उल्लू की भाषा - लोक कथा | Ullu ki bhasha - Lok katha in Hindi

एक बार एक राजा था. शुरू शुरू में उसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी क्योंकि वह सब तरह से एक योग्य राजा था, लेकिन समय के साथ धीरे - धीरे वह आलसी और विलासी प्रवृत्ति का हो गया. उसने राज काज में रूचि लेनी कम कर दी और ज्यादातर समय आमोद प्रमोद में व्यतीत करने लगा. इसका परिणाम जो होना था वही हुआ, राज्य में अराजक शक्तियां सिर उठाने लगीं, चोरों डकैतों का बोलबाला बढ़ने लगा और नतीजतन प्रजा दुखी रहने लगी. 

राजा के कई मंत्री थे. उनमें से ज्यादातर सिर्फ अपना मंत्रिपद बचाने के लिए राजा की जी हुजूरी में लगे रहते और राज्य की क्या दुर्दशा हो रही है इसकी चर्चा तक न करते. लेकिन कुछ मंत्रीगण थे, जो राज्य की गिरती अवस्था से चिंतित रहते थे किन्तु वे भी राजा के भय के कारण उससे कुछ कह न पाते थे. 

जब हालात बद से बदतर होने लगे तब एक मंत्री ने राजा तक राज्य का असली हाल पहुंचाने का बीड़ा उठाया. एक दिन सायंकाल उसे राजा के साथ बाग़ में टहलने का मौका मिला, जब उसके और राजा के सिवा वहां और कोई न था. 

जब वे दोनों बातें करते करते एक पेड़ के पास पहुंचे तो पाया कि वहाँ उल्लू चिल्ला रहे थे. उल्लुओं की आवाज सुनकर मंत्री रूक गया और बड़े गौर से उनकी ओर देखने लगा. उसने ऐसा भाव प्रदर्शित किया जैसे वह उल्लुओं की बातचीत सुन रहा हो. 

"क्या सुन रहे हो, मंत्री जी ?" राजा ने पूछा. 

"महाराज, ये उल्लू आपस में बातें कर रहे हैं. मैं उनकी बातचीत सुन रहा हूँ." मंत्री ने जवाब दिया. 

"क्या तुम्हें उल्लुओं की भाषा आती है ?" राजा ने हैरान होते हुए पूछा. 

"जी हाँ महाराज ! बचपन में एक सिद्ध महात्मा ने मुझे पक्षियों की बोली सिखाई थी," मंत्री ने कहा. 

"अच्छा तो फिर मुझे भी बताओ, ये उल्लू आपस में क्या बातें कर रहे हैं ?" राजा ने उत्सुक होते हुए कहा. 

"जाने दीजिये महाराज, इनकी बातें आपके सुनने लायक नहीं हैं. मैं जो सुन रहा हूँ तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई मेरे कानों में पिघला गरम सीसा डाल रहा हो. मैं इनकी बातें बताकर आपको कष्ट नहीं देना चाहता...चलिए आगे चलें." मंत्री ने कहा और आगे बढ़ने लगा. 

लेकिन राजा आगे नहीं बढ़ा. वह बोला, "नहीं, मैं जानना चाहता हूँ ये क्या बातें कर रहे हैं ? तुम मुझे बताओ !"

"छोडिये भी महाराज ... अल्पबुद्धि पक्षी हैं ... इनकी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं है.... चलिए चलें." मंत्री ने बात को टालने के अंदाज़ में कहा. 

"नहीं, जब तक मैं ये नहीं जान लेता कि ये उल्लू क्या बातें कर रहे हैं, मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा. तुम्हें बताना ही होगा. ये मेरा आदेश है !" राजा ने अधिकारपूर्वक कहा. 

"मैं आपको बताना तो नहीं चाहता था," मंत्री ने कहा, "किन्तु अब आपने आदेश दे दिया है तो मैं विवश हूँ. तो सुनिए महाराज, ये उल्लू आपस में दहेज़ के बारे में भावताव कर रहे हैं. इनमें कुछ वरपक्ष वाले हैं, कुछ वधूपक्ष वाले. वरपक्ष वाले वधूपक्ष से दहेज़ में पचास खँडहर मांग रहे हैं. "

राजा ध्यान से सुन रहा था. मंत्री आगे बोला, "पचास खँडहर की मांग सुनकर एक वधूपक्ष वाला उल्लू कह रहा है कि इतने उजाड़ गाँव कहाँ मिलेंगे ? तो वरपक्ष की ओर से एक उल्लू कह रहा है कि हमारे राजा के राज्य में उजाड़ गाँवों की कमी नहीं है. अगर राजा सलामत रहा तो जब तक ये विवाह होगा तब तक और भी गाँव उजाड़ हो जायेंगे." 

राजा मंत्री की बात सुनकर सन्न खड़ा रह गया. वह समय के फेर से विलासी जरूर हो गया था किन्तु निर्बुद्धि नहीं था. वह तुरंत ताड़ गया कि उल्लुओं के बहाने मंत्री उसे राज्य की दशा बताना चाह रहा है. 

राजा को अवाक खड़े देख मंत्री बोला, "आपको कष्ट हुआ न महाराज, इसीलिए मैं आपको बताना नहीं चाहता था. इन कमअक्ल पशुपक्षियों की बातों पर गौर करने का कोई फायदा नहीं. चलिए चलें, महल में आपकी प्रतीक्षा हो रही होगी."

किन्तु राजा आगे नहीं बढ़ा. उसने मंत्री का हाथ पकड़ लिया और बोला, "मंत्री जी, आपने मेरी आखें खोल दी हैं. मैं समझ गया जो आप कहना चाहते हैं."

अगले ही दिन से राजा पुनः पूर्ववत राजकाज में रूचि लेने लगा और विलासिता के सारे क्रियाकलाप उसने तत्काल प्रभाव से बंद करा दिए. कुछ ही दिनों में राज्य की दशा सुधरने लगी और प्रजा पुनः सुखी हो गई. 




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