गीदड़ की राजनीति - लोक कथा | A Folk story in Hindi

 एक बार किसी गीदड़ ने जंगल में एक मरा हुआ हाथी देखा. उसे देखकर गीदड़ का रोम-रोम प्रसन्न हो गया. वह सोचने लगा - "यह मुझे मेरे भाग्य से मिला है. अब मुझे कई दिनों तक भोजन की कोई चिंता नहीं करनी पड़ेगी."

अभी वह सोच ही रहा था कि तभी कहीं से घूमता घामता जंगल का राजा सिंह वहाँ आ गया. मरे हुए हाथी को देखकर वह सोचने लगा कि इतने बड़े जानवर को मेरे अलावा और कौन मार सकता है. तभी उसे पास ही खड़ा हुआ गीदड़ दिखाई दिया. सिंह ने गुर्राकर पूछा - "क्यों रे गीदड़, इसे किसने मारा ?"

"बाघ ने मारा है हुजूर !" गीदड़ ने नम्रता से जवाब दिया. 

सिंह ने सोचा कि मैं जंगल का राजा हूँ. जब इस हाथी को बाघ ने मारा है तो मुझे अपने से छोटे प्राणी द्वारा किये गए शिकार को नहीं खाना चाहिए. यह सोचकर वह आगे बढ़ गया. 

गीदड़ ने सोचा कि बला टली किन्तु तभी एक बाघ वहाँ आ टपका. उसने भी गीदड़ से पूछा - "इस हाथी का शिकार किसने किया ?"

गीदड़ ने कुछ सोचकर उत्तर दिया - "सिंह ने मारा है मालिक !" 

बाघ ने पूछा - "सिंह ने मारा है तो फिर छोड़कर क्यों गया ?"

गीदड़ बोला - "छोड़कर नहीं गया बल्कि सिंहनी को बुलाने गया है. कह रहा था कि दोनों मिलकर खायेंगे. बस दोनों अभी आते ही होंगे."

बाघ ने सोचा, यदि मैं इस हाथी को खाने लगूँ और इस बीच सिंह और सिंहनी आ गए तो दोनों मिलकर मुझे बेमौत मार डालेंगे. यहाँ से निकल जाने में ही भलाई है, और इस प्रकार वह भी चुपचाप वहाँ से चलता बना. 

गीदड़ ने एक बार फिर राहत की सांस ली किन्तु तभी कांव-कांव करता हुआ एक कौआ वहाँ आ गया. गीदड़ ने सोचा कि अगर इस कौए को किसी युक्ति से यहाँ से भगाता हूँ तो यह सारे जंगल में कांव कांव करता फिरेगा और सबको हाथी के बारे में बता देगा. बेहतर है इसे कुछ मांस दे देता हूँ, आखिर ये खायेगा भी कितना ? 

यह सोचकर गीदड़ ने मांस का एक टुकड़ा कौए की तरफ फेंका जिसे लेकर वह उड़ गया और एक पेड़ की डाल पर बैठकर खाने लगा. 

अब गीदड़ ने हाथी को खाने का मन बनाया किन्तु इससे पहले कि वह शुरू कर पाता, एक दूसरा गीदड़ वहाँ आ धमका. गीदड़ ने सोचा कि यह तो मेरे समान बल वाला ही है. इसे तो मैं लड़-झगड़ कर ही भगा सकता हूँ. और गीदड़ ने पूरी ताकत से दूसरे गीदड़ पर हमला बोल दिया और मारपीट कर वहां से भगा दिया. 

इस तरह चतुर राजनीतिज्ञ गीदड़ ने चारों अनपेक्षित आगंतुकों से अपने भोजन को सुरक्षित कर लिया. इसीलिए कहा गया  है कि उत्तम पुरुषों को नम्रता और बुद्धि का प्रयोग करके, दुष्टों को भय दिखाकर, धूर्त को कुछ ले दे कर और समान बल वालों को पराक्रम से जीतना चाहिए. 




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