समुद्र का खारा पानी - जापानी लोक कथा | Samudra ka khaara paani - A Japanese Folk tale

 पुराने जमाने की बात है, एक गाँव में दो भाई रहते थे। समय के साथ बड़ा भाई तो धनी हो गया था किन्तु छोटा भाई कंगाल। एक दिन ऐसा भी आया, जिस दिन कोई त्यौहार था और उस दिन छोटे भाई के घर खाने को एक दाना भी न था। पत्नी के कहने पर वह बड़े भाई के घर एक सेर चावल उधार मांगने गया परंतु बड़े भाई ने उसे टका सा जवाब देकर लौटा दिया। 

जब वह निराश होकर लौट रहा था, तब रास्ते में उसे लकड़ी का भारी गट्ठर लिए हुये एक बूढ़ा मिला। बूढ़े ने उससे पूछा - "तुम कौन हो भाई ? तुम्हारा चेहरा देखकर लगता है तुम किसी मुसीबत में पड़े हुये हो ।"

दुख में कोई अपनापन दिखाने वाला मिल जाय तो सब्र का बांध टूट जाता है। बूढ़े की मृदु वाणी सुनकर छोटे भाई की आँखों से भी आँसू रुक न सके। उसने रोते रोते अपनी सारी व्यथा बूढ़े को सुना दी। बूढ़े ने उसे धीरज देते हुये कहा - "तुम मेरा यह लकड़ी का गट्ठर मेरे घर तक पहुंचा दो तो मैं तुम्हें एक ऐसी अद्भुत चीज़ दूँगा जिसकी मदद से तुम मालामाल हो जाओगे।"

छोटा भाई स्वभाव से दयालु था और फिर बूढ़े ने उससे अपनेपन से बात की थी, इसलिए उसने लकड़ी का गट्ठा अपने सिर पर उठाया और बूढ़े के पीछे पीछे चल दिया। 

घर पहुँचकर बूढ़े ने उसे एक मालपुआ दिया और कहा - "इसको लेकर तुम मंदिर के पीछे जो जंगल है, वहाँ जाओ। वहाँ पर एक बिल है जिसमें बहुत से बौने रहते हैं। उन बौनों को ये मालपुए बहुत पसंद हैं। वे किसी भी कीमत पर इसे हासिल करना चाहेंगे। उस समय इसके बदले में तुम धन-दौलत न मांगकर पत्थर की एक चक्की मांग लेना, जो उन बौनों की सबसे खास चीज़ है। बाद में तुम्हें उस चक्की की करामातें मालूम हो जाएंगी।"

बूढ़े के हाथ से मालपुआ लेकर छोटे भाई ने उससे विदा ली और मंदिर के पीछे वाले जंगल में पहुंचा। वहाँ जाकर उसने चारों ओर नजर दौड़ाई तो एक जगह उसे एक बिल दिखा जिसमें से अंगूठे के आकार के बहुत सारे बौने भीतर बाहर आ जा रहे थे। 

छोटा भाई उन बौनों के पास पहुंचा तो वे डरकर भागने लगे किन्तु तभी एक बौने की नजर उसके हाथ में रखे मालपुए पर पड़ गई। मालपुआ देखते ही वह बौना चिल्लाकर अपने साथियों से कहने लगा - "देखो, उसके हाथ में मालपुआ है !" 

फिर वह छोटे भाई से विनती करते हुये बोला, "कृपा करके वह मालपुआ हमें दे दो। इसके बदले में हम तुम्हें बहुत से हीरे जवाहरात देंगे।"

लेकिन छोटे भाई को बूढ़े की बात याद थी। उसने मालपुए के बदले में पत्थर की चक्की मांगी। बौनों ने पहले तो चक्की देने में आनाकानी की और छोटे भाई से और कुछ भी मांगने को कहने लगे, किन्तु जब वह न माना तो चक्की देने को राजी हो गए।

चक्की देते हुये बौनों के राजा ने छोटे भाई से कहा - "देखो भाई, यह हमारे राज्य की सबसे अमूल्य चीज़ है। इसका इस्तेमाल सोचसमझ कर करना। तुम इस चक्की को दाहिनी तरफ घुमाकर जो चीज़ मांगोगे, वह इसमें से निकलनी शुरू हो जाएगी। और जब तक इसे बाईं तरफ नहीं घुमाओगे तब तक वह चीज़ निकलती ही रहेगी। "

छोटा भाई पत्थर की चक्की लेकर घर आया। उसकी पत्नी अपने पति के इंतज़ार में भूखी-प्यासी बैठी हुई थी। पति को खाली हाथ देखकर वह बड़ी निराश हुई, पर छोटे भाई ने उससे कहा - "जल्दी से फर्श पर चटाई फैलाओ !"

चटाई पर चक्की रखकर छोटे भाई ने उसे दाहिनी तरफ घुमाकर कहा - "चावल निकलो।" बस इतना कहना था की चक्की से कुछ ही देर में चावलों के ढेर के ढेर निकल पड़े। फिर उसने चक्की को बाईं तरफ घुमाकर चावलों का निकलना बंद किया। इस प्रकार उसने एक - एक करके अपनी जरूरत की सभी चीज़ें कुछ ही देर में चक्की को घुमाकर प्राप्त कर लीं। 

जब पति-पत्नी दोनों खा पी चुके तब उन्हें ध्यान आया कि अब गरीबों की तरफ क्यों रहा जाये, जब वे चक्की से कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं। उन्होने चक्की घुमा-घुमा कर ढेर सारी धन दौलत निकाल ली और अगले ही दिन से अपने लिए आलीशान महल बनाना शुरू कर दिया तथा शान शौकत की ढेरों चीज़ें मँगा लीं। 

......... 

बड़े भाई को जब यह पता चला कि छोटे भाई के पास अचानक अकूत धन आ गया है तो वह इसका रहस्य जानने को उतावला हो उठा। कुछ ही रोज पहले तक जिसके पास खाने को दाना भी न था उसके पास इतना धन कहाँ से आ गया ? आखिर उसे ऐसा कौनसा खजाना मिल गया है ? 

रहस्य का पता लगाने के लिए रात में बड़ा भाई छोटे भाई के घर में आकर छिपकर बैठ गया। उसने देखा कि छोटा भाई एक चक्की को घुमा घुमा कर दौलत के ढेर पर ढेर लगाता जा रहा है। उस रात वह चुपके से दबे पाँव चला आया किन्तु उसने मन में निश्चय कर लिया कि इस चक्की को किसी भी तरह वह प्राप्त करके रहेगा। 

उसे यह मौका जल्दी ही मिल गया। उस दिन छोटा भाई और उसकी पत्नी कुछ देर के लिए घर से बाहर गए हुये थे तभी वह उनके घर में कूद पड़ा और चक्की को चुरा लाया। चक्की लेकर वह सीधा समुद्र किनारे बंधी अपनी नाव पर पहुंचा और उसे खोलकर समुद्र में चल दिया। 

दरअसल वह लोगों से दूर किसी सुनसान टापू पर जाकर चक्की चलाना चाहता था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि चक्की का भेद किसी अन्य को मालूम पड़े। किन्तु इससे पहले वह किसी ऐसे टापू पर पहुंचे उसे तेज़ भूख लगने लगी। 

खाने के लिए वह अपने साथ रोटी तो ले गया था किन्तु जल्दी जल्दी में नमक ले जाना भूल गया था। नमक लेने के लिए घर वापस जाने के बजाय उसने चक्की से ही नमक निकालने की सोची। उसने चक्की को घुमाया और कहा - "नमक निकलो।" 

तुरंत चक्की से नमक के ढेर के ढेर निकलना शुरू हो गए। अब उस बेचारे को यह तो पता था कि चक्की से चीज़ें निकालना किस तरह से हैं, किन्तु उसे यह नहीं मालूम था कि बंद कैसे किया जाता है। हुआ ये कि चक्की ने एक बार जो नमक निकालना शुरू किया तो निकालती ही गई। नमक के भार से आखिरकार नाव डूब गई। उसी के साथ डूब गए बड़ा भाई और वह चक्की भी। 

कहते हैं आज भी वह चक्की समुद्र के तल में कहीं चल रही है इसीलिए समुद्र का पानी खारा होता है। 




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