पर सेठानी बोली कि फेरे कैसे उधेड़े जा सकते हैं. तब सेठ बोला तू भीतर से एक मलमल का थान ला मैं दिखाता हूँ कि फेरे कैसे उधेड़े जाते हैं. 

सेठानी भी तुरंत गुस्से में भीतर चली गई और एक मलमल का थान ले आई. सेठ ने थान का सिरा खुद पकड़ा और दूसरा सेठानी को पकडाया और बात करता हुआ उसी खम्बे के पास पहुँच गया जिससे चोर चिपक कर खड़ा हुआ था. 

सेठ बोला कि आधी रात को अब यहाँ मंडप तो है नहीं, तू एक काम कर इस खम्भे की एक दिशा में परिक्रमा लगा दूसरी में मैं लगाता हूँ फेरे उधड जायेंगे. अब तक सेठानी भी समझ चुकी थी कि सेठ ये सब नाटक चोर को पकड़ने के लिए कर रहा है. 

दोनों ने चोर की तरफ से अनजान बनते हुए मलमल का थान पकड़कर खम्भे की परिक्रमा लगानी शुरू की और पूरा कपडा खम्भे से कसकर लपेट दिया. चोर बेचारा अपने आप ही जकड गया. इसके बाद सेठ ने अच्छी तरह से गाँठ लगाईं और सेठानी से बोला - हमने शादी के समय फेरे पंचों के सामने लिए इसलिए जा पंचों को बुला ला. 

सेठानी जाकर पड़ोसियों को बुला लाई. पडोसी भी हैरान कि आधी रात को सेठ को न जाने क्या सूझी है. तभी एक की नजर खम्भे से बंधे चोर पर पड़ी. उसने सेठ से पूछा - ये कौन है ? 

तब सेठ बोला कि यही तो है जिसके कारण फेरे उधेड़ने पड़े हैं. अब जाकर चोर को समझ आया कि सेठ ने फेरे उधेड़ने का सारा नाटक उसे पकड़ने की खातिर किया था. 




Post a Comment

0 Comments